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यद्वृ॒त्रं तव॑ चा॒शनिं॒ वज्रे॑ण स॒मयो॑धयः। अहि॑मिन्द्र॒ जिघां॑सतो दि॒वि ते॑ बद्बधे॒ शवोऽर्च॒न्ननु॑ स्व॒राज्य॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yad vṛtraṁ tava cāśaniṁ vajreṇa samayodhayaḥ | ahim indra jighāṁsato divi te badbadhe śavo rcann anu svarājyam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। वृ॒त्रम्। तव॑। च॒। अ॒शनि॑म्। वज्रे॑ण। स॒म्ऽअयो॑धयः। अहि॑म्। इ॒न्द्र॒। जिघां॑सतः। दि॒वि। ते॒। ब॒द्ब॒धे॒। शवः॑। अर्च॑न्। अनु॑। स्व॒ऽराज्य॑म् ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:80» मन्त्र:13 | अष्टक:1» अध्याय:5» वर्ग:31» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:13» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी अगले मन्त्र में सभाध्यक्ष के गुणों का उपदेश किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययुक्त सभेश ! (स्वराज्यम्) अपने राज्य का (अन्वर्चन्) सत्कार करता हुआ तू (यत्) जैसे (दिवि) आकाश में सूर्य्य (अशनिम्) बिजुली का प्रहार करके (वृत्रम्) कुटिल (अहिम्) मेघ का (बद्बधे) हनन करता है, वैसे (वज्रेण) शस्त्रास्त्रों से सहित अपनी सेनाओं का शत्रुओं के साथ (समयोधयः) अच्छे प्रकार युद्ध करा शत्रुओं को (जिघांसतः) मारनेवाले (तव) आपके (शवः) बल अर्थात् सेना का विजय हो, इस प्रकार वर्त्तमान करनेहारे (ते) आपका (च) यश बढ़ेगा ॥ १३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य अपने बहुत से किरणों से बिजुली और मेघ का परस्पर युद्ध करता है, वैसे ही सेनापति आग्नेय आदि अस्त्रयुक्त सेना को शत्रुसेना के साथ युद्ध करावे। इस प्रकार के सेनापति का कभी पराजय नहीं हो सकता ॥ १३ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

“यत्र ब्रह्म च क्षत्रं च सम्यञ्चौ चरतः सह”

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे (इन्द्र) = वृत्र का संहार करनेवाले जितेन्द्रिय पुरुष ! (यत्) = जब (वृत्रम्) = वासनारूप शत्रु का (अशनिम् च) = [अशनि - fire, अग्नि] और वासना - जनित अग्नि [सन्ताप] का (तव वज्रेण) = तू अपनी क्रियाशीलता से (समयोधयः) = सम्यक् रूप से युद्ध में मुकाबला करता है, उस समय (अहिम्) = [आहन्ति] सब प्रकार से विनाश के कारणभूत इस वृत्र को (जिघांसतः) = मारने की इच्छावाले (ते) = तेरा (शवः) = बल (दिवि) = ज्ञान के प्रकाश में (बद्बधे) = बद्ध व अनुस्यूत होता है, अर्थात् जहाँ तेरा ज्ञान का प्रकाश चमक उठता है वहाँ तेरा ज्ञान बल से अनुस्यूत होता है - तेरा ब्रह्म ‘क्षत्र’ से युक्त होता है । वासना विनष्ट होने पर हमारे ज्ञान व बल की वृद्धि होती है । २. ऐसा होता उसी समय है जबकि यह (इन्द्र अर्चन् अनु स्वराज्यम्) = आत्मशासन की भावना का लक्ष्य करके प्रभु का अर्चन करनेवाला बनता है । प्रभु का अर्चन ही हमें जितेन्द्रिय बनने में समर्थ करता है और तभी हम वृत्र को पूर्णरूप से पराजित कर पाते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - वृत्र व वासना के नष्ट होने पर हममें ज्ञान में अनुस्यूत बल चमक उठता है । हम उस लोक में पहुँच जाते हैं - “यत्र ब्रह्म च क्षत्रं च सम्यञ्चौ चरतः सह” [यजु० २०/२५] ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुन स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! स्वराज्यमन्वर्चंस्त्वं यद्यथा दिवि सूर्य्योऽशनिं प्रहृत्याऽहिं बद्बधे तथा वज्रेण शस्त्रास्त्रैः स्वसेनास्ता शत्रुभिस्सह समयोधयः शत्रून् जिघांसतस्तव शवो बलमुत्तमं भवतु एवं वर्त्तमानस्य ते तव यशश्च वर्धिष्यते ॥ १३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यथा (वृत्रम्) (तव) (च) समुच्चये (अशनिम्) विद्युतम् (वज्रेण) प्रापणेन (समयोधयः) सम्यग्योधयसि (अहिम्) व्यापनशीलं मेघम् (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त (जिघांसतः) हन्तुमिच्छतः (दिवि) आकाशे (ते) तव (बद्बधे) अत्र वाच्छन्दसीति सन् हलादिः शेषो न भवति। (शवः) बलम् (अर्चन्) (अनु) (स्वराज्यम्) ॥ १३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यः किरणसमूहेन विद्युतं वृत्रेण योधयति, तथैव सेनाध्यक्ष आग्नेयास्त्रयुक्ता सेना शत्रुबलेन सह योधयेत्। न हीदृशस्य सेनापतेः कदाचित्पराजयो भवितुं शक्यः ॥ १३ ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, heroic ruler, dedicated in reverence and faith to the freedom and sovereignty of the republic, when you fight Vrtra, the cloud of evil and violence, shoot the force of lightning with your thunderbolt killing the demon, then your valour and fame as killer of the serpent of evil reaches heaven and abides there.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

How is Indra is taught further in the 13th Mantra.

अन्वय:

O Indra (President or King) welcoming thy sovereign authority, even as the sun strikes the crooked clouds with his thunderbolt and shatters them, so do thou make thy well-equipped forces join in full battle with thy foes and destroy the latter. Thy power and fame will thereby advance.

पदार्थान्वयभाषाः - (अशनिम्) विद्युतम् = Lightning. (अहिम् ) व्यापकशीलं मेघम् = Cloud. (अह व्याप्तौ स्वा०) अहिरिति मेघनाम (निघ० १.१० )
भावार्थभाषाः - As the sun with his band of rays, makes the lightning fight with the cloud, in the same manner, the commander of an Army, should make his armies equipped with the weapens of fire or electricity fight with the army of his foes. Such a powerful commander-in chief of an army can not be defeated.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य आपल्या किरणांद्वारे विद्युत व मेघरूपी शत्रूबरोबर युद्ध करतो. तसेच सेनापतीने आग्नेय इत्यादी अस्त्रयुक्त सेनेने शत्रूसेनेबरोबर युद्ध करावे. अशा प्रकारे लढल्यास सेनापतीचा कधी पराजय होऊ शकत नाही. ॥ १३ ॥