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सोमो॒ राजा॑ प्रथ॒मो ब्र॑ह्मजा॒यां पुन॒: प्राय॑च्छ॒दहृ॑णीयमानः । अ॒न्व॒र्ति॒ता वरु॑णो मि॒त्र आ॑सीद॒ग्निर्होता॑ हस्त॒गृह्या नि॑नाय ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

somo rājā prathamo brahmajāyām punaḥ prāyacchad ahṛṇīyamānaḥ | anvartitā varuṇo mitra āsīd agnir hotā hastagṛhyā nināya ||

पद पाठ

सोमः॑ । राजा॑ । प्र॒थ॒मः । ब्र॒ह्म॒ऽजा॒याम् । पुन॒रिति॑ । प्र । अ॒य॒च्छ॒त् । अहृ॑णीयमानः । अ॒नु॒ऽअ॒र्ति॒ता । वरु॑णः । मि॒त्रः । आ॒सी॒त् । अ॒ग्निः । होता॑ । ह॒स्त॒ऽगृह्य॑ । आ । नि॒ना॒य॒ ॥ १०.१०९.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:109» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:6» वर्ग:7» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:9» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ब्रह्मजायाम्) ब्रह्म-परमात्मा की कन्यारूप या ब्राह्मपुत्र ब्रह्मचारी की जाया विद्यात्रयी-वेदत्रयी में (राजा सोमः) उसमें प्रकाशमान सोम्य गुणवाला वायु ऋषि (अहृणीयमानः) शान्त हुआ (पुनः प्र अयच्छत्) प्रथम स्वयं ग्रहण करके पश्चात् ब्रह्मा नामक ब्रह्मचारी को देता है-उपदेश करता है (अन्वर्तिता) अनुसरणकर्ता (वरुणः) अङ्गिरा ऋषि (मित्रः) आदित्य ऋषि (होता-अग्निः) होता बना अग्नि ऋषि देता है (हस्त-गृह्य) साक्षात् जैसे हाथ से पकड हाथ में देता है, वैसे विद्यात्रयी को प्राप्त कराता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - ब्रह्म से उत्पन्न हुई वेदत्रयी या ब्रह्मचारी की जायारूप वेदत्रयी को वायु ऋषि देता है, ब्रह्मा के लिए आदित्य ऋषि देता है, अङ्गिरा देता है, अग्नि ऋषि देता है, वह ब्रह्मा चतुर्वेदवेत्ता बन जाता है ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभु ज्ञान व आश्रय देकर हमें आगे ले चलते हैं

पदार्थान्वयभाषाः - [१] जीव यद्यपि प्रभु को भूल जाता है तो भी प्रभु उसपर (अहृणीयमानः) = क्रोध नहीं करते [हृणीयते to be angey ] प्रभु (राजा) = शासक हैं, परन्तु (सोमः) = अत्यन्त सौम्य हैं, शान्त हैं । ये (प्रथमः) = अधिक से अधिक विस्तारवाले सर्वव्यापक प्रभु इस व्यक्ति के लिए (ब्रह्मजायाम्) = इस वेदवाणीरूप पत्नी को (पुनः प्रायच्छत्) = फिर से प्राप्त कराते हैं । हृदयस्थरूपेण बारम्बार प्रेरणा के द्वारा ज्ञान को देते हैं । [२] वे प्रभु जो कि (वरुणः) = सब बुराइयों से निवारित करनेवाले, दूर करनेवाले (मित्रः) = [प्रमीतेः ऋतये] मृत्यु पाप से बचानेवाले हैं, (अन्वर्तिता) = रक्षा के लिए पीछे-पीछे आनेवाले (आसीत्) = हैं। जैसे एक चलने के प्रयत्न में कदम रखनेवाले छोटे बालक के साथ-साथ माता होती है जिससे यदि वह गिरने लगे तो वह उसे बचानेवाली हो, इसी प्रकार वे वरुण और मित्र प्रभु इसके साथ-साथ होते हैं और इसे गिरने से बचाते हैं । [३] वे (होता) = सब साधनों को देनेवाले (अग्निः) = अग्रेणी प्रभु (हस्तगृह्या) = हाथ में पकड़कर (निनाय) = मार्ग पर ले चलते हैं। माता बालक को अंगुली पकड़ाकर चलाती है, उसी प्रकार प्रभु इसे आश्रय देकर आगे ले चलते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु शासक होते हुए भी क्रोध नहीं करते। वे प्रेरणा व आश्रय देकर हमें आगे ले चलते हैं।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ब्रह्मजायाम्) जायते सा जाया “जनेर्युक्” [उणादि० ४।१११ ‘या जायते’ दयानन्दः] ब्रह्मण परमात्मनः कन्याभूता यद्वा ब्रह्मचारिणो जाया विद्यात्रयी वेदरूपा सा हि तस्य जाया नान्या, तां (राजा सोमः) तत्र वेदत्रय्यां विद्यायां राजमानः प्रकाशमानः सोमः सोम्यगुणो वायुर्ऋषिः “योऽयं वायुः पवते ह्येष सोमः” [श० ७।३।१।१] (अहृणीयमानः) शान्तः सन् (पुनः प्र अयच्छत्) प्रथमं स्वयं गृहीतवान् पश्चात् ब्रह्मणे “ब्रह्मा” इति नामकाय ब्रह्मचारिणे प्रयच्छति ददाति-उपदिशति (अन्वर्तिता) अनुसरणकर्त्ता (वरुणः) अङ्गिराः-ऋषिः (मित्रः) “आदित्यः” मित्रो दाधार पृथिवीमुत द्याम् (होता-अग्निः) होतृभूतोऽग्निर्ऋषिः (हस्तगृह्य-आ निनाय) साक्षाद् यथा हस्तेन गृहीत्वा हस्ते प्रयच्छति कञ्चित् तथा विद्यात्रयी समन्तात् खलु नयति प्रापयति ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Soma, the ruling spirit of life, all at peace, having first received the divine Word, the Vedic voice, concomitant of omniscience, gives it again to Brahma in the dynamic Sarasvati form. Varuna, Mitra and Agni follow, and the yajaka Agni holds it by hand as in the yajnic ladle and leads it on.