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एह्य॑ग्न इ॒ह होता॒ नि षी॒दाद॑ब्धः॒ सु पु॑रए॒ता भ॑वा नः। अव॑तां त्वा॒ रोद॑सी विश्वमि॒न्वे यजा॑ म॒हे सौ॑मन॒साय॑ दे॒वान् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ehy agna iha hotā ni ṣīdādabdhaḥ su puraetā bhavā naḥ | avatāṁ tvā rodasī viśvaminve yajā mahe saumanasāya devān ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। इ॒हि॒। अ॒ग्ने॒। इ॒ह। होता॑। नि। सी॒द॒। अद॑ब्धः। सु। पु॒रः॒ऽए॒ता। भ॒व॒। नः॒। अव॑ताम्। त्वा॒। रोद॑सी॒ इति॑। वि॒श्व॒मि॒न्वे इति॑ वि॒श्व॒म्ऽइ॒न्वे। यज॑। म॒हे। सौ॒म॒न॒साय॑। दे॒वान् ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:76» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:5» वर्ग:24» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:13» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उस विद्वान् की प्रार्थना किसलिये करनी चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) सबके उपकार करनेवाले विद्वान् ! (अदब्धः) अहिंसक हम लोगों को सेवा करने योग्य आप (इह) इस संसार में (होता) देनेवाले (नः) हम लोगों को (आ, इहि) प्राप्त हूजिये (सु) अच्छे प्रकार (नि) नित्य (सीद) ज्ञान दीजिये (पुरएता) पहिले प्राप्त करनेवाले (भव) हूजिये जिस (त्वा) आपको (विश्वमिन्वे) सब संसार को तृप्त करनेवाले (रोदसी) विद्याप्रकाश और भूगोल का राज्य अथवा आकाश और पृथिवी (अवताम्) प्राप्त हों, सो आप (महे) बड़े (सौमनसाय) मन का वैरभाव छुड़ाने के लिये (देवान्) विद्वान् दिव्य गुणों को स्वात्मा में (यज) संगत कीजिये ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - इस प्रकार सत्यभाव से प्रार्थना किया हुआ परमेश्वर और सेवा किया हुआ धर्मात्मा विद्वान् सब सुख मनुष्यों को देता है ॥ २ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभु के नेतृत्व में

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे (अग्ने) परमात्मन् ! (एहि) = आइए (इह) = इस हमारे शान्त हृदय में होता - सब आवश्यक धनों के देनेवाले होकर (निषीद) = विराजमान होओ । हमारा पवित्र व शान्त हृदय प्रभु का निवासस्थान बने । वे प्रभु हमें सब आवश्यक वस्तुओं के देनेवाले हों । २. हे (अदब्धः) = हिंसित न होनेवाले प्रभो ! आप (नः) = हमारे (पुरः) = आगे (एता) = चलनेवाले (सुभव) = उत्तमता से होओ । आप ही हमारा उत्तमता से नेतृत्व कीजिए । आपके नेतृत्व में हम जीवन - यात्रा को उत्तमता से पूर्ण करनेवाले बनें । ३. (विश्वं इन्वे) = सबको व्याप्त करनेवाले (रोदसी) = द्युलोक व पृथिवीलोक (त्वा अवताम्) = [अव - वृद्धि] आपका वर्धन करनेवाले हों । इस द्युलोक व पृथिवीलोक में मुझे आपकी महिमा का दर्शन हो । मैं आपकी भावना को हृदय में दृढ़ता से स्थापित करनेवाला बनूं । ४. हे प्रभो ! इस प्रकार सर्वत्र आपकी महिमा को देखते हुए और आपके भाव को हृदय में बढ़ाते हुए हम (सौमनसाय) = उत्तम मनवाले होने के लिए (देवान्) = देवों को (यजामहे) = उपासित करते हैं, इनके सम्पर्क से दिव्य गुणों को अपने साथ संगत करते हैं और दान की वृत्तिवाले होते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - हृदयस्थ प्रभु की प्रेरणा ही हमारा नेतृत्व करे । हम सर्वत्र प्रभु की महिमा को देखें और देवों का संग करते हुए उत्तम मनवाले बनें ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स किमर्थं प्रार्थनीय इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे अग्नेऽदब्धस्त्वमिह नो होतेहि सुनिषीद पुरएता भव यं त्वां विश्वमिन्वे रोदसी अवतां स त्वं महे सौमनसाय देवान् यज ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (इहि) प्राप्नुहि (अग्ने) विश्वोपकारक (इह) अस्मिन् संसारे (होता) दाता सन् (नि) नित्यम् (सीद) आस्व (अदब्धः) अस्माभिरहिंसितोऽतिरस्कृतः (सु) सुष्ठु (पुरएता) पूर्वं प्राप्तः (भव) (नः) अस्मान् (अवताम्) रक्षेताम् (त्वा) त्वाम् (रोदसी) विद्याप्रकाशभूमिराज्ये द्यावापृथिव्यौ वा (विश्वमिन्वे) विश्वतर्पके (यज) सङ्गच्छस्व (महे) महते (सौमनसाय) मनसो निर्वैरत्वाय (देवान्) विदुषो दिव्यगुणान् वा ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - एवं सत्यभावेन प्रार्थितः परमेश्वरः सेवितो धार्मिको विद्वान् वा सर्वमेतन्मनुष्येभ्यो ददाति ॥ २ ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, lord of kindness and benevolence, come to us fearless and bold and lead our yajna as high-priest to take us forward. May the heaven and earth which sustain the world be with you. Come to the noblest brilliancies of humanity for the sake of peace and joy of the mind and soul.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

What for should Agni be prayed is taught in the second Mantra.

अन्वय:

(1) O doer of good to all, you are irresistible. Being giver of happiness, come to us in this world and take your seat: Be our leader. May heaven and earth that gratify all and kingdom of the State protect you: Unite all enlightened persons or divine virtues for making your mind free from all feeling of animosity. (2) With slight difference, this prayer is also addressed to God who is irresistible and our True Leader. May Heaven and earth express Thy Glory to us and unite all enlightened persons and divine virtues for making the mind free from all enemity or malice.

पदार्थान्वयभाषाः - (अदब्ध:) अस्माभिः अहिंसितः अतिरस्कृतः । = Not violated or insulted by us or irresistible. (रोदसी) विद्याप्रकाशभूमिराज्ये द्यावापृथिव्यौ वा । = The light of knowledge and the kingdom of the State or heaven aad earth. (सौमनसाय) मनसो निर्वैरत्वाय । = For making mind free from animosity or malice
भावार्थभाषाः - Thus God when prayed sincerely and a righteous learned persons when served all knowledge etc.to mean.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या प्रकारे सत्यभाव बाळगून प्रार्थना केलेला ईश्वर व सम्मानित धार्मिक विद्वान माणसांना सर्व सुख देतो. ॥ २ ॥