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या वी॒र्या॑णि प्रथ॒मानि॒ कर्त्वा॑ महि॒त्वेभि॒र्यत॑मानौ समी॒यतु॑: । ध्वा॒न्तं तमोऽव॑ दध्वसे ह॒त इन्द्रो॑ म॒ह्ना पू॒र्वहू॑तावपत्यत ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yā vīryāṇi prathamāni kartvā mahitvebhir yatamānau samīyatuḥ | dhvāntaṁ tamo va dadhvase hata indro mahnā pūrvahūtāv apatyata ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

या । वी॒र्या॑णि । प्र॒थ॒मानि॑ । कर्त्वा॑ । म॒हि॒ऽत्वेभिः॑ । यत॑मानौ । स॒म्ऽई॒यतुः॑ । ध्वा॒न्तम् । तमः॑ । अव॑ । द॒ध्व॒से॒ । ह॒तः । इन्द्रः॑ । म॒ह्ना । पू॒र्वऽहू॑तौ । अ॒प॒त्य॒त॒ ॥ १०.११३.७

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:113» मन्त्र:7 | अष्टक:8» अध्याय:6» वर्ग:15» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:10» मन्त्र:7


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (महित्वेभिः) महत्त्वपूर्ण गुणों या वीरों के साथ (या प्रथमानि) जो प्रमुख (कर्त्वा) कर्त्तव्य (वीर्याणि) बलों को (यतमानौ) यत्न करते हुए (समीयतुः) युद्ध लिये दो परस्पर मिलते हैं सङ्गत होते हैं परन्तु (हते) आवरक आक्रमणकारी के नष्ट होने पर (ध्वान्तं तमः) घना अन्धकार (अव दध्वसे) अवध्वस्त हो जाता है नष्ट हो जाता है। (इन्द्रः) राजा (मह्ना) अपने महत्त्व से (पूर्वहूतौ) प्रमुख सत्कारार्थ आह्वान में (अपत्यतः) स्वामित्व को प्राप्त करता है ॥७॥
भावार्थभाषाः - दो संघर्ष करनेवाले युद्ध में अपने-अपने वीरों के द्वारा युद्ध जीतने का प्रयत्न करते हैं, परन्तु ऐश्वर्यवान् राजा प्रजाहितकर श्रेष्ठ कर्त्तव्यों को निभाता हुआ संग्राम में-आक्रमणकारी को नष्ट कर देता है, उसके नष्ट हो जाने पर अन्याय अन्धकार भी नष्ट हो जाता है, फिर ऐसा प्रतापी पुण्यवान् राजा सत्कारार्थ अपने राज्यैश्वर्य पर स्वामित्व करता है ॥७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

उदारता पूर्वक कर्म करना

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (या) = जिन (प्रथमानि) = सर्वोत्कृष्ट (वीर्या) = शक्तिशाली कर्मों को (कर्त्वा) = करने के लिए (महित्वेभिः) = पूजा की वृत्ति के साथ (यतमानौ) = यत्न करते हुए (समीयतुः) = सम्यक् गतिवाले होते हैं, तो उस समय (ध्वान्तं तमः) = घना अन्धेरा, तीव्र अज्ञानान्धकार (अवदध्वसे) = विनष्ट होता है। यदि घर में पति-पत्नी अपने प्रथम कर्त्तव्यों को पालन करने के लिए प्रभु स्मरणपूर्वक यत्नशील रहते हैं तो वे अज्ञानान्धकार को दूर करने में समर्थ होते हैं और प्रकाशमय जीवन को बिता पाते हैं। [२] (हते) = इस प्रकार अज्ञानान्धकार के विनष्ट होने पर (इन्द्रः) = जितेन्द्रिय पुरुष (पूर्वहूतौ) = प्रभु की प्रथम पुकार के होने पर, अर्थात् सर्वप्रथम प्रभु का स्मरण करके (मह्ना) = महिमा के साथ (अपत्यत) = गतिशील होता है। दिल को विशाल बनाकर सब कार्यों को करनेवाला होता है। तंगदिली से कार्यों को नहीं करता ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- पति-पत्नी मिलकर कर्त्तव्यपालन में प्रवृत्त होते हैं तो उनका जीवन प्रकाशमय बनता है। ऐसा होने पर एक जितेन्द्रिय पुरुष प्रभु स्मरण पूर्वक उत्कृष्ट मार्ग पर गति करता है ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (महित्वेभिः) महत्त्वपूर्णगुणैर्वीरैर्वा सह (या प्रथमानि कर्त्वा वीर्याणि) यानि प्रमुखानि कर्त्तव्यानि “कृत्यार्थे तवैकेन्केन्यत्वनः” [अष्टा० ३।४।१४] बलानि (यतमानौ समीयतुः) युद्धाय यत्नं कुर्वाणौ द्वौ परस्परं सङ्गच्छेताम्, परन्तु (हते) वृत्रे-आवरके हते सति (ध्वान्तं तमः) घनीभूतं तमः (अव दध्वसे) अवध्वस्तं भवति (इन्द्रः-मह्ना पूर्वहूतौ-अपत्यतः) इन्द्रः-ऐश्वर्यवान् राजा स्वमहत्त्वेन महाबलेन प्रमुखसत्कारार्थाह्वाने स्वामित्वं प्राप्नोति ॥७॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - When two warriors, Indra and Vrtra, meet in battle doing mighty acts of the first order of valour with their respective valour and power, then, when the covering darkness is destroyed, Indra with his might rules the scene and dominates over the first invocation and institution of yajna.