वांछित मन्त्र चुनें

यो वि॒श्वत॑: सु॒प्रती॑कः स॒दृङ्ङसि॑ दू॒रे चि॒त्सन्त॒ळिदि॒वाति॑ रोचसे। रात्र्या॑श्चि॒दन्धो॒ अति॑ देव पश्य॒स्यग्ने॑ स॒ख्ये मा रि॑षामा व॒यं तव॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo viśvataḥ supratīkaḥ sadṛṅṅ asi dūre cit san taḻid ivāti rocase | rātryāś cid andho ati deva paśyasy agne sakhye mā riṣāmā vayaṁ tava ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। वि॒श्वतः॑। सु॒ऽप्रती॑कः। स॒ऽदृङ्। असि॑। दू॒रे। चि॒त्। सन्। त॒ळित्ऽइ॑व। अति॑। रो॒च॒से॒। रात्र्याः॑। चि॒त्। अन्धः॑। अति॑। दे॒व॒। प॒श्य॒सि॒। अग्ने॑। स॒ख्ये। मा। रि॒षा॒म॒। व॒यम्। तव॑ ॥ १.९४.७

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:94» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:6» वर्ग:31» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:15» मन्त्र:7


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर सभाध्यक्ष और भौतिक अग्नि कैसे हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव) सत्य के प्रकाश करने और (अग्ने) समस्त ज्ञान देनेहारे सभाध्यक्ष ! जैसे (यः) जो (सदृङ्) एक से देखनेवाले (त्वम्) आप (सुप्रतीकः) उत्तम प्रतीति करानेहारे (असि) हैं वा मूर्त्तिमान् पदार्थों को प्रकाशित कराने (दूरे, चित्) दूर ही में (सन्) प्रकट होते हुए सूर्य्यरूप से जैसे (तडिदिव) बिजुली चमके वैसे (विश्वतः) सब ओर से (अति) अत्यन्त (रोचसे) रुचते हैं तथा भौतिक अग्नि सूर्य्यरूप से दूर ही में प्रकट होता हुआ अत्यन्त रुचता है कि जिसके विना (रात्र्याः) रात्रि के बीच (अन्धः, चित्) अन्धे ही के समान (अति, पश्यसि) अत्यन्त देखते-दिखलाते हैं, उस अग्नि के वा (तव) आपके (सख्ये) मित्रपन में (वयम्) हम लोग (मा, रिषाम) प्रीतिरहित कभी न हों ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेष और उपमालङ्कार है। दूरस्थ भी सभाध्यक्ष न्यायव्यवस्थाप्रकाश से जैसे बिजुली वा सूर्य्य मूर्त्तिमान् पदार्थों को प्रकाशित करता है, वैसे गुणहीन प्राणियों को अपने प्रकाश से प्रकाशित करता है, उसके साथ वा उसमें किस विद्वान् को मित्रता न करनी चाहिये किन्तु सबको करना चाहिये ॥ ७ ॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रकाशमय प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - १. (यः) = जो आप (विश्वतः) = सब ओर से (सुप्रतीकः) = शोभन अङ्गों व अग्रभागवाले हैं । प्रभु के अङ्ग व अग्रभाग नहीं हैं, परन्तु जब प्रभु को "सहस्त्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपात्" इन शब्दों में स्मरण करते हैं तब प्रभु को 'विश्वतः सुप्रतीकम्' रूप में देखते हैं । प्रभु सब ओर से तेजोमय ही दीखते हैं । २. (सदृङ् असि) = आप सबके लिए समान हैं, किसी का पक्षपात नहीं करते । प्रभु के राज्य में पूर्ण न्याय हैं, वे किसी के प्रति अन्याय से नहीं वर्तते । ३. हे प्रभो ! (दूरे चित् सन्) = दूर - से - दूर होते हुए भी (तळित् इव) = अत्यन्त समीप की भाँति [तडित् = अन्तिक] (अतिरोचसे) = अतिशयेन देदीप्यमान होते हैं अथवा विद्युत् [तडित्] की भाँति देदीप्यमान हैं । हे देदीप्यमान प्रभो ! (रात्र्याः चित् अन्धः) = रात्रि के अन्धकार को भी (अतिपश्यसि) = [अतीय पश्यसि] लांघकर आप देखनेवाले हैं अथवा प्रकाशित होनेवाले हैं । रात्रि का अन्धकार जीव की भौतिक आँखों के लिए रुकावट हो सकता है, यह आपके लिए रुकावट नहीं हैं । आप तो 'तमसः परस्तात्' - अन्धकार से परे हैं । ४. हे (अग्ने) = प्रकाशमान प्रभो ! (वयम्) = हम (तव सख्ये) = आपकी मित्रता में (मा रिषाम) = हिंसित न हों । अन्धकार ही मार्गभ्रंश व विनाश का कारण बनता है । आपकी उपासना में प्रकाश - ही - प्रकाश है, वहाँ मार्गभ्रंश का भय नहीं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ = प्रभु सब ओर से देदीप्यमान हैं, अन्धकार से परे हैं । प्रकाश के कारण प्रभु की मित्रता में किसी प्रकार का भय नहीं है ।
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सभाध्यक्षभौतिकाग्नी कीदृशावित्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे देवाग्ने त्वं यथा यः सदृङ् सुप्रतीकोऽसि दूरे चित्सन् सूर्यरूपेण विश्वतस्तडिदिवाऽतिरोचसे येन विना रात्र्या मध्येऽन्धश्चिदिवातिपश्यसि तस्य तव सख्ये वयं मा रिषाम ॥ ७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) सभापतिः शिल्पविद्यासाधको वा (विश्वतः) सर्वतः (सुप्रतीकः) सुष्ठुप्रतीतिकारकः (सदृङ्) समानदर्शनः (असि) (दूरे) (चित्) एव (सन्) (तडिदिव) यथा विद्युत्तथा (अति) (रोचसे) (रात्र्याः) (चित्) इव (अन्धः) नेत्रहीनः (अति) (देव) सत्यप्रकाशक (पश्यसि) (अग्ने) (सख्ये०) इति पूर्ववत् ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषालङ्कारः। दूरस्थोऽपि सभाध्यक्षो न्यायव्यवस्थाप्रकाशेन यथा विद्युत्सूर्यो वा स्वप्रकाशेन मूर्त्तद्रव्याणि प्रकाशयति तथा गुणहीनान् प्राणिनः प्रकाशयति तेन सह केन विदुषा मित्रता न कार्याऽपि तु सर्वैः कर्त्तव्येति ॥ ७ ॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, you are the lord who are universally beatific of form and constant of eye. You may be far off, yet you awfully blaze like the explosion of lightning. Even in the darkness of the night you shine and see and reveal things for all. Lord of light and revelation, we pray, may we never suffer ignorance and misery but ever enjoy your company and friendship.
0 बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेष व उपमालंकार आहेत. जशी विद्युत किंवा सूर्य मूर्तिमान पदार्थांना प्रकाशित करतात, तसे दूर असलेला सभाध्यक्ष न्यायव्यवस्थेने गुणहीन प्राण्यांना व्यवस्थित ठेवतो. त्याच्या बरोबर कुणी विद्वानाने नव्हे तर सर्वांनी मैत्री करावी. ॥ ७ ॥