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प्र वो॑ म॒हे महि॒ नमो॑ भरध्वमाङ्गू॒ष्यं॑ शवसा॒नाय॒ साम॑। येना॑ नः॒ पूर्वे॑ पि॒तरः॑ पद॒ज्ञा अर्च॑न्तो॒ अङ्गि॑रसो॒ गा अवि॑न्दन् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra vo mahe mahi namo bharadhvam āṅgūṣyaṁ śavasānāya sāma | yenā naḥ pūrve pitaraḥ padajñā arcanto aṅgiraso gā avindan ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। वः॒। म॒हे। महि॑। नमः॑। भ॒र॒ध्व॒म्। आ॒ङ्गू॒ष्य॑म्। श॒व॒सा॒नाय॑। साम॑। येन॑। नः॒। पूर्वे॑। पि॒तरः॑। प॒द॒ऽज्ञाः। अर्च॑न्तः। अङ्गि॑रसः। गाः। अवि॑न्दन् ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:62» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:5» वर्ग:1» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:11» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को इस विषय में क्या करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (वः) तुम वा (नः) हम लोगों को (अङ्गिरसः) प्राणादि विद्या और (पदज्ञाः) धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को जाननेवाले (महे) बड़े (शवसानाय) ज्ञान बलयुक्त सभाध्यक्ष के लिये (महि) बहुत (साम) दुःखनाश करनेवाले (आङ्गूष्यम्) विज्ञानयुक्त (नमः) नमस्कार वा अन्न का (अर्चन्तः) सत्कार करते हुए (पूर्वे) पहिले सब विद्याओं को पढ़ते हुए (पितरः) विद्यादि सद्गुणों से रक्षा करनेवाले विद्वान् लोग (येन) जिस विज्ञान वा कर्म से (गाः) विद्या प्रकाशयुक्त वाणियों को (अविन्दन्) प्राप्त हों, उनका तुम लोग (प्रभरध्वम्) भरण-पोषण सदा किया करो ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे विद्वान् लोग जिन वेद, सृष्टिक्रम और प्रत्यक्षादि प्रमाणों से कहे हुए धर्मयुक्त मार्ग से चलते हुए सब प्रकार परमेश्वर का पूजन करके सबके हित को धारण करते हैं, वैसे ही तुम लोग भी करो ॥ २ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

आङ्गूष्य साम

पदार्थान्वयभाषाः - १. (वः) = तुम सब (महे) = उस महान् प्रभु के लिए (महि नमः) = महनीय नमन (प्रभरध्वम्) = प्रकर्षेण धारण करो । जितना - जितना उस महान् प्रभु के प्रति हम नमन धारण करते हैं, उतना - उतना ही हमारा जीवन महनीय बनता है । २. (शवसानाय) = शक्ति के पुञ्ज उस प्रभु के लिए (आङ्गूष्यम् )- [आघोषयोग्यम्] ऊँचे उच्चारण के योग्य (साम) = स्तोत्र व स्तवन को धारण करो । वस्तुतः उस शक्तिशाली प्रभु का स्तवन हमें भी शक्तिशाली बनाता है । यह साम वह है (येन) = जिससे (नः) = हमारे (पूर्वे) = अपना पूरण करनेवाले - न्यूनताओं को सदा दूर करनेवाले (पितरः) = रक्षणात्मक कार्यों में लगनेवाले (पदज्ञाः) = मार्ग को जाननेवाले (अर्चन्तः) = प्रभु की पूजा करते हुए और इस प्रकार (अङ्गिरसः) = अङ्ग - अङ्ग में रस के सञ्चारवाले लोग (गाः) = ज्ञान की रश्मियों या वाणियों को (अविन्दन्) = प्राप्त करते हैं । स्तवन के द्वारा मनुष्य हृदयस्थ प्रभु के प्रकाश को देखनेवाला बनता है । प्रभु के उपासक का चित्रण ‘पूर्वे, पितरः, पदज्ञाः, अर्चन्तः व अङ्गिरस’ इन शब्दों से हो रहा है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - हम प्रभु के स्तोत्रों का उच्चारण करें । ये स्तोत्र हमें न्यूनताओं को दूर करने में सहायक होंगे और हमारे जीवन को महनीय बनाएँगे ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैरेतद्विषये किं कर्त्तव्यमित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे मनुष्याः ! ये वो युष्माकं नोऽस्माकं चाङ्गिरसः पदज्ञा महे महते शवसानाय सभाद्यध्यक्षाय महि महत्सामाङ्गूष्यं नमश्चार्चन्तः सन्तः पूर्वे पितरो येन गा अविन्दन् प्राप्नुयुस्तान् यूयं प्रभरध्वम् ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) प्रकृष्टार्थे (वः) युष्माकम् (महे) महते (महि) महत् (नमः) नमस्करणमन्नं वा (भरध्वम्) धरध्वम् (आङ्गूष्यम्) अङ्गूषाणां विज्ञानानां भावस्तम् (शवसानाय) ज्ञानवते (साम) स्यन्ति खण्डयन्ति दुःखानि येन तत्। अत्र सर्वधातुभ्यो मनिन् (उणा०४.१४६) इति करणकारके मनिन्। (येन) पूर्वोक्तेन। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (नः) अस्माकम् (पूर्वे) पूर्वं विद्या अधीतवन्तोऽनूचाना विद्वांसः (पितरः) ये पान्ति पितृवत् रक्षन्ति विद्यासुशिक्षादिदानैस्ते (पदज्ञाः) ये पदानि प्राप्तव्यानि धर्मार्थकाममोक्षाख्यानि साधितुं साधयितुं वा जानन्ति ते (अर्चन्तः) सत्कुर्वन्तः (अङ्गिरसः) प्राणादिविद्याविदः (गाः) विद्याप्रकाशयुक्ता वाचः (अविन्दन्) प्राप्नुयुः। अत्र लिङर्थे लङ् ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा विद्वांसो वेदसृष्टिक्रमप्रत्यक्षादिप्रमाणैः प्रतिपादितेन धर्म्येण मार्गेण गच्छन्तः सन्तः परमात्मानमभ्यर्च्य सर्वहितं धरन्ति, तथैव यूयमपि समवतिष्ठध्वम् ॥ २ ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - All ye men and women of the world, bear and offer to Indra, great lord of strength and power, celebrative songs of adoration and holy offerings in Samans and hymns of knowledge and enlightenment, by virtue of which our ancient forefathers, who knew the life stages of Dharma, Artha, Kama and Moksha and who were scholars of divine knowledge and worshippers of the Lord, received the gift of holy speech and universal knowledge.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

