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सेने॑व सृ॒ष्टामं॑ दधा॒त्यस्तु॒र्न दि॒द्युत्त्वे॒षप्र॑तीका ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

seneva sṛṣṭāmaṁ dadhāty astur na didyut tveṣapratīkā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सेना॑ऽइव। सृ॒ष्टा। अम॑म्। द॒धा॒ति॒। अस्तुः॑। न। दि॒द्युत्। त्वे॒षऽप्र॑तीका ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:66» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:5» वर्ग:10» मन्त्र:7 | मण्डल:1» अनुवाक:12» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग जो सेनापति (यमः) नियम करनेवाला (जातः) प्रकट (यमः) सर्वथा नियमकर्त्ता (जनित्वम्) जन्मादि कारणयुक्त (कनीनाम्) कन्यावत् वर्त्तमान रात्रियों के (जारः) आयु का हननकर्त्ता सूर्य के समान (जननीनाम्) उत्पन्न हुई प्रजाओं का (पतिः) पालनकर्त्ता (सृष्टा) प्रेरित (सेनेव) अच्छी शिक्षा को प्राप्त हुई वीर पुरुषों की विजय करनेवाली सेना के समान (अस्तुः) शत्रुओं के ऊपर अस्त्र-शस्त्र चलानेवाले (त्वेषप्रतीका) दीप्तियों के प्रतीति करनेवाले (दिद्युन्न) बिजुली के समान (अमम्) अपरिपक्व विज्ञानयुक्त जन को (दधाति) धारण करता है, उसका सेवन करो ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि विद्या से अच्छे प्रयत्न द्वारा जैसे की हुई उत्तम शिक्षा से सिद्ध की हुई सेना शत्रुओं को जीत कर विजय करती है, जैसे धनुर्वेद के जाननेवाले विद्वान् लोग शत्रुओं के ऊपर शस्त्र-अस्त्रों को छोड़ उनका छेदन करके भगा देते हैं, वैसे उत्तम सेनापति सब दुःखों का नाश करता है, ऐसा तुम जानो ॥ ४ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

कनीनां जारः

पदार्थान्वयभाषाः - १. वे प्रभु अपने भक्त के अन्तः करण में (अमं दधाति) = शक्ति को उसी प्रकार धारण करते हैं (इव) = जिस प्रकार (सृष्टा सेना) = प्रेरित की हुई सेना बल को धारण करती है । २. प्रभु की उपासना से उपासक की शक्ति (अस्तुः) = अस्त्र फेंकनेवाले की (त्वेषप्रतीका) = दीप्त मुखवाली (विद्यत् न) = वज्र के समान होती है । जैसे वज्र शत्रुओं का संहार करता है, वैसे ही उपासक की शक्ति वासनारूप शत्रुओं का संहार करती है । ३. उपासक के लिए (यमः) = सर्वनियन्ता प्रभु (ह) = निश्चय से (जातः) = प्रादुर्भूत हुए हैं । (यमः) = वह नियन्ता प्रभु ही (जनित्वम्) = उपासक की शक्तियों के विकास के कारण हैं । वे प्रभु (कनीनां जारः) = [कनयति - to lessen] न्यूनताओं को जीर्ण करनेवाले हैं तथा (जनीनाम्) = विकासों के (पतिः) = रक्षक हैं, अर्थात् वे प्रभु न्यूनताओं को दूर करके हमारे विकास का कारण बनते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - उपासना से शक्ति प्राप्त होती है, जीवन का विकास होता है, न्यूनताएँ दूर होती हैं तथा विकास की वृद्धि व रक्षण होता है ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यूयं योऽयं सेनेशो जातो यमो जनित्वं कनीनां जार इव जनीनां पतिश्चाऽस्ति, स सृष्टा सेनेवास्तुस्त्वेषप्रतीका दिद्युन्नेवादधाति तं भजत ॥ ३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सेनेव) यथा (सुशिक्षिता) वीरपुरुषाणां विजयकर्त्री सेनास्ति तथाभूतः (सृष्टा) युद्धाय प्रेरिता (अमम्) अपरिपक्वविज्ञानं जनम् (दधाति) धरति (अस्तुः) शत्रूणां विजेतुः प्रक्षेप्तुः (न) इव (दिद्युत्) विच्छेदिका (यमः) नियन्ता (ह) किल (जातः) प्रकटत्वं गतः (यमः) सर्वोपरतः (जनित्वम्) जन्मादिकारणम् (जारः) हन्ता सूर्य्यः (कनीनाम्) कन्येव वर्त्तमानानां रात्रीणां सूर्य्यादीनां वा (पतिः) पालयिता (जनीनाम्) जनानां प्रजानाम् ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्विद्यया सम्यक् प्रयत्नेन यथा सुशिक्षिता सेना शत्रून् विजित्य विजयं करोति। यथा च धनुर्वेदविदः शत्रूणामुपरि शस्त्रास्त्राणि प्रक्षिप्यैतान् विच्छिद्य प्रलयं गमयन्ति, तथैवोत्तमः सेनाऽधिपतिः सर्वदुःखानि नाशयतीति बोद्धव्यम् ॥ ४ ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Like an army sent up to advance in battle, it wields power and force. Like an electric missile of fire it is blazing and voracious, a symbol of light and fire. It is the guide, controller, and destiny of all that is born, and the guide, controller and destiny of all that is on way to life. It is the paramour of maidens and the protector of wives.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

How is he (a great leader) is taught further in the seventh Mantra.

अन्वय:

O men, you should admire that Agni (commander of the Army) who terrifies his enemies like a powerful army sent, who is like the bright pointed shaft of an archer against an army, who is controller of all that are born and will be born and free from passions. He is like the sun dispeller of the darkness of the nights and protector of all people.

पदार्थान्वयभाषाः - (कनीनांजार:) कन्येव वर्तमानानां रात्रीणां हन्ता सूर्यः =The sun who dispels the darkness of the nights which are like his daughters. (पतिर्जनीनाम्) पालयिता जनानां प्रजानाम् । =Protector of all people. (यमः) नियन्ता
भावार्थभाषाः - There is Upamalankara in the Mantra as several similes have been used. Men should know that a good commander of an army destroys all miseries as a well-trained army conquers the enemies and as the knowers of the science of archery destroy their adversaries by throwing upon them powerful arms.