वांछित मन्त्र चुनें

तत्तु ते॒ दंसो॒ यदह॑न्त्समा॒नैर्नृभि॒र्यद्यु॒क्तो वि॒वे रपां॑सि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tat tu te daṁso yad ahan samānair nṛbhir yad yukto vive rapāṁsi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तत्। तु। ते॒। दंसः॑। यत्। अह॑न्। स॒मा॒नैः। नृऽभिः॑। यत्। यु॒क्तः। वि॒वेः। रपां॑सि ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:69» मन्त्र:8 | अष्टक:1» अध्याय:5» वर्ग:13» मन्त्र:8 | मण्डल:1» अनुवाक:12» मन्त्र:8


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह विद्वान् कैसा है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जो आपके (एताः) ये (व्रता) व्रत हैं वे कोई भी (नकिः) नहीं (मिनन्ति) हिंसा कर सकते हैं (यत्) जो आप (एभ्यः) इन (नृभ्यः) मनुष्यों के लिये (यत्) जिस (श्रुष्टिम्) शीघ्र सत्यविद्यासमूह को (चकर्थ) करते हो वा (रंपासि) सत्कर्म और व्यक्त उपदेशयुक्त वचनों को (विवेः) प्राप्त करते हो तथा (यत्) जो (ते) आप का (इदम्) यह (समानैः) विद्यादि गुणों में तुल्य (नृभिः) मनुष्यों के साथ (दंसः) कर्म है (तत्) उसको (तु) कोई मनुष्य (नकिः) नहीं (अहन्) हनन कर सकता, जो (युक्तः) युक्त होकर आप करते हो, उसको हम लोग भी सत्य ही जानते हैं ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्यों को चाहिये कि जैसे परमेश्वर वा पूर्णविद्यायुक्त विद्वान् पक्षपात छोड़कर मनुष्यादि प्राणियों में सत्य उपकार करनेवाले कर्मों के साथ वर्त्तमान है वैसे सदा वर्त्ते ॥ ४ ॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

व्रतपालन व क्लेशविनाश

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे प्रभो ! यह ठीक है (यत्) = कि जो भी (ते) = आपके (एता व्रता) = इन व्रतों को वेदोपदिष्ट पुण्यकर्मों को (नकिः मिनन्ति) = नष्ट नहीं करते हैं, आप (एभ्यः नृभ्यः) = इन प्रगतिशील व्यक्तियों के लिए (श्रुष्टिम्) = सुख को (चकर्थ) = करते हैं । जो मनुष्य व्रतमय जीवन बिताते हैं, प्रभु उन्हें सुख देते हैं । पुण्य का परिणाम क्लेशों का नाश है । २. (तत्) = वह (तु) = तो (ते) = आपका (दंसः) = दर्शनीय कर्म है (यत्) = कि आप (अहन्) = सब विघ्नों को - विघ्नभूत व्यक्तियों को नष्ट करते हैं । आपकी कृपा से सब शुभ कर्म पूर्ण हुआ करते हैं । ३. हे प्रभो ! आप (समानः) = सबमें सम वृत्तिवाले अथवा [सम् आनयति] सबको उत्साहित करनेवाले (नृभिः) = पुरुषों से (यत् युक्तः) = जब युक्त होते हैं तब उन्हें निमित्त बनाकर (रपांसि) = सब दोषों को (विवेः) = दूर करते हैं । आप इन पुरुषों के द्वारा प्रजा में इस प्रकार उत्साहयुक्त प्रेरणा प्राप्त कराते हैं कि उन प्रजाओं के जीवनों से दोष दूर होकर उनमें शुभ गुणों का संचार होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - व्रतपालन से क्लेश नष्ट होते हैं ।
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! यानि ते तवैतानि व्रतानि सन्ति तानि केऽपि न मिनन्ति। तानि कानीत्याह। यत्त्वमेभ्यो नृभ्यो यं श्रुष्टिं चकर्थ रपांसि विवेः। यत्ते तवेदं समानैर्नृभिः सह दंसोऽस्ति, तत्तु कश्चिदपि नकिरहन् हन्ति ॥ ४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नकिः) नहि (ते) तव (एताः) एतानि (व्रता) व्रतानि शीलानि (मिनन्ति) हिंसन्ति (नृभ्यः) मनुष्यादिभ्यः (यत्) यम् (एभ्यः) वर्त्तमानेभ्यः (श्रुष्टिम्) शीघ्रम् (चकर्थ) करोति (तत्) वक्ष्यमाणम् (तु) पश्चादर्थे (ते) तव (दंसः) कर्म (यत्) यैः (युक्तः) सहितः (विवेः) प्राप्नोषि। अत्र बहुलं छन्दसीति श्लुः। (रपांसि) व्यक्तोपदेशप्रकाशकानि शोभनानि वचनानि ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - सर्वेर्मनुष्यैर्यथा परमेश्वर आप्तो विद्वान् वा पक्षपातं विहाय मनुष्यादिषु सत्यैरुपकारैः कर्मभिः सह वर्त्तते, तथैव सदा वर्त्तितव्यम् ॥ ४ ॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, none of these people violate your laws and discipline since you do good to them, for them. Agni, Lord of light and life, it is your grand act of generosity that you, joining with people of equality, repair their infirmities and ward off their sins without doing violence to anyone or anything.
0 बार पढ़ा गया

आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

How is he (Agni) is taught further in the fourth Mantra.

अन्वय:

O learned person, none can violate or break these holy vows and laws of thine when thou men and utterest good words of instruction and advice. This is thy most admirable action that with the cooperation of thy comrades, thou smitest down all wicked foes.

पदार्थान्वयभाषाः - (मिनन्ति) हिंसन्ति मीञ-हिंसायाम् = Violate. (श्रुष्टिम् ) शीघ्रम् = Quickly. (रपांसि ) व्यक्तोपदेशप्रकाशकानि शोभनानि वचनानि = Good words of instruction and advice.
भावार्थभाषाः - All men should behave as God or a learned person true in mind, word and deed perform benevolent acts without prejudice or partiality.