वांछित मन्त्र चुनें

इ॒मं तं प॑श्य वृष॒भस्य॒ युञ्जं॒ काष्ठा॑या॒ मध्ये॑ द्रुघ॒णं शया॑नम् । येन॑ जि॒गाय॑ श॒तव॑त्स॒हस्रं॒ गवां॒ मुद्ग॑लः पृत॒नाज्ये॑षु ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

imaṁ tam paśya vṛṣabhasya yuñjaṁ kāṣṭhāyā madhye drughaṇaṁ śayānam | yena jigāya śatavat sahasraṁ gavām mudgalaḥ pṛtanājyeṣu ||

पद पाठ

इ॒मम् । तम् । प॒श्य॒ । वृ॒ष॒भस्य॑ । युञ्ज॑म् । काष्ठा॑याः । मध्ये॑ । द्रु॒ऽघ॒णम् । शया॑नम् । येन॑ । जि॒गाय॑ । स॒तऽव॑त् । स॒हस्र॑म् । गवा॑म् । मुद्ग॑लः । पृ॒त॒नाज्ये॑षु ॥ १०.१०२.९

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:102» मन्त्र:9 | अष्टक:8» अध्याय:5» वर्ग:21» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:9» मन्त्र:9


0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वृषभस्य) वृषभ आकृतिवाले यान के (तम्-इमं युञ्जम्) इस उस योजनीय (द्रुघणम्) काष्ठ आदि से बने ढाँचे को (काष्ठायाः-मध्ये) संग्रामभूमि के अन्दर (शयानं पश्य) पड़े हुए को देख (येन) जिस साधन से (मुद्गलः) मुद्ग पक्षिविशेष की आकृतिवाले छोटे यन्त्र के स्वामी चालक (गवां शतवत् सहस्रम्) लोकिक साँडों के शतगुणित और सहस्रगुणित शत्रुबल को (पृतनाज्येषु) संग्रामों में (जिगाय) जीतता है ॥९॥
भावार्थभाषाः - वृषभ आकृतिवाले यान में एक लघु यन्त्र जिसके अन्दर होता है, उसमें सौ गुणित या सहस्रगुणित साँडों के समान शत्रु के बल को जीतने का सामर्थ्य होता है, उसे चालक चलाया करता है ॥९॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

शक्तिशाली को प्राप्त होनेवाले प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (इमम्) = इस (तम्) = उस प्रसिद्ध प्रभु को पश्य देख । जो प्रभु (वृषभस्य युञ्जम्) = शक्तिशाली को अपने साथ जोड़नेवाले हैं, जो शक्तिशाली को प्राप्त होते हैं । (काष्ठायाः) = दिशाओं के (मध्ये) = मध्य में (शयानम्) = निवास करनेवाले (द्रुघणम्) = संसार वृक्ष को नष्ट करनेवाले प्रभु को [पश्यः] देख । वे प्रभु सब दिशाओं में सर्वत्र व्याप्त हैं, इन प्रभु की उपासना से मनुष्य इस संसार वृक्ष को काट पाता है। प्रभु संसार वृक्ष को छिन्न करके हमारी मुक्ति का साधन बनते हैं । [२] उस प्रभु को देख (येन) = जिससे (पृतनाज्येषु) = संग्रामों में (मुद्गलः) = ओषधि वनस्पतियों का सेवन करनेवाला प्रभु-भक्त (शतवत्) = सौ वर्ष तक ठीक चलनेवाली (सहस्रम्) = प्रसन्नता से युक्त (गवाम्) = इन्द्रियों को (जिगाय) = जीतता है । प्रभु-भक्ति से इन्द्रियों की शक्ति सौ वर्ष तक ठीक बनी रहती है, इन्द्रियाँ प्रसन्न व निर्मल बनी रहती हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु शक्तिशाली को अपने साथ जोड़ते हैं । सर्वत्र व्याप्त होकर संसार वृक्ष के छेदन से हमारे मोक्ष का कारण बनते हैं । इस प्रभु के उपासन से हम इन्द्रियों का विजय कर पाते हैं ।
0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वृषभस्य) वृषभाकृतियानस्य (तम्-इमं युञ्जम्) तमिमं योक्तव्यं (द्रुघणम्) द्रुमयं काष्ठादिमयं पञ्जरं (काष्ठायाः-मध्ये) सङ्ग्रामान्ते मध्ये “आज्यन्तोऽपि काष्ठोच्यते” [निरु० २।१६] (शयानं पश्य) शयानमिव स्थीयमानं पश्य (येन मुद्गलः) येन साधनेन मुद्गपक्षिसदृशा कृतिमान् लघुयन्त्रविशेषस्तद्वान् स्वामी चालकः “अकारो मत्वर्थीयश्छान्दसः” (गवां शतवत्सहस्रम्) लौकिकगवां शतसंख्यावत् तथा सहस्रगुणितं यानबलं (पृतनाज्येषु) सङ्ग्रामेषु “पृतनाज्यं सङ्ग्रामनाम०” [निघ० २।१७] (जिगाय) जयति ॥९॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Watch this, the power and force of the might and mace of Indra within the battle field of existence, destroying hate and enmity and abiding at peace by which Mudgala, generous lord of abundance in the warlike contests of life forces, has won a hundred thousandfold wealth of lands, cows and culture for the enlightenment of people.