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य एक॑श्चर्षणी॒नां वसू॑नामिर॒ज्यति॑। इन्द्रः॒ पञ्च॑ क्षिती॒नाम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ya ekaś carṣaṇīnāṁ vasūnām irajyati | indraḥ pañca kṣitīnām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। एकः॑। च॒र्ष॒णी॒नाम्। वसू॑नाम्। इ॒र॒ज्यति॑। इन्द्रः॑। पञ्च॑। क्षि॒ती॒नाम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:7» मन्त्र:9 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:14» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

सब प्रकार से सब का सहायकारी परमेश्वर ही है, इस विषय को अगले मन्त्र में प्रकाश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (इन्द्रः) दुष्ट शत्रुओं का विनाश करनेवाला परमेश्वर (चर्षणीनाम्) मनुष्य (वसूनाम्) अग्नि आदि आठ निवास के स्थान, और (पञ्च) जो नीच, मध्यम, उत्तम, उत्तमतर और उत्तमतम गुणवाले पाँच प्रकार के (क्षितीनाम्) पृथिवी लोक हैं, उन्हीं के बीच (इरज्यति) ऐश्वर्य के देने और सब के सेवा करने योग्य परमेश्वर है, वह (एकः) अद्वितीय और सब का सहाय करनेवाला है॥९॥
भावार्थभाषाः - जो सब का स्वामी अन्तर्यामी व्यापक और सब ऐश्वर्य्य का देनेवाला, जिसमें कोई दूसरा ईश्वर और जिसको किसी दूसरे की सहाय की इच्छा नहीं है, वही सब मनुष्यों को इष्ट बुद्धि से सेवा करने योग्य है। जो मनुष्य उस परमेश्वर को छोड़ के दूसरे को इष्ट देव मानता है, वह भाग्यहीन बड़े-बड़े घोर दुःखों को सदा प्राप्त होता है॥९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

श्रम वे धनप्राप्ति [चर्षणियों के लिए वसु]

पदार्थान्वयभाषाः - १. प्रभु वे हैं (यः) - जो (एकः) - अकेले ही (चर्षणीनाम्) - श्रमशील मनुष्यों के तथा (वसूनाम्) - निवास के लिए सब आवश्यक धनों के (इरज्यति) - ईश हैं । प्रभु को अपने कार्यों के लिए किसी अन्य की सहायता नहीं लेनी होती । वे अपनी सर्वशक्तिमत्ता से सब कार्यों को सदा स्वयं कर रहे हैं ।  २. प्रभु को यही बात प्रिय है कि 'मनुष्य श्रमशील हो । चर्षणि  , अर्थात् कर्षणि व कृषि आदि श्रमयुक्त कार्यों के करनेवाले व्यक्ति ही प्रभु की कृपा के पात्र होते हैं । इन्हें प्रभु सब आवश्यक धनों को प्राप्त कराते हैं । यह भावना 'चर्षणीनां व वसूनां' शब्दों का साथ - साथ प्रयोग करके व्यक्त की जा रही है ।  ३. (इन्द्रः) - वे परमैश्वर्यशाली प्रभु (पञ्च) - पाँचों (क्षितीनाम्) - मनुष्यों के ईश हैं । मानव - समाज 'ब्राह्मण  , क्षत्रिय  , वैश्य  , शूद्र व निषाद' इन पाँच वर्गों में विभक्त है । प्रभु सभी के ईश हैं  , सभी का कल्याण करनेवाले हैं । 
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु अपनी सर्वशक्तिमत्ता से सब मनुष्यों के ईश हैं । श्रमशील पुरुषों के लिए वसु - धन प्राप्त करानेवाले हैं ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

ईश्वर एव सर्वथा सहायकार्य्यस्तीत्युपदिश्यते

अन्वय:

य इन्द्रश्चर्षणीनां वसूनां पञ्चानां क्षितीनामिरज्यति स एकोऽस्ति॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) परमेश्वरः (एकः) अद्वितीयः (चर्षणीनाम्) मनुष्याणाम्। चर्षणय इति मनुष्यनामसु पठितम्। (निघं०२.३) (वसूनाम्) अग्न्याद्यष्टानां वासहेतूनां लोकानाम् (इरज्यति) ऐश्वर्य्यं दातुं सेवितुं च योग्योऽस्ति। इरज्यतीत्यैश्वर्य्यकर्मसु पठितम्। (निघं०२.२१) परिचरणकर्मसु च। (निघं०३.५) (इन्द्रः) दुष्टानां शत्रूणां विनाशकः (पञ्च) निकृष्टमध्यमोत्तमोत्तमतरोत्तमतमानां पञ्चविधानाम् (क्षितीनाम्) पृथिवीलोकानां मध्ये। क्षितिरिति पृथिवीनामसु पठितम्। (निघं०१.१)॥९॥
भावार्थभाषाः - यः सर्वाधिष्ठाता सर्वान्तर्यामी व्यापकः सर्वैश्वर्यप्रदोऽद्वितीयोऽसहायो जगदीश्वरः सर्वजगतो रचको धारक आकर्षणकर्त्तास्ति, स एव सर्वैर्मनुष्यैरिष्टत्वेन सेवनीयोऽस्ति। यः कश्चित्तं विहायान्यमीश्वरभावेनेष्टं मन्यते स भाग्यहीनः सदा दुःखमेव प्राप्नोति॥९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - One and only one without a second is Indra, lord supreme of the universe, the lord who rules and guides humanity, showers treasures of wealth, and sustains and ultimately disposes the five orders of the universe.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

God only is our True Helper is taught in the ninth Mantra.

अन्वय:

God who rules over all men, all riches and all worlds of five kinds where creatures dwell is only One. He alone should be worshipped.

पदार्थान्वयभाषाः - (पंचक्षितीनाम् ) निकृष्टमध्यमोत्तमोत्तमतरोत्तमतमानां पंचविधानाम् ( क्षितीनाम् ) पृथिवीलोकानांमध्ये | क्षितिरिति पृथिवीनामसु पठितम् ॥ [ निघ० १.१.९ ] = The earth and other worlds. चर्षणय इति मनुष्यनाम ( निघ० २. ३ ) = Men. ( इरज्यति ) ऐश्वर्य दातुं सेवितुं च योग्यः इरज्यतीतिऐश्वर्य कर्मसु पठितम् ( निघ० २.२१ ) = Rules and gives wealth.
भावार्थभाषाः - God alone Who is the Supreme Ruler of all, the Inner most Omnipresent Spirit, Giver of all wealth (internal and external) un-paralleled, only One, the Creator of the world attracting all towards Himself, should be worshipped by all as Adorable. That unfortunate person who regards anyone else as Adorable in the place of one God, always suffers and becomes miserable.
टिप्पणी: By पञ्चक्षितीनाम् may be taken all mankind क्षितयइति मनुष्यनाम ( निघ० २. ३ ) divided according to the Nirukta into चत्वारो वर्णा निषादपञ्चमाः four Varnas and Nishadas or sinners.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो सर्वांचा स्वामी, अन्तर्यामी, व्यापक, सर्व ऐश्वर्यदाता, जगनिर्माता, धारणकर्ता व आकर्षणकर्ता, साह्यकर्ता व अद्वितीय आहे त्याचीच सर्व माणसांनी इष्ट बुद्धीने सेवा करावी. जो माणूस त्या परमेश्वराला सोडून दुसऱ्याला इष्ट देव मानतो तो भाग्यहीन असून सदैव अत्यंत दुःख भोगतो. ॥ ९ ॥