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अ॒स्माक॒मिन्द्र॒: समृ॑तेषु ध्व॒जेष्व॒स्माकं॒ या इष॑व॒स्ता ज॑यन्तु । अ॒स्माकं॑ वी॒रा उत्त॑रे भवन्त्व॒स्माँ उ॑ देवा अवता॒ हवे॑षु ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asmākam indraḥ samṛteṣu dhvajeṣv asmākaṁ yā iṣavas tā jayantu | asmākaṁ vīrā uttare bhavantv asmām̐ u devā avatā haveṣu ||

पद पाठ

अ॒स्माक॑म् । इन्द्रः॑ । सम्ऽऋ॑तेषु । ध्व॒जेषु॑ । अ॒स्माक॑म् । याः । इष॑वः । ताः । ज॒य॒न्तु॒ । अ॒स्माक॑म् । वी॒राः । उत्ऽत॑रे । भ॒व॒न्तु॒ । अ॒स्मान् । ऊँ॒ इति॑ । दे॒वाः॒ । अ॒व॒त॒ । हवे॑षु ॥ १०.१०३.११

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:103» मन्त्र:11 | अष्टक:8» अध्याय:5» वर्ग:23» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:9» मन्त्र:11


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्माकम्) हमारा राजा (समृतेषु ध्वजेषु) सङ्गत हुईं भिन्न-भिन्न राष्ट्रध्वजाओं में अपने देश की ध्वजा को उन्नत करे (अस्माकम्) हमारे जो बाण शस्त्र हैं (ताः) वे (जयन्तु) जय प्राप्त करें (अस्माकम्) हमारे (वीराः) वीर सैनिक योद्धा (उत्तरे भवन्तु) भिन्न-भिन्न देशस्थ वीर सैनिकों के ऊपर होवें (अस्माकम्-उ) हमारे ही (देवाः) अग्नि विद्युत् आदि अस्त्र प्रयुक्त होकर या उनके जाननेवाले विद्वान् (हवेषु) संग्रामों में (अवत) रक्षा करें ॥११॥
भावार्थभाषाः - ऐसा प्रयत्न राजा या प्रजा को मिलकर करना चाहिये, जिससे भिन्न-भिन्न देशों या राष्ट्रों की ध्वजाओं में अपनी ध्वजा ऊँची प्रसिद्ध हो, वाणशस्त्र भी अपने सफलरूप में चलें, अपने वीर सैनिक अन्य राष्ट्र के सैनिकों के ऊपर रहें युद्ध करने में, तथा संग्रामों में अपने ही अग्नि विद्युत् आदि देव अस्त्र में प्रयुक्त होकर उनके विद्या के जाननेवाले विद्वान् रक्षा करें ॥११॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

आस्तिक मनोवृत्ति व विजय

पदार्थान्वयभाषाः - १. प्रस्तुत मन्त्र में चार बातें कही गयी हैं। पहली बात तो यह कि (ध्वजेषु समृतेषु) = ध्वजाओं व पताकाओं को ठीक प्रकार से प्राप्त कर लेने पर (अस्माकम्) = हम आस्तिक बुद्धिवालों का (इन्द्रः) = परमात्मा हो, अर्थात् हम प्रभु को ही अपना आश्रय मानकर चलें । 'ध्वजा' एक लक्ष्य का प्रतीक है। जब हम एक लक्ष्य बना लें तब प्रभु को अपना आश्रय बनाकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति में जुट जाएँ । वस्तुतः संसार में प्रभु का आश्रय मनुष्य को कभी निरुत्साहित नहीं होने देता । आस्तिक मनुष्य प्रभु को सदा अपनाता है और किसी प्रकार से निरुत्साहित न हो अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता चलता है। २. प्रभु से दूसरी प्रार्थना यह है कि (अस्माकम्) = हम आस्तिक वृत्तिवालों की (या:) = जो (इषवः) = प्रेरणाएँ हैं— अन्तः स्थित प्रभु से दिये जा रहे निर्देश हैं (ताः) = वे निर्देश और प्रेरणाएँ ही (जयन्तु) = जीतें । प्रभु की प्रेरणा होती है कि 'उषाकाल हो गया, उठ बैठ। क्यों सो रहा है ?' उसी समय एक इच्छा पैदा होती है कि कितनी मधुर वायु चल रही है, रात को नींद भी तो पूरी नहीं आई, दिन में सुस्ताते रहोगे, थोड़ा और सो ही लो। सामान्यतः यह इच्छा उस प्रेरणा को दबा देती है और व्यक्ति सोया रह जाता है। इसी को हम वैदिक शब्दों में इस रूप में भी कहते हैं कि दैवी प्रेरणा को आसुर कामना दबा लेती है। हम प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि हमारी प्रेरणाएँ ही विजयी हों - इच्छाएँ नहीं । ३. तीसरी प्रार्थना यह है कि (अस्माकम्) = हम आस्तिक वृत्तिवाले में (वीराः) = वीरता की भावनाएँ न कि कायरता की प्रवृत्ति (उत्तरे भवन्तु) = उत्कृष्ट हों - प्रबल हों। हम कायरता से कोई कार्य न करें। दबकर कार्य करना मनुष्यत्व से गिरना है । हमारे कार्य वीरता का परिचय दें । ४. हे (देवा:) = देवो! (अस्मान्) = हम आस्तिकों को (आहवेषु) = इन संग्रामों में (उ) = निश्चय से (अवत) = रक्षित करो। देव हमारे रक्षक हों। जब हम प्रभु में पूर्ण आस्था से चलेंगे, जब हम सदा अन्तःस्थ प्रभु की प्रेरणा को सुनेंगे, जब हम सदा वीरता के कार्य ही करेंगे तो क्यों देवताओं की रक्षा के पात्र न होंगे। जब मनुष्य अपनी वृत्ति को अच्छा बनाता है और पुरुषार्थ में किसी प्रकार की कमी नहीं आने देता तब वह देवों की रक्षा का पात्र होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - १. जीवन-लक्ष्य को ओझल न होने देते हुए हम प्रभु को अपना आश्रय समझें, २. हममें प्रेरणा की विजय हो न कि इच्छा की, ३. हम सदा वीरतापूर्ण कार्य करें और ४. हम सदा अध्यात्म-संग्रामों में देवों की रक्षा के पात्र हों ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्माकम्-इन्द्रः) अस्माकं राजा (समृतेषु ध्वजेषु) सङ्गतेषु भिन्नभिन्नराष्ट्रध्वजेषु स्वकीयं ध्वजमन्नयतु (अस्माकम्) अस्माकं खलु (याः इषवः) यानि वाणशस्त्राणि (ताः-जयन्तु) तानि जयं प्राप्नुवन्तु (अस्माकं वीराः) अस्माकं वीरसैनिका योद्धारः (उत्तरे भवन्तु) भिन्नभिन्नदेशस्थवीरसैनिकानामुपरि भवन्तु (अस्माकम्-उ-देवाः) अस्माकमेवाग्निविद्युत्प्रभृतयोऽस्त्रप्रयुक्तास्तद्विद्यावेत्तारो विद्वांसश्च (हवेषु) सङ्ग्रामेषु (अवत) रक्षत ॥११॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - In international gatherings, let Indra, our leader, raise our flag high in the flag lines, may our shots of arrows hit the targets and win the battles, let our brave progeny and our brave warriors be higher than others in excellence, and may the divinities protect us in the call to action in the battle field.