शक्तिशाली को प्राप्त होनेवाले प्रभु
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (इमम्) = इस (तम्) = उस प्रसिद्ध प्रभु को पश्य देख । जो प्रभु (वृषभस्य युञ्जम्) = शक्तिशाली को अपने साथ जोड़नेवाले हैं, जो शक्तिशाली को प्राप्त होते हैं । (काष्ठायाः) = दिशाओं के (मध्ये) = मध्य में (शयानम्) = निवास करनेवाले (द्रुघणम्) = संसार वृक्ष को नष्ट करनेवाले प्रभु को [पश्यः] देख । वे प्रभु सब दिशाओं में सर्वत्र व्याप्त हैं, इन प्रभु की उपासना से मनुष्य इस संसार वृक्ष को काट पाता है। प्रभु संसार वृक्ष को छिन्न करके हमारी मुक्ति का साधन बनते हैं । [२] उस प्रभु को देख (येन) = जिससे (पृतनाज्येषु) = संग्रामों में (मुद्गलः) = ओषधि वनस्पतियों का सेवन करनेवाला प्रभु-भक्त (शतवत्) = सौ वर्ष तक ठीक चलनेवाली (सहस्रम्) = प्रसन्नता से युक्त (गवाम्) = इन्द्रियों को (जिगाय) = जीतता है । प्रभु-भक्ति से इन्द्रियों की शक्ति सौ वर्ष तक ठीक बनी रहती है, इन्द्रियाँ प्रसन्न व निर्मल बनी रहती हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु शक्तिशाली को अपने साथ जोड़ते हैं । सर्वत्र व्याप्त होकर संसार वृक्ष के छेदन से हमारे मोक्ष का कारण बनते हैं । इस प्रभु के उपासन से हम इन्द्रियों का विजय कर पाते हैं ।