वांछित मन्त्र चुनें

त्वां ह॒ त्यदि॒न्द्रार्ण॑सातौ॒ स्व॑र्मीळ्हे॒ नर॑ आ॒जा ह॑वन्ते। तव॑ स्वधाव इ॒यमा स॑म॒र्य ऊ॒तिर्वाजे॑ष्वत॒साय्या॑ भूत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvāṁ ha tyad indrārṇasātau svarmīḻhe nara ājā havante | tava svadhāva iyam ā samarya ūtir vājeṣv atasāyyā bhūt ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वाम्। ह॒। त्यत्। इ॒न्द्र॒। अर्ण॑ऽसातौ। स्वः॑ऽमीळ्हे। नरः॑। आ॒जा। ह॒व॒न्ते॒। तव॑। स्व॒धा॒ऽवः। इ॒यम्। आ। स॒ऽम॒र्ये। ऊ॒तिः। वाजे॑षु। अ॒त॒साय्या॑। भू॒त् ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:63» मन्त्र:6 | अष्टक:1» अध्याय:5» वर्ग:5» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:11» मन्त्र:6


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को ईश्वर और सभापति आदि के सहाय की इच्छा कहाँ-कहाँ करनी चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (स्वधावः) उत्तम अन्न और (इन्द्र) श्रेष्ठ ऐश्वर्य के प्राप्त करानेवाले जगदीश्वर वा सभाध्यक्ष (नरः) राजनीति के जाननेवाले मनुष्य (त्यत्) उस (अर्णसातौ) विजय की प्राप्ति करानेवाले शूरवीर योद्धा, मनुष्यों का सेवन हो, जिस (स्वर्मीढे) सुख के सींचने से युक्त (आजौ) संग्राम में (त्वाम्) आपको (ह) निश्चय करके (आहवन्ते) पुकारते हैं। जिस कारण (तव) आपकी जो (इयम्) यह (समर्य्ये) संग्राम वा (वाजेषु) विज्ञान, अन्न और सेनादिकों में (अतसाय्या) निरन्तर सुखों की प्राप्ति करानेवाले (ऊतिः) रक्षण आदि क्रिया है, वह हम लोगों को प्राप्त (भूत्) होवे ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि सब धर्मसम्बन्धी कार्य्यों में ईश्वर वा सभाध्यक्ष का सहाय लेके सम्पूर्ण कार्यों को सिद्ध करें ॥ ६ ॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभुरक्षण से युद्धविजय

