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उ॒च्चा दि॒वि दक्षि॑णावन्तो अस्थु॒र्ये अ॑श्व॒दाः स॒ह ते सूर्ये॑ण । हि॒र॒ण्य॒दा अ॑मृत॒त्वं भ॑जन्ते वासो॒दाः सो॑म॒ प्र ति॑रन्त॒ आयु॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uccā divi dakṣiṇāvanto asthur ye aśvadāḥ saha te sūryeṇa | hiraṇyadā amṛtatvam bhajante vāsodāḥ soma pra tiranta āyuḥ ||

पद पाठ

उ॒च्चा । दि॒वि । दक्षि॑णाऽवन्तः । अ॒स्थुः॒ । ये । अ॒श्व॒ऽदाः । स॒ह । ते । सूर्ये॑ण । हि॒र॒ण्य॒ऽदाः । अ॒मृत॒ऽत्वम् । भ॒ज॒न्ते॒ । वा॒सः॒ऽदाः । सो॒म॒ । प्र । ति॒र॒न्ते॒ । आयुः॑ ॥ १०.१०७.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:107» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:6» वर्ग:3» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:9» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (दक्षिणावन्तः) दक्षिणा देनेवाले (दिवि) निर्मल ज्ञान से अपनी आत्मा को (उच्चा-अस्थुः) ऊँचा उठाते हैं (ये अश्वदाः) उनमें जो मार्गव्यापी-यात्रा के साधनों को देनेवाले (ते सूर्येण सह) प्रेरक परमात्मा के साथ बैठतें हैं-उसकी प्रेरणा पाते हैं (हिरण्यदाः) ज्ञानामृत के प्रदान करनेवाले (अमृतं भजन्ते) मोक्ष पद को प्राप्त होते हैं (सोम वासोदाः) सोम्य पात्र-दानशीलजन आश्रय देनेवाले-शरण देनेवाले (आयुः-प्रतिरन्ते) अपना और अन्यों के जीवन को बढ़ाते हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - दक्षिणा देनेवालों का आत्मा ऊँचा हो जाता है, यात्रा के साधनों को देनेवाले परमात्मा की प्रेरणा पाते हैं, ज्ञानामृत के प्रदान करनेवाले मोक्षप्रद को प्राप्त होते हैं, वस्त्र मकान शरण देनेवाले अपना और अन्यों के जीवन को बढाते हैं ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'अश्व, हिरण्य व वस्त्र' का दान

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (दक्षिणावन्तः) = दान देनेवाले (दिवि) = द्युलोक में (उच्चा अस्थुः) = उच्च स्थान में स्थित होते हैं। इन्हें उत्कृष्ट लोक में जन्म प्राप्त होता है अथवा उत्कृष्ट ज्ञान के प्रकाश में स्थित होते हैं । [२] ये (अश्वदाः) = जो घोड़ों का दान करते हैं (ते) = वे (सूर्येण सह) = सूर्य के साथ होते हैं, इनका सूर्यलोक में जन्म होता है । (हिरण्यदाः) = स्वर्ण का दान करनेवाले (अमृतत्वम्) = अमृतत्व का (भजन्ते) = सेवन करते हैं, रोगों से इनकी असमय में ही मृत्यु नहीं हो जाती। [३] हे (सोम) = सौम्य स्वभाववाले पुरुष ! तू यह स्मरण रख कि (वासोदा:) = उत्तम वस्त्रों के देनेवाले लोग (आयुः प्रतिरन्ते) = आयुष्य को बढ़ानेवाले होते हैं । वस्त्रादान मनुष्य को दीर्घजीवी बनाता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - अश्व, हिरण्य, वस्त्र आदि का दान मनुष्य को प्रकाशमय नीरोग व दीर्घजीवी बनाता है।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (दक्षिणावन्तः) दक्षिणां दत्तवन्तः (दिवि) स्वज्ञानरूपे स्वात्मनि दिवि विमलेन ज्ञानेन स्वात्मनि [ऋ० १।२२।२० दयानन्दः] (उच्चा-अस्थुः) उत्कृष्टाः सन्तास्तिष्ठन्ति (ये-अश्वदाः) तेषु ये मार्गव्यापिनः पदार्थान् प्रयच्छन्ति (ते सूर्येण सह) प्रेरकेण परमात्मना सह तिष्ठन्ति तत्प्रेरणायां विराजन्ते (हिरण्यदाः) ज्ञानामृतस्य दातारः “अमृतं वै हिरण्यम्” [श० ५।२।७।२] ते (अमृतत्वं भजन्ते) मोक्षपदं सेवन्ते “सर्वेषामेव दानानां ब्रह्मदानं विशिष्यते” [मनु० ४।२३३] (सोम वासोदाः) सोम्यपात्राः दानशीलजना आश्रयदातारः (आयुः प्रतिरन्ते) स्वस्य परस्य जीवनं प्रवर्धयन्ति ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Generous givers of dakshina holy gift, abide on high in the regions of light and bliss. Those who give horse in charity ride with the sun. Givers of gold win immortality. O Soma, friend of peace and joy, givers of shelter and clothes cross the hurdles of life and live a long age.