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उपो॒ षु शृ॑णु॒ही गिरो॒ मघ॑व॒न्मात॑थाइव। य॒दा नः॑ सू॒नृता॑वतः॒ कर॒ आद॒र्थया॑स॒ इद्योजा॒ न्वि॑न्द्र ते॒ हरी॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

upo ṣu śṛṇuhī giro maghavan mātathā iva | yadā naḥ sūnṛtāvataḥ kara ād arthayāsa id yojā nv indra te harī ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उपो॒ इति॑। सु। शृ॒णु॒हि। गिरः॑। मघ॑ऽवन्। मा। अत॑थाःऽइव। य॒दा। नः॒। सू॒नृता॑ऽवतः। करः॑। आत्। अ॒र्थया॑से। इत्। योज॑। नु। इ॒न्द्र॒। ते॒। हरी॒ इति॑ ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:82» मन्त्र:1 | अष्टक:1» अध्याय:6» वर्ग:3» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:13» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर परमात्मा का उपासक सेनापति कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) सेनापते ! जो (ते) आपके (हरी) धारणाऽऽकर्षण के लिये घोड़े वा अग्नि आदि पदार्थ हैं, उनको (नु) शीघ्र (योज) युक्त करो, प्रियवाणी बोलनेहारे विद्वान् से (अर्थयासे) याच्ञा कीजिये। हे (मघवन्) अच्छे गुणों के प्राप्त करनेवाले ! (नः) हमारी (गिरः) वाणियों को (उपो सु शृणुहि) समीप होकर सुनिये (आत्) पश्चात् हमारे लिये (अतथाइवेत्) विपरीत आचरण करनेवाले जैसे ही (मा) मत हो (यदा) जब हम तुमसे सुखों की याचना करते हैं, तब आप (नः) हमको (सूनृतावतः) सत्य वाणीयुक्त (करः) कीजिये ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि जैसे राजा ईश्वर के सेवक या सेनापति वा सेनापति से पालन की हुई सेना सुखों को प्राप्त होती है, जैसे सभाध्यक्ष प्रजा और सेना के अनुकूल वर्त्तमान करें, वैसे उनके अनुकूल प्रजा और सेना के मनुष्य को आचरण करना चाहिये ॥ १ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अनुग्रह

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे प्रभो ! (उप उ) = हम आपके समीप हों । हे (मघवन्) = सर्वैश्वर्यवान् प्रभो ! (गिरः) = हमारी प्रार्थनावाणियों को (स) = अच्छी प्रकार (शृणुहि) = सुनिए । आप (अ तथाः इव मा) = हमारे प्रतिकूल से मत होओ । हमारा आचरण ऐसा न हो कि हम आपके कृपापात्र न रहें । हमारी सबसे बड़ी कामना यही है कि हम आपके अनुग्रह = भाजन बने २. (यदा) = जब आप (नः) = हमें (सूनृतावतः) = सूनृत प्रिय, सत्य वाणीवाला (करः) = करते हैं, (आत्) = तभी (इत्) = वास्तव में (अर्थयासे) = हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यवान् प्रभो ! आप हमारे इस शरीररूप रथ में (ते हरी) = आपके इन ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रियरूप घोड़ों को (योजा नु) = जोड़िए ही । सर्वोत्तम प्रार्थना यही है कि हमारे ये ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रियरूप घोड़े इस शरीर - रथ में जुतकर हमें उन्नति - पथपर आगे ले - चलनेवाले हों ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ = हम प्रभुकृपा के पात्र हों । सूनृत वाणीवालें हों । ज्ञानेन्द्रियों से ज्ञानप्राप्ति में तथा कर्मेन्द्रियों से यज्ञादि कर्मों में लगे रहें ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तदुपासकः सेनेशः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! यौ ते तव हरी स्तस्तौ त्वं नु योज प्रियवाणीवतो विदुषोऽर्थयासे याचस्व। हे मघवँस्त्वं नोऽस्माकं गिर उपो सुशृणुह्यान्नोऽतथा इवेन्मा भव यदा वयं त्वां सुखानि याचामहे तदा त्वं नोऽस्मान् सूनृतावतः करः ॥ १ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उपो) सामीप्ये (सु) शोभने (शृणुहि) (गिरः) वाणीः (मघवन्) प्रशस्तगुणप्रापक (मा) निषेधे (अतथाइव) प्रतिकूल इव। अत्राऽऽचारे क्विप् तदन्ताच्च प्रत्ययः। (यदा) यस्मिन् काले (नः) अस्माकम् (सूनृतावतः) सत्यवाणीयुक्तान् (करः) कुरु (आत्) आनन्तर्य्ये (अर्थयासे) याचस्व (इत्) एव (योज) युक्तान् कुरु (नु) शीघ्रम् (इन्द्र) परमैश्वर्य्यप्रापक सेनाध्यक्ष (ते) तव (हरी) हरणशीलौ धारणाकर्षणगुणावुत्तमाश्वौ वा ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यथा राजा सुसेवितजगदीश्वरात् सेनापतेर्वा सेनापतिना सुसेविता सेना वा सुखानि प्राप्नोति यथा च सभाद्यध्यक्षाः प्रजासेनाजनानामानुकूल्ये वर्त्तेरंस्तथैवैतेषामानुकूल्ये प्रजासेनास्थैर्भवितव्यम् ॥ १ ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, lord of wealth and glory, listen to our prayer at the closest, not like one distant or different. And when we pray bless us with a voice of sweetness and the light of holy truth. Lord of speed and motion, yoke your horses (and come to join the yajna).
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

अन्वय:

O Indra (Commander-in-Chief of the Army or President of the Council of Ministers) causer of good virtues. quickly yoke your noble virtues of horses or the attributes of upholding and attracting that you possess. You should solicit wisdom from learned persons endowed with true and sweet speech. O Indra leading us towards prosperity listen to our requests and do not be hostile to us. When we solicit happiness from you, make us full of true and sweet speech.

पदार्थान्वयभाषाः - (मघवन्) प्रशस्तगुण प्रापक = Causer of noble virtues. मह-पूजापाम् (हरी) हरणशीलौ धारणाकर्षणगुणौ उत्तमश्वोवा = The attributes of upholding and attracting or good horses,
भावार्थभाषाः - As a King (President of the Assembly or Council of Ministers) enjoys happiness with the help of the Commander of the Army who is devoted to Grd and is well served, or the Army well served or looked after by the commander-in-chief gets delight, and as the President of the Assembly and other officers should always be in accordance with the subjects and the army, in the same manner, the subjects and men of the army should also be in accord and harmony with them.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात सेनापती व ईश्वराच्या गुणांचे वर्णन करण्याने या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी. ॥

भावार्थभाषाः - माणसांनी हे जाणावे की जसे राजाला ईश्वराचा सेवक असलेल्या सेनापतीकडून किंवा सेनापतीकडून पालन केलेल्या सेनेला सुख मिळते. जसे सभाध्यक्षाने प्रजा व सेनेच्या अनुकूल वागावे तसे प्रजेने व सेनेनेही त्याच्या अनुकूल वागावे. ॥ १ ॥