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असि॒ हि वी॑र॒ सेन्योऽसि॒ भूरि॑ पराद॒दिः। असि॑ द॒भ्रस्य॑ चिद्वृ॒धो यज॑मानाय शिक्षसि सुन्व॒ते भूरि॑ ते॒ वसु॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asi hi vīra senyo si bhūri parādadiḥ | asi dabhrasya cid vṛdho yajamānāya śikṣasi sunvate bhūri te vasu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

असि॑। हि। वी॒र॒। सेन्यः॑। असि॑। भूरि॑। प॒रा॒ऽद॒दिः। असि॑। द॒भ्रस्य॑। चि॒त्। वृ॒धः। यज॑मानाय। शि॒क्ष॒सि॒। सु॒न्व॒ते। भूरि॑। ते॒। वसु॑ ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:81» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:6» वर्ग:1» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:13» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वीर सेनापते ! जो तू (हि) निश्चय करके (भूरि) बहुत (सेन्यः) सेनायुक्त (असि) है (भूरि) बहुत प्रकार से (पराददिः) शत्रुओं के बल को नष्ट कर ग्रहण करनेवाला है (दभ्रस्य) छोटे (चित्) और (महतः) बड़े युद्ध का जीतनेवाला (असि) है (वृधः) बल से बढ़ानेवाले वीरों को (शिक्षसि) शिक्षा करता है, उस (सुन्वते) विजय की प्राप्ति करनेहारे (यजमानाय) सुख देनेवाले (ते) तेरे लिये (भूरि) बहुत (वसु) धन प्राप्त हो ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - भृत्य लोग जैसे सेनापतियों से सेना शिक्षित, पाली और सुखी की जाती है, वैसे सेनास्थ भृत्यों से सेनापतियों का पालन और उनको आनन्दित करना योग्य है ॥ २ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सेन्य व वसुमान् प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वीर) = [वि ईर] हमारे शत्रुओं को विशेषरूप से कम्पित करनेवाले प्रभो ! आप (हि) = निश्चय से (सेन्यः) सेनाई = अकेले ही सेना के बराबर (असि) = हैं । अर्जुन इसी विचार से महाभारत में शस्त्रास्त्र से सुसज्जित एक लाख सैन्य को न लेकर निरस्त्र कृष्ण को लेता है । २. हे प्रभो ! आप (भूरि) = खूब ही (पराददिः) शत्रुओं के धनों का आदान = हरण करनेवाले हैं । कामादि का विध्वंस करके उनकी शक्ति अपने भक्तों को प्राप्त कराते हैं । काम = क्रोधादि इनके सेवक बन जाते हैं । ३. हे प्रभो ! आप (दभ्रस्य चित्) = छोटे के भी (वृधः) बढ़ानेवाले (असि) = हैं । (यजमानाय) = शक्तिशाली पुरुष के लिए आप (शिक्षसि) - देने की कामना करते हैं । (सुन्वते) = यज्ञशील पुरुषों के लिए (ते वसु) = आपका धन (भूरि) = मात्रा में प्रचुर होता है और उनका वस्तुतः भरण = पोषण करनेवाला होता है । यज्ञशील पुरुषों के लिए यह धन उन्नति का कारण बनता है । अयज्ञीय पुरुष इस धन से अपने भोगों को बढ़ाकर उन भोगों का ही शिकार हो जाते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ = प्रभु को अपनानेवाला कभी पराजित नहीं होता और उसे कभी धन की कमी नहीं रहती ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे वीर सेनापते! यस्त्वं हि भूरि सेन्योऽसि पराददिरसि दभ्रस्य चिन्महतो युद्धस्यापि विजेतासि वृधो वीरान् शिक्षसि तस्मै सुन्वते यजमानाय ते तुभ्यं भूरि वस्वस्ति ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (असि) (हि) खलु (वीर) शत्रूणां सेनाबलं व्याप्तुं शील (सेन्यः) सेनासु साधुस्सेनाभ्यो हितो वा (भूरि) बहु (पराददिः) पराञ्छत्रूनादाता (असि) (दभ्रस्य) ह्रस्वस्य। दभ्रमिति ह्रस्वनामसु पठितम्। (निघं०३.२) (चित्) अपि (वृधः) ये युद्धे वर्त्तन्ते तान् (यजमानाय) अभयदात्रे (शिक्षसि) युद्धविद्यां ददासि (सुन्वते) सुखानामभिषवित्रे (भूरि) बहु (ते) तुभ्यम् (वसु) उत्तमं द्रव्यम् ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - यथा सेनापतिभिः सेना सदा शिक्षणीया पालनीया हर्षयितव्याऽस्ति, तथैव सेनास्थैः सेनापतयः पालनीयाः सन्तीति ॥ २ ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, you are the valiant hero. You are the warrior taking on many enemies and oppositions at a time. Even the small, you raise to greatness. You lead the creative and generous yajamana to knowledge and power. Hero of the battles of existence, may your wealth, power and honour grow higher and higher.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

How should Indra (Commander of an Army) be is taught further in the Second Mantra.

अन्वय:

O brave commander of the army; thou art well-wisher of the troops and subduer of all hostile forces. Thou art victor of all battles whether small or great. Thou trainest soldiers and art giver of fearlessness and happiness Thou hast abundant wealth of all kinds.

पदार्थान्वयभाषाः - (दभ्रस्य) ह्रस्वस्य | दभ्रमिति ह्रस्वनाम (नघ०३.२) = Of the small' (यजमानाय) अभयदात्रे = for the giver of fearlessness. (सुन्वते) सुखानामभिषवित्रे = Giver of happiness.
भावार्थभाषाः - As it is the duty of the commanders of the armies to train, protect and gladden the men of the army, in the same way, it is the duty of the men of the armies to protect or guard the commanders of the armies.
टिप्पणी: (यजमानाय) is derived from.यज-देवपूजा-संगतिकरण दानेषु Here Rishi Dayananda has taken the third meaning of a or giving of fearlessness or safety.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे सेनापतीकडून सेना प्रशिक्षित करून तिचे पालन केले जाते व ती सुखी केली जाते. तसे सेनापतीने सेनेतील लोकांचेही पालन करावे व आनंदी ठेवावे. ॥ २ ॥