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दक्षि॑णावान्प्रथ॒मो हू॒त ए॑ति॒ दक्षि॑णावान्ग्राम॒णीरग्र॑मेति । तमे॒व म॑न्ये नृ॒पतिं॒ जना॑नां॒ यः प्र॑थ॒मो दक्षि॑णामावि॒वाय॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dakṣiṇāvān prathamo hūta eti dakṣiṇāvān grāmaṇīr agram eti | tam eva manye nṛpatiṁ janānāṁ yaḥ prathamo dakṣiṇām āvivāya ||

पद पाठ

दक्षि॑णाऽवान् । प्र॒थ॒मः । हू॒तः । ए॒ति॒ । दक्षि॑णाऽवान् । ग्रा॒म॒ऽनीः । अग्र॑म् । ए॒ति॒ । तम् । ए॒व । म॒न्ये॒ । नृ॒ऽपति॑म् । जना॑नाम् । यः । प्र॒थ॒मः । दक्षि॑णाम् । आ॒ऽवि॒वाय॑ ॥ १०.१०७.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:107» मन्त्र:5 | अष्टक:8» अध्याय:6» वर्ग:3» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:9» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (दक्षिणावान्) दक्षिणादाता (हूतः) मनुष्यों द्वारा आमन्त्रित सम्मानित किया जाता हुआ (प्रथमः) प्रमुख हो (एति) जनसमाज में प्राप्त होता है (दक्षिणावान्) दक्षिणादाता (ग्रामणीः) ग्राम नगर का नेता हुआ (अग्रम्-एति) अग्रासन को प्राप्त करता है (तम्-एव) उसको ही (नृपतिं मन्ये) नरों का पालक मानता हूँ, मैं दक्षिणाप्रार्थी (यः) जो (प्रथमः) सर्वप्रथम (दक्षिणाम्) दक्षिणा को (आविवाय) अधिकारी जनों के लिये प्राप्त कराता है-समर्पित करता है ॥५॥
भावार्थभाषाः - अधिकारी पात्र को दक्षिणा देनेवाला सर्वप्रथम दक्षिणा देकर मनुष्यों द्वारा आमन्त्रित किया जाता है-सम्मनित किया जाता है। ग्राम नगर में  नेता बनकर अग्रासन होता है, वह मनुष्यों का पालक होकर लोगों के हृदय में बैठ जाता है, अतः पात्र को दक्षिणा देनी चाहिए ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दान व सर्वप्रथम स्थान

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (दक्षिणावान्) = देने की वृत्तिवाला पुरुष (प्रथमः हूतः) = सबसे प्रथम पुकारा जाकर (एति) = सर्वमुख होकर गति करता है । अर्थात् इस दानी पुरुष को सभा आदि में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त होता है । यह (दक्षिणावान्) = दानवाला पुरुष (ग्रामणीः) = ग्राम का नेता बनकर [ = कौन्सिलर आदि बनकर ] (अग्रम् एति) सबके आगे-आगे चलता है । [२] यः-जो (प्रथमः) = सबसे पूर्व (दक्षिणाम्) = दानवृत्ति को (आविवाय) = [वी प्रजनन] अपने में उत्पन्न व विकसित करता है (तं एव) = उसको ही (जनानाम्) = लोगों का (नृपतिं मन्ये) = राजा मानता हूँ । वस्तुतः ही वह इस दानवृत्ति से (नृ-पति) = मनुष्यों का पालन करनेवाला होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- दान हमें सर्वप्रथम स्थान प्राप्त कराता है। दानी पुरुष सच्चे अर्थों में नृपति-प्रजा का रक्षक है।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (दक्षिणावान्) दक्षिणादानाय यस्य पार्श्वे स दक्षिणादाता (हूतः) जनैः स्वीकृतः सम्मानितः (प्रथमः) प्रमुखः सन् (एति) जनसमाजे प्राप्तो भवति (दक्षिणावान्) दक्षिणादाता (ग्रामणीः-अग्रम्-एति) ग्रामस्य नगरस्य नेता सन् अग्रासनं प्राप्नोति (तम्-एवं नृपतिं मन्ये) तमेव दक्षिणादातारं नॄणां जनानां पालयितारं मन्येऽहं दक्षिणार्थी (यः प्रथमः-दक्षिणाम्-आविवाय) यः सर्वप्रथमः सन् दक्षिणां जनेभ्यः समन्तात् प्रापयति समर्पयति ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The giver of dakshina is first invited and goes about in advance of all, the giver of dakshina is chosen as leader and head of the community and goes to occupy the first place. I accept him as leader and ruler of the people, who rises first and highest as the man of generous giving.