आ प्या॑यस्व॒ समे॑तु ते वि॒श्वत॑: सोम॒ वृष्ण्य॑म्। भवा॒ वाज॑स्य संग॒थे ॥
ā pyāyasva sam etu te viśvataḥ soma vṛṣṇyam | bhavā vājasya saṁgathe ||
आ। प्या॒य॒स्व॒। सम्। ए॒तु॒। ते॒। वि॒श्वतः॑। सो॒म॒। वृष्ण्य॑म्। भव॑। वाज॑स्य। स॒म्ऽग॒थे ॥ १.९१.१६
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
वृष्ण्यं वाजः
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।।।
हे सोम विद्वन् ! वैद्यकवित्ते विश्वतो वृष्ण्यमस्मान् समेत त्वमाप्यायस्व वाजस्य संगथे रोगापहा भव ॥ १६ ॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
How is Soma is taught further in the 16th Mantra.
O virile Vaidya or learned physician! let thy virility or vigour come to us from all sides. Go on growing, or developing. At the time of battle between the armies, be thou the destroyer of diseases.
