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इन्द्रो॑ अ॒स्मे सु॒मना॑ अस्तु वि॒श्वहा॒ राजा॒ सोम॑: सुवि॒तस्याध्ये॑तु नः । यथा॑यथा मि॒त्रधि॑तानि संद॒धुरा स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indro asme sumanā astu viśvahā rājā somaḥ suvitasyādhy etu naḥ | yathā-yathā mitradhitāni saṁdadhur ā sarvatātim aditiṁ vṛṇīmahe ||

पद पाठ

इन्द्रः॑ । अ॒स्मे इति॑ । सु॒ऽमनाः॑ । अ॒स्तु॒ । वि॒श्वहा॑ । राजा॑ । सोमः॑ । सु॒वि॒तस्य॑ । अधि॑ । ए॒तु॒ । नः॒ । यथा॑ऽयथा । मि॒त्रऽधि॑तानि । स॒म्ऽद॒धुः । आ । स॒र्वऽता॑तिम् । अदि॑तिम् । वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥ १०.१००.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:100» मन्त्र:4 | अष्टक:8» अध्याय:5» वर्ग:16» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:9» मन्त्र:4


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमात्मा (अस्मे) हमारे लिए (विश्वहा) सर्वदा (सुमनाः) सुमन-अच्छा मन प्राप्त करानेवाला (अस्तु) हो (राजा सोमः) सर्वत्र राजमान प्रेरक परमात्मा (नः) हमारा (सुवितस्य) सुस्तुत वचन का (अधि एतु) स्मरण करे (यथा यथा) जिस-जिस प्रकार से (मित्रधितानि) मित्र परमात्मा के लिए धृत-निश्चित-सेवित वचन (सन्दधुः) परमात्मा में संस्थापित करें, (सर्वतातिम्०) पूर्ववत् ॥४॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा की स्तुति करने से मन अच्छा बनता है और उसके प्रति किये हुए स्तुतिवचन परमात्मा में संस्थापित कर देते हैं, उस जगद्विस्तारक अविनाशी परमात्मा को मानना और अपनाना चाहिये ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभु का अनुग्रह

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (इन्द्रः) = वह परमैश्वर्यशाली प्रभु (अस्मे) = हमारे लिए (विश्वहा) = सदा (सुमनाः अस्तु) = उत्तम मनवाले, अनुग्रहयुक्त चित्तवाले हों । प्रभु का अनुग्रह हमारे पर सदा बना रहे। वे (राजा) = सम्पूर्ण विश्व का शासन करनेवाले (सोमः) = शान्त प्रभु (नः) = हमारे (सुवितस्य) = उत्तम आचरण (अध्येतु) = स्मरण करें [to long, case for ] ध्यान करें, अर्थात् प्रभु की हमारे पर ऐसी कृपा हो कि हम सदा उत्तम ही आचरण करनेवाले बनें। [२] (यथा यथा) = जिस-जिस प्रकार (मित्रधितानि) = उस सबके मित्र प्रभु के द्वारा स्थापित गुणों को (सन्दधुः) = हम अपने में संहित करते हैं, उसी प्रकार हम (सर्वतातिम्) = सब गुणों का विस्तार करनेवाली (अदितिम्) = स्वास्थ्य की देवता को (आवृणीमहे) = सर्वथा वरते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु के अनुग्रह से हम सदा सन्मार्ग से चलें। गुणों को धारण करते हुए हम स्वास्थ्य का वरण करें।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमात्मा (अस्मे-विश्वहा सुमनाः-अस्तु) अस्मभ्यं सर्वदा सुमनो यस्माद् भवति तथाभूतः शोभनमनः प्रापयिता भवतु (राजा सोमः-नः-सुवितस्य-अधि एतु) सर्वत्र राजमानः प्रेरकः परमात्माऽस्माकं सुवितं सुस्तुतं वचनं स्मरतु प्राप्नोतु (यथा यथा) येन येन प्रकारेण (मित्रधितानि सन्दधुः) मित्राय धितानि धृतानि स्तुतिवचनानि-अस्मान् परमात्मनि संस्थापयन्तु (सर्वतातिम्०) पूर्ववत् ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - May Indra, lord of cosmic energy, ever be good and gracious to us, may the refulgent and inspiring soma, spirit of universal peace, bless us with prosperity, may all the divinities bear and bring all the good things of divine value for friends and devotees according to time and need. We honour and adore the universal spirit and power of imperishable eternal mother Infinity.