What else should men do further is taught in the 2nd Mantra.

अन्वय:

O Ye men, offer to the great and powerful Indra (God and President of the Assembly) earnest veneration or Chant be sung aloud dispelling all misery and giving knowledge. As our and your ancestors who protected all like fathers by giving knowledge and wisdom, knowers of Dharma [duty] Artha [wealth] Kama [noble desires] and Moksha [Emancipation] well-versed in the science of Prana and fire etc. used speech full of the light of knowledge, so you should also do. (As the Vedas are meant for all times and not only at the beginning of human creation, such expressions are found there to instruct that people should have regard for their learned forefathers.) Tr.

पदार्थान्वयभाषाः - (आन्गूष्य्म्) आंगूषाणां विज्ञानानां भावस्तम् = Knowledge. (शवसानाय) ज्ञानवते = for full of Knowledge. (साम) स्यन्ति खण्डयन्ति दुःखानियेन तत् । अत्र सर्वधातुम्यो मनिन् इति करणकारके मनिन् ॥ = Destroyer of misery. (अंगिरस:) प्राणादिविद्याविदः । = Knowers of the science of breath and fire etc. (पदज्ञा:) ये पदानि प्राप्तव्यानि धर्मार्थकाममोक्षाख्यानि साधितुं साधयितुं वा जानन्ति ते पद-गतौ ॥
भावार्थभाषाः - O men, As learned persons bring about the welfare of all beings, worshipping God and treading upon the path of Dharma which is in accordance with the Vedas, cosmic natural laws and Pratyaksha and other means of perception, so you should also do.
टिप्पणी: Angooshya is derived from अगिगतौ गतेस्त्रयोर्था: ज्ञानं गमनं प्राप्तिश्च। hence the above meaning of विज्ञानानांभाब: or knowledge by Rishi Dayananda Sarasvati. शवसानाय is derived from शव-गतौ hence the above meaning of ज्ञानवते. पदज्ञा: is derived from पद-गतौ and ज्ञा-ज्ञाने गतेस्त्रयोऽर्थाः ज्ञानं गमनं प्राप्तिश्च. So here the third meaning of अंगिरस: as प्राणादिविद्याविदः we have already quoted प्राणो वा अंगिरा: (शत० ६.१.२.२८ ॥ ६.५.२.३,४ ) अंगिरा वा अग्नि: (शत० ६.४.४.४ ).
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो जसे विद्वान लोक ज्या वेद, सृष्टिक्रम व प्रत्यक्ष इत्यादी प्रमाणांनी सांगितलेल्या धर्मयुक्त मार्गाने चालतात व सर्व प्रकारे परमेश्वराचे पूजन करून सर्वांचे हित करतात तसेच तुम्हीही करा. ॥ २ ॥