प्रभु ज्ञान व आश्रय देकर हमें आगे ले चलते हैं
पदार्थान्वयभाषाः - [१] जीव यद्यपि प्रभु को भूल जाता है तो भी प्रभु उसपर (अहृणीयमानः) = क्रोध नहीं करते [हृणीयते to be angey ] प्रभु (राजा) = शासक हैं, परन्तु (सोमः) = अत्यन्त सौम्य हैं, शान्त हैं । ये (प्रथमः) = अधिक से अधिक विस्तारवाले सर्वव्यापक प्रभु इस व्यक्ति के लिए (ब्रह्मजायाम्) = इस वेदवाणीरूप पत्नी को (पुनः प्रायच्छत्) = फिर से प्राप्त कराते हैं । हृदयस्थरूपेण बारम्बार प्रेरणा के द्वारा ज्ञान को देते हैं । [२] वे प्रभु जो कि (वरुणः) = सब बुराइयों से निवारित करनेवाले, दूर करनेवाले (मित्रः) = [प्रमीतेः ऋतये] मृत्यु पाप से बचानेवाले हैं, (अन्वर्तिता) = रक्षा के लिए पीछे-पीछे आनेवाले (आसीत्) = हैं। जैसे एक चलने के प्रयत्न में कदम रखनेवाले छोटे बालक के साथ-साथ माता होती है जिससे यदि वह गिरने लगे तो वह उसे बचानेवाली हो, इसी प्रकार वे वरुण और मित्र प्रभु इसके साथ-साथ होते हैं और इसे गिरने से बचाते हैं । [३] वे (होता) = सब साधनों को देनेवाले (अग्निः) = अग्रेणी प्रभु (हस्तगृह्या) = हाथ में पकड़कर (निनाय) = मार्ग पर ले चलते हैं। माता बालक को अंगुली पकड़ाकर चलाती है, उसी प्रकार प्रभु इसे आश्रय देकर आगे ले चलते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु शासक होते हुए भी क्रोध नहीं करते। वे प्रेरणा व आश्रय देकर हमें आगे ले चलते हैं।