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ते त्वा॒ मदा॑ अमद॒न्तानि॒ वृष्ण्या॒ ते सोमा॑सो वृत्र॒हत्ये॑षु सत्पते। यत्का॒रवे॒ दश॑ वृ॒त्राण्य॑प्र॒ति ब॒र्हिष्म॑ते॒ नि स॒हस्रा॑णि ब॒र्हयः॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

te tvā madā amadan tāni vṛṣṇyā te somāso vṛtrahatyeṣu satpate | yat kārave daśa vṛtrāṇy aprati barhiṣmate ni sahasrāṇi barhayaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ते। त्वा॒। मदाः॑। अ॒म॒द॒न्। तानि॑। वृष्ण्या॑। ते। सोमा॑सः। वृ॒त्र॒ऽहत्ये॑षु। स॒त्ऽप॒ते॒। यत्। का॒रवे॑। दश॑। वृ॒त्राणि॑। अ॒प्र॒ति। ब॒र्हिष्म॑ते। नि। स॒हस्रा॑णि। ब॒र्हयः॑ ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:53» मन्त्र:6 | अष्टक:1» अध्याय:4» वर्ग:16» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:10» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उन मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सत्पते) सत्पुरुषों के पालन करनेवाले सभाध्यक्ष ! (यत्) जो आप (बर्हिष्मते) विज्ञानयुक्त (कारवे) कर्म करनेवाले मनुष्य के लिये (वृत्राणि) शत्रुओं को रोकने हारे कर्म (दश) दश (सहस्राणि) हजार अर्थात् असंख्यात सेनाओं के (अप्रति) अप्रतीति जैसे हो वैसे प्रतिकूल कर्मों को (निबर्हयः) निरन्तर बढ़ाइये, उस आप के आश्रित होकर (ते) वे (सोमासः) उत्तम-उत्तम पदार्थों को उत्पन्न करने (मदाः) आनन्दित करनेवाले शूरवीर धार्मिक विद्वान् लोग (त्वा) आपको (वृत्रहत्येषु) शत्रुओं के मारने योग्य संग्रामों में (तानि) उन (वृष्ण्या) सुख वर्षानेवाले उत्तम-उत्तम कर्मों को आचरण करते हुए (अमदन्) प्रसन्न होते हैं ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्यों को चाहिये कि सत्पुरुषों के संग से अनेक साधनों को प्राप्त कर आनन्द भोगें ॥ ६ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

मद - वृष्ण्य व सोम

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे प्रभो ! (त्वा) = आपको हमारे (ते) = वे (मदाः) = हर्ष - मानस आह्लाद (अमदन्) = प्रफुल्लित करनेवालें हों । पुत्र के विजयोल्लास को देखकर पिता को प्रसन्नता होती है । गतमन्त्र के अनुसार जब हम 'वीरशुष्मा प्रमति' के द्वारा शत्रुओं को पराजित करते हैं तब हमारे ये विजयोल्लास प्रभु को प्रसन्न करनेवाले होते हैं । २. (तानि वृष्ण्या) = वे हमारे शक्तिसम्पन्न कार्य आपको प्रसन्न करनेवाले हों अथवा प्रजा पर सुखों की वर्षा करनेवाले कार्य आपको प्रसन्न करें । इन पुत्रों के द्वारा किये जानेवाले लोकहितात्मक कार्य आपकी प्रसन्नता का कारण बनें । ३. (वृत्रहत्येषु) = वासनाओं की हत्या हो जाने पर ते (सोमासः) = वे शरीर में ही सुरक्षित सोमकण आपकी प्रसन्नता का कारण बनें । हे (सत्पते) = सज्जनों के रक्षक प्रभो ! आपको हमारे 'विजयोल्लास, वीरतापूर्ण कार्य तथा सोमकणों का रक्षण' प्रसन्नता देनेवाले हों । वस्तुतः सज्जन व्यक्ति वही है जो [क] शत्रुओं को जीतकर मानस प्रसाद से परिपूर्ण है, [ख] जो शक्तिशाली कार्यों द्वारा लोकहित में प्रवृत्त है तथा [ग] सोमों के रक्षण का पूर्ण ध्यान करता है । ४. ऐसा हो तभी पाता है (यत्) = जबकि हे प्रभो ! आप (कारवे) = कलापूर्ण ढंग से, सुन्दरता से सब कार्यों को करनेवाले (बर्हिष्मते) = यज्ञशील पुरुष के लिए (दश सहस्त्राणि) = इन अनन्त व सहस्रों रूपोंवाले (वृत्राणि) = ज्ञान के आवरणभूत वासनात्मक भावों को (अप्रति) = शत्रुओं के लिए अप्रतिरथ योद्धा के समान (निबर्हयः) = पूर्णरूप से विध्वस्त कर देते हैं । हम सब कार्यों को कुशलता से करने में लगे रहें, यज्ञशील बनें तो प्रभुकृपा से हमारी सब वासनाएँ स्वतः नष्ट हो जाती हैं । वासनाओं के विनाश का सर्वोपरि सुन्दर साधन यही है कि 'अपने कर्तव्य - कर्मों में अप्रमाद से लगे रहना' ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - हम 'मनः प्रसाद, लोकहितात्मक कर्मों व सोमरक्षणों' से प्रभु को प्रसन्न करें । प्रभु हमारी वासनाओं को विनष्ट करेंगे ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तैः किं कर्त्तव्यमित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे सत्पते यस्त्वं बर्हिष्मते कारवे दश सहस्राणि वृत्राण्यप्रति निबर्हयस्तं त्वामाश्रित्य ते सोमासो मदाः शूरवीराः वृत्रहत्येषु तानि वृष्ण्या सेचनसमर्थान्युत्तमानि कर्माण्याचरन्तोऽमदन् ॥ ६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) प्रजास्था धार्मिका विद्वांसः (त्वा) त्वां पाठशालाध्यक्षम् (मदाः) आनन्दिता आनन्दयितारः (अमदन्) हृष्यन्तु (तानि) पूर्वोक्तानि कर्माणि (वृष्ण्या) सुखसेचनसमर्थानि (ते) पूर्वोक्ताः (सोमासः) अभिषुताः सुसम्पादिताः पदार्था यैस्ते (वृत्रहत्येषु) वृत्राः शत्रवो हत्या हननीया येषु तेषु संग्रामेषु (सत्पते) सत्पुरुषाणां पति पालयिता तत्सम्बुद्धौ (यत्) यः (कारवे) कर्मकर्त्रे (दश) दशत्वसंख्याविशिष्टानि (वृत्राणि) शत्रूणामावरकाणि कर्माणि (अप्रति) अप्रतीतानि यथा स्यात् तथा (बर्हिष्मते) विज्ञानवते (नि) नित्यम् (सहस्राणि) बहून्यसंख्यातानि सैन्यानि (बर्हयः) वर्द्धय ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - सर्वैर्मनुष्यैः सदा सत्पुरुषसङ्गेनाऽनेकानि साधनानि प्राप्यानन्दयितव्यमिति ॥ ६ ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Lord of truth and protector of the people of truth and piety, when in the battles against Vritra, demon of darkness and evil, for the defence of the hero of yajnic action you resolutely overthrow tens of thousands of the forces of darkness, then those joyous and generous fighters and lovers of soma celebrate the victories with you.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व माणसांनी सत्पुरुषांच्या संगतीने अनेक साधने प्राप्त करून आनंद भोगावा. ॥ ६ ॥