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो (त्वां ह) = आपको ही (त्यत्) = वह (अर्णसातौ) = [अर्णानां सातिर्यस्मिन्] गतिशीलता को प्राप्त करानेवाले–युद्ध के समय सबकी क्रिया बढ़ जाती है (स्वर्मीळ्हे) = स्वर्ग - सुख का सेचन करनेवाले (आजौ) = संग्राम में (नरः) = उन्नति - पथ पर चलनेवाले व्यक्ति (हवन्ते) = पुकारते हैं । युद्ध में विजय के लिए आपकी ही आराधना करते हैं । युद्धों में क्रियाशीलता तो बढ़ ही जाती है, युद्धों में पीठ न दिखाकर मृत्यु होने पर स्वर्ग मिलता है । इन युद्धों में विजय के लिए प्रभु का आराधन करने से उत्साह बना रहता है । २. हे (स्वधावः) = आत्मधारण - शक्ति से युक्त प्रभो ! (समर्ये) = संग्राम में (तव इयं ऊतिः) = आपकी यह रक्षणक्रिया (वाजेषु) = शक्तियों की प्राप्ति के निमित्त (अतसाय्या) = प्राप्तव्य (आभूत्) = सर्वथा होती है । वस्तुतः आपका यह रक्षण ही योद्धाओं को शक्तिशाली बनाता है और वे युद्ध में विजय प्राप्त करने में समर्थ होते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु - कृपा से ही युद्धों में विजय प्राप्त होती है ।
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैरीश्वरसभाध्यक्षयोः सहायः क्व क्व प्रेप्सितव्य इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे स्वधाव इन्द्र जगदीश्वर सभाद्यध्यक्ष ! नरस्त्यन्नर्णसातौ स्वर्मीढ आजौ त्वां ह खल्वाहवन्ते। यतस्तव येयं समर्य्ये वाजेष्वतसाय्योतिर्वर्त्तते साऽस्मान् प्राप्ता भूत् ॥ ६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वाम्) जगदीश्वरं सभाध्यक्षं वा (ह) खलु (त्यत्) तस्मिन् (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रापक (अर्णसातौ) अर्णानां विजयप्रापकाणां योद्धॄणां सातिर्यस्मिंस्तस्मिन् (स्वर्मीढे) स्वः सुखस्य मीढः सेचनं यस्मिन् तस्मिन्। (नरः) नयनकर्त्तारो मनुष्याः (आजा) संग्रामे (हवन्ते) स्पर्द्धन्ते प्रेप्सन्ते (तव) (स्वधावः) प्रशस्तं स्वधान्नं विद्यते तस्य तत्सम्बुद्धौ (इयम्) वक्ष्यमाणा (आ) अभितः (समर्य्ये) संग्रामे (ऊतिः) रक्षणादिका (वाजेषु) विज्ञानान्नसेनादिषु (अतसाय्या) अतन्ति निरन्तरं सुखानि गच्छन्ति यया सा। अत्रातधातोर्बाहुलकादौणादिक आय्यप्रत्ययोऽसुगागमश्च। सायणाचार्य्येणेदं पदमतधातोराय्यप्रत्ययं वर्जयित्वा साय्यप्रत्ययान्तरं कल्पित्वाऽडागमेन व्याख्यातं तदशुद्धम् (भूत्) भवतु ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषालङ्कारः। मनुष्यैः सर्वेषु धर्म्यकार्येषु कर्तव्येष्वीश्वरस्य सभाध्यक्षस्य च सहायं नित्यं सङ्गृह्य कार्य्यसिद्धिः कर्त्तव्या ॥ ६ ॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - In the tumult of the battles of the brave for victory and the showers of peace and joy, the leaders of humanity call upon you, Indra, to join the strife and win. Lord of innate wealth and power, may this help and protection of yours be available to us in our joint ventures and our battles for food, knowledge, science and social progress.
0 बार पढ़ा गया

आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

for what objects the help of God and the President of the Assembly should be sought by people is taught in the 6th Mantra.

अन्वय:

O God the Lord of all food and wealth or the President of the Assembly etc. men invoke Thee in all thick thronged and happiness-bestowing battles for the victory. May thy protection which gives us happiness constantly be got by us in all battles and in the acquisition of knowledge, food and army etc.

पदार्थान्वयभाषाः - (अर्णसातौ) अर्णानां विजयप्रापकाणां योद्धृणांसातिर्यस्मिन् | = In the battle where the victors gain. (ऋ - गति प्रापणयोः षणु - संभक्तौ Tr.) ( समर्येषु ) संग्रामेषु = In battles. (अतसाय्या) प्रतति निरंतरं सुखानि गच्छति यया सा अत्र अत-सातत्यगमने इति धातोर्बाहुलकादौणादिक आय्य्प्रत्ययः असुगामश्च | सायणाचार्येण इदं पदम् अतधातोराय्य प्रत्ययं वर्जयित्वा साय्यप्रत्ययान्तरं कल्पित्वाऽडागमेन व्याख्यातं तदशुद्धम् || =That which constantly leads to happiness. Sayanacharya has wrongly explained the derivation of |अतसाय्या |
भावार्थभाषाः - Men should accomplish all their righteous act with the help of God and the President of the Assembly.
0 बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. माणसांनी धर्मांसंबंधी सर्व कार्यात ईश्वर व सभाध्यक्षाचे साह्य घेऊन संपूर्ण कार्य सिद्ध करावे. ॥ ६ ॥