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ति॒स्रो यद॑ग्ने श॒रद॒स्त्वामिच्छुचिं॑ घृ॒तेन॒ शुच॑यः सप॒र्यान्। नामा॑नि चिद्दधिरे य॒ज्ञिया॒न्यसू॑दयन्त त॒न्वः१॒॑ सुजा॑ताः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tisro yad agne śaradas tvām ic chuciṁ ghṛtena śucayaḥ saparyān | nāmāni cid dadhire yajñiyāny asūdayanta tanvaḥ sujātāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ति॒स्रः। यत्। अ॒ग्ने॒। श॒रदः॑। त्वाम्। इत्। शुचि॑म्। घृ॒तेन॑। शुच॑यः। स॒प॒र्यान्। नामा॑नि। चि॒त्। द॒धि॒रे॒। य॒ज्ञिया॑नि। असू॑दयन्त। त॒न्वः॑। सुऽजा॑ताः ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:72» मन्त्र:3 | अष्टक:1» अध्याय:5» वर्ग:17» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:12» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे उन वेदों को किसलिये पढ़ें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! (यत्) जो (शुचयः) पवित्र (सुजाताः) विद्याक्रियाओं में उत्तम कुशलता से प्रसिद्ध मनुष्य (शुचिम्) पवित्र (त्वाम्) तुझको (तिस्रः) तीन (शरदः) शरद् ऋतुवाले संवत्सरों को (सपर्यान्) सेवन करें, वे (इत्) ही (यज्ञियानि) कर्म्म, उपासना और ज्ञान को सिद्ध करने योग्य व्यवहार (नामानि) अर्थज्ञान सहित संज्ञाओं को (दधिरे) धारण करें (चित्) और (घृतेन) घृत वा जलों के साथ (तन्वः) शरीरों को भी (असूदयन्त) चलावें ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - कोई भी मनुष्य वेदविद्या के विना पढ़े विद्वान् नहीं हो सकता और विद्याओं के विना निश्चय करके मनुष्य जन्म की सफलता तथा पवित्रता नहीं होती, इसलिये सब मनुष्यों को उचित है कि धर्म्म का सेवन नित्य करें ॥ ३ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

तीन वर्ष तक

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (यत्) = जो (तिस्रः शरदः) = तीन वर्ष तक निरन्तर (शुचिम्) = अत्यन्त पवित्र (त्वाम्) = आपकी (शुचयः) = पवित्र ज्ञानवाले बनकर (इत्) = निश्चय से (घृतेन) = मलों के क्षरण से तथा ज्ञान की दीप्ति से (सपर्यान्) = पूजा करते हैं तथा (यज्ञियानि) = संगतिकरण योग्य अथवा पूज्य [पवित्र] (नामानि चित्) = नामों को भी (दधिरे) = धारण करते हैं, अर्थात् आपके पवित्र नामों का उच्चारण करते हैं तो वे (सुजाताः) = उत्तम विकासवाले व्यक्ति (तन्वः) = अपने शरीरों को (असूदयन्त) = सूदूर फेंक [Throw away] देते हैं, अर्थात् वे फिर जन्म - मरण के चक्र में नहीं फँसते । २. इस प्रकार प्रस्तुत मन्त्र में जन्म - मरण के चक्र से बचने के लिए साधन के रूप में दो बातें उपस्थित की गई हैं - [क] एक तो यह कि तीन वर्ष तक निरन्तर अपने को पवित्र बनाने का प्रयत्न करते हुए उस पवित्र प्रभु का प्रातः - सायं उपासन करें और [ख] दूसरा यह कि खाली समय में प्रभु के पवित्र नामों का उच्चारण करें । इन दोनों साधनों के अवलम्बन से हमारे जीवन का उत्तम विकास होगा और जीवन का उद्देश्य पूर्ण होकर पुनः जन्म लेना अनावश्यक हो जाएगा । हम मुक्ति के योग्य हो जाएँगे ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - साधना के लिए हम तीन वर्ष तक अविच्छिन्नरूप से प्रतिदिन प्रभु की उपासना करें और प्रभु के पवित्र नामों का उच्चारण करें ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तं किमर्थमधीयीरन्नित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! यद्ये शुचयः सुजाता मनुष्याः शुचिं त्वां तिस्रः शरदः सपर्यान् त इद्यज्ञियानि नामानि दधिरे चिदपि घृतेन तन्वस्तनूरसूदयन्त ॥ ३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तिस्रः) त्रित्वसंख्याविशिष्टान् (यत्) ये (अग्ने) विद्वन् (शरदः) शरदृत्वन्तान् संवत्सरान् (त्वाम्) तम् (इत्) एव (शुचिम्) पवित्रम् (घृतेन) आज्येनोदकेन वा (शुचयः) पवित्राः सन्तः (सपर्यान्) परिचरेयुः सेवेरन् (नामानि) अर्थज्ञानक्रियासहिताः संज्ञाः (चित्) अपि (दधिरे) दधति (यज्ञियानि) कर्मोपासनाज्ञानसम्पादनार्हाणि कर्माणि (असूदयन्त) संचालयेयुः (तन्वः) तनूः (सुजाताः) विद्याक्रियासुकौशले सुष्ठु प्रसिद्धाः ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - नहि कश्चिदपि वेदाननधीत्य विद्याः प्राप्नोति, नहि विद्याभिर्विना मनुष्यजन्मसाफल्यं पवित्रता च जायते, तस्मात्सर्वैर्मनुष्यैरेतत्कर्म प्रयत्नेन सदैवानुष्ठेयम् ॥ ३ ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, lord of light and cosmic yajna of evolution, those people of pure and dedicated soul who serve you, lord of purity, for three years with oblations of ghrta in yajna would justify their name with fame and yajnic karma and also perfect their physical existence in perfect bodies reborn in happy and enlightened homes.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

Why should men study the Vedas is taught further in the third mantra.

अन्वय:

O learned man, Those pure and famous persons on account of their knowledge (theoretical and practical), who serve thee that art pure for three years, uphold the actions that enable them to acquire knowledge, meditate and perform noble deeds and then develop their bodies with proper use of the water and ghee [clarified butter].

पदार्थान्वयभाषाः - (यज्ञियानि) कर्मोपासनाज्ञानसम्पादनार्हाणि कर्माणि ॥ = Noble deeds that enable one to have pure acts, meditation and knowledge. (असूदयन्त) संचालयेयुः = Direct (सुजाता: विद्याक्रियासुकौशले सुष्ठु प्रसिद्धाः = Famous in knowledge, arts and industries. (घृतेन) आज्येन उदकेन वा = With Ghee or water.
भावार्थभाषाः - No can get true knowledge without the study of the Vedas. Without knowledge, it is not possible for any one to make human life fruitful and to obtain purity. Therefore all men should study the Vedas well.
टिप्पणी: घृतम् इति उदकनाम (निघ० १.१२) घृ-क्षरणदीप्त्योः So it stands for the Ghee or clarified butter also.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - कोणताही माणूस वेदविद्या शिकल्याशिवाय विद्वान होऊ शकत नाही व विद्येशिवाय निश्चयाने मनुष्य जन्माची सफलता व पवित्रता उत्पन्न होत नाही त्यासाठी सर्व माणसांनी धर्माचा स्वीकार करावा. ॥ ३ ॥