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तं त्वा॑ गी॒र्भिरु॑रु॒क्षया॑ हव्य॒वाहं॒ समी॑धिरे । यजि॑ष्ठं॒ मानु॑षे॒ जने॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taṁ tvā gīrbhir urukṣayā havyavāhaṁ sam īdhire | yajiṣṭham mānuṣe jane ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम् । त्वा॒ । गीः॒ऽभिः । उ॒रु॒ऽक्षयाः॑ । ह॒व्य॒ऽवाह॑म् । सम् । ई॒धि॒रे॒ । यजि॑ष्ठम् । मानु॑षे । जने॑ ॥ १०.११८.९

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:118» मन्त्र:9 | अष्टक:8» अध्याय:6» वर्ग:25» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:10» मन्त्र:9


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उरुक्षयाः) हे परमात्मन् या अग्नि ! तेरे आश्रय में बहुत निवासवाले मनुष्य (तं त्वा हव्यवाहम्) उस तुझ प्रार्थना स्वीकार करते हुए को या होम्य वस्तु वहन करते हुए को (मानुषे जने) मनुष्यसम्बन्धी जन्म में या जनस्थान में (यजिष्ठम्) अत्यन्त सङ्गति करनेवाले या बहुत उपयोग में आनेवाले को (गीर्भिः) स्तुतियों द्वारा या मन्त्रवाणी द्वारा अपने अन्दर प्रकाशित करते हैं या सम्यक् दीप्त करते हैं ॥९॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा के आश्रय में स्तुति करनेवाले जन रहते हैं, वह उनकी स्तुतियों को स्वीकार करता है, स्तुतियों द्वारा अपने अन्दर प्रकाशित करते हैं एवं अग्नि के आश्रय मनुष्य अपने सब कार्य चलाते हैं, वे अपने होम आदि स्थानों में अग्नि को प्रकाशित करते हैं ॥९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

मानुषे जने

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे प्रभो ! (हव्यवाहम्) = सब हव्य पदार्थों के प्राप्त करानेवाले (तं त्वा) = उन आपको (उरुक्षयाः) = विशाल हृदयरूप गृहवाले व्यक्ति ही (गीर्भिः) = ज्ञान की वाणियों से (समीधिरे) = समिद्ध करते हैं। आप वस्तुतः सब पवित्र पदार्थों के प्राप्त करानेवाले हैं। आपको ज्ञान की वाणियों के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। [२] आप मानुषे विचारशील, मनन करनेवाले, (जने) = अपनी शक्तियों का विकास करनेवाले इस व्यक्ति में (यजिष्ठम्) = यजिष्ठ हैं, अधिक से अधिक संगतिकरणवाले होते हैं, प्राप्तिवाले होते हैं। आप 'मनुष जन' को ही प्राप्त होते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु प्राप्ति का उपाय ज्ञानाग्नि को दीप्त करना है। इन विचारशील पुरुषों को ही प्रभु प्राप्त होते हैं। सूक्त का सार - प्रभु ज्ञान दीप्ति व मलों के क्षरण से प्राप्त होते हैं । प्रभु हमें ज्ञानरूप धन को प्राप्त करानेवाले हैं। इस ज्ञानरूप धन को प्राप्त करके यह प्रभु का अनन्य भक्त बनता है, सो 'ऐन्द्रः कहलाता है। संसार वृक्ष का छेदन करनेवाला होने से यह 'लवः' है । अथवा सदा प्रभु के नामों का जप करनेवाला यह 'लब: ' [लप् व्यक्तायां वाचि] कहलाता है। यह प्रभु स्मरण द्वारा वासनाओं का विनाश करता हुआ सोम का शरीर में रक्षण करता है और कहता है कि-
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उरुक्षयाः) त्वयि त्वदाश्रयेण बहुनिवासाः-जनाः (तं त्वां हव्यवाहम्) तं त्वां प्रार्थनां स्वीकुर्वन्तं यद्वा होतव्यं वस्तु वहन्तं (मानुषे जने यजिष्ठम्) मनुष्य-सम्बन्धीनि जन्मनि जनस्थाने वा यष्टृतममत्यन्तसङ्गन्तारं (गीर्भिः) स्तुतिभिर्यद्वा मन्त्रवाग्भिः (सम् ईधिरे) स्वस्मिन् प्रकाशन्ते समिन्धयन्ति ॥९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, carrier and harbinger of fragrant havis to divinities and humanity, most adorable in human communities, men of dignity and grand mansions invoke and light you in vast vedis with holy songs of the Veda.