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अग्ने॒ वाज॑स्य॒ गोम॑त॒ ईशा॑नः सहसो यहो। अ॒स्मे धे॑हि जातवेदो॒ महि॒ श्रवः॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne vājasya gomata īśānaḥ sahaso yaho | asme dhehi jātavedo mahi śravaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। वाज॑स्य। गोम॑तः। ईशा॑नः। स॒ह॒सः॒। य॒हो॒ इति॑। अ॒स्मे इति॑। धे॒हि॒। जा॒त॒ऽवे॒दः॒। महि॑। श्रवः॑ ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:79» मन्त्र:4 | अष्टक:1» अध्याय:5» वर्ग:27» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:13» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जातवेदः) प्राप्तविज्ञान (अग्ने) विद्युत् के समान विद्या प्रकाशयुक्त विद्वन् ! (सहसः) बलयुक्त पुरुष के (यहो) पुत्र (गोतमः) धन से युक्त (वाजस्य) अन्न के (ईशानः) स्वामी आप (अस्मे) हम लोगों में (महि) बड़े (श्रवः) विद्याश्रवण को (धेहि) धारण कीजिये ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य विद्वान् माता और पिताओं के सन्तान होके माता, पिता और आचार्य्य से विद्या की शिक्षा को प्राप्त होकर बहुत अन्नादि ऐश्वर्य और विद्याओं को प्राप्त हों, वे अन्य मनुष्यों में भी यह सब बढ़ावें ॥ ४ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

महि श्रवः

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे (अग्ने) = अग्रणी (सहसः यहो) = बल के पुत्र, बल के पुतले, शक्ति के पुञ्ज , (जातवेदः) = सर्वज्ञ प्रभो ! आप (गोमतः) = ज्ञान की वाणियोंवाली (वाजस्य) = शक्ति के (ईशानः) = ईशान हैं [गावः = वेदवाचः] । आपमें सम्पूर्ण ज्ञान व सम्पूर्ण शक्ति का समन्वय है और इसी कारण आप अग्रणी व परमेष्ठी - सर्वोच्च स्थान में स्थित हैं । ज्ञान व शक्ति के समन्वय में ही उन्नति है । २. आप (अस्मे) = हममें भी (महिश्रवः) = इस महनीय श्रव [ज्ञान] को (धेहि) = धारण कीजिए । आपकी कृपा से हमें भी यह महनीय ज्ञान प्राप्त हो । शक्ति से युक्त ज्ञान ही महनीय व प्रशंसनीय है । ‘शरीर में शक्ति, मस्तिष्क में ज्ञान’ - ये ही तो आदर्श पुरुष का निर्माण करते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभुकृपा से हमें शक्तियुक्त ज्ञान की प्राप्ति हो । यही ज्ञान हमें उन्नतिपथ पर ले - चलनेवाला होगा ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे जातवेदोऽग्ने ! सहसो यहो गोतमो वाजस्येशानस्त्वमस्मे महि श्रवो धेहि ॥ ४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) विद्युदिव विद्वान् (वाजस्य) अन्नस्य (गोतमः) बहुधेनुधनयुक्तस्य (ईशानः) स्वामी (सहसः) बलयुक्तस्य (यहो) पुत्र (अस्मे) अस्मासु (धेहि) (जातवेदः) जातविज्ञान (महि) महतः (श्रवः) सर्ववेदादिशास्त्रश्रवणम् ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या विदुषां मातापितॄणां सन्ताना भूत्वा मातापित्राचार्य्यैः प्राप्तशिक्षा बह्वन्नैश्वर्य्यविद्याः स्युस्तेऽन्येष्वप्येतत्सर्वं वर्द्धयेयुः ॥ ४ ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, lord of the knowledge of existence, creator and ruler of food, energy and wealths of life and lord of cows and sunbeams, child of omnipotence, bring us the brilliance of knowledge and great splendour of life’s victories.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

How is Agni is taught further in the 4th Mantra.

अन्वय:

O learned person, you who are like the electricity, son of of a powerful virile person and lord of many cows and food material, bestow on us great knowledge of the Vedas and other Shastras.

पदार्थान्वयभाषाः - (कवि:) सर्वविद्यावित् = Knower of all sciences. (दीदिहि) भृशं प्रकाशय = Illumiuate. दोदियति ज्वलतिकर्मा (निघ० १.१६ )
भावार्थभाषाः - Those men who being the sons of learned parents, educated by the father, mother and precepters obtain much food material, wealth. and knowledge, should also multiply these things in others.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसं विद्वान माता-पिता यांची संतती असते ती माता-पिता आचार्य यांच्याद्वारे विद्येचे शिक्षण घेऊन पुष्कळ अन्न इत्यादी ऐश्वर्य व विद्या प्राप्त करते त्यांनी इतर माणसांनाही ते द्यावे व वर्धित करावे. ॥ ४ ॥