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घृता॑हवन सन्त्ये॒मा उ॒ षु श्रु॑धी॒ गिरः॑ । याभिः॒ कण्व॑स्य सू॒नवो॒ हव॒न्तेऽव॑से त्वा ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ghṛtāhavana santyemā u ṣu śrudhī giraḥ | yābhiḥ kaṇvasya sūnavo havante vase tvā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

घृत॑आहवन । स॒न्त्य॒ । इ॒माः । ऊँ॒ इति॑ । सु । श्रु॒धि॒ । गिरः॑ । याभिः॑ । कण्व॑स्य । सू॒नवः॑ । हव॑न्ते । अव॑से । त्वा॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:45» मन्त्र:5 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:31» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:9» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह किससे जानने को समर्थ होवे, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सन्त्य) सुखों की क्रियाओं में कुशल (घृताहवन) घी को अच्छे प्रकार ग्रहण करनेवाले विद्वान् मनुष्य ! जैसे (कण्वस्य) मेधावी विद्वान् के (सूनवः) पुत्र विद्यार्थी (अवसे) रक्षा आदि के लिये (याभिः) जिन वेदवाणियों से जिस (त्वा) तुझको (हवन्ते) ग्रहण करते हैं सो आप (उ) भी उन से उनकी (इमा) इन प्रत्यक्ष कारक (गिरः) वाणियों को (सुश्रुधि) अच्छे प्रकार सुन और ग्रहण कर ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य इस संसार में विद्वान् माता विद्वान् पिता और सब उत्तर देनेवाले आचार्य्य आदि से शिक्षा वा विद्या को ग्रहण कर परमार्थ और व्यवहार को सिद्ध कर विज्ञान और शिल्प को करने में प्रवृत्त होते हैं वे सब सुखों को प्राप्त होते हैं, आलसी कभी नहीं होते ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

रक्षा - कीर्ति - अन्न व धन

पदार्थान्वयभाषाः - १. 'घृत' शब्द 'मन की निर्मलता व ज्ञान की दीप्ति' का वाचक है [घृ क्षरणदीप्तयोः] । वे प्रभु इस घृत से ही 'आहूयमान' होते हैं - पुकारे जाते हैं । प्रभु को पुकारने का अधिकार उसी व्यक्ति को होता है जो इस घृत का सम्पादन करता है । हे (घृताहवन) - घृत से आहूयमान प्रभो ! (सन्त्य) - [सन संभक्तौ] उत्तमोत्तम पदार्थों को देनेवालों में सर्वश्रेष्ठ प्रभो ! (इमाः गिरः) - इन प्रार्थनावाणियों को (उ) - निश्चय से (सु) - अच्छी प्रकार (श्रुधि) - सुनिए, (याभिः) - जिन वाणियों से (कण्वस्य) - मेधावी के (सूनवः) - पुत्र, अर्थात् अत्यन्त मेधावी 'प्रस्कण्व' लोग (त्वा) - आपको (अवसे) - रक्षा [protection], कीर्ति [fame], अन्न [food], व धन [riches] के लिए (हवन्ते) - पुकारते हैं ।  २. सम्पूर्ण अन्न व धन तथा रक्षण व यश प्रभु से ही प्राप्त होता है । प्रभु ने ज्ञान की वाणियों के द्वारा इनके साधन के लिए उपदेश दिया है । समझदार लोग अपने मनों को निर्मल करके इन ज्ञानीजनों की वाणियों से उन साधनों को जानकर क्रियान्वित करते हैं और वे प्रभु उन कर्मों के अनुसार हमें उन्नति के लिए आवश्यक उत्तमोत्तम पदार्थों को प्राप्त कराते हैं ।   
भावार्थभाषाः - भावार्थ - हम जब वेदवाणियों में प्रतिपादित ज्ञान का अनुष्ठान करते हैं तब प्रभु हमें 'अन्न, धन, यश व रक्षण' प्राप्त कराते हैं ।   
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(घृताहवन) घृतग्राहिन् (सन्त्य) सनन्ति संभजंति सुखानि याभिः क्रियाभिस्तासु साधो (इमाः) वक्ष्यमाणाः प्रत्यक्षाः (उ) वितर्के (सु) शोभार्थे। अत्र #सूञ इति मूर्धन्यादेशः। (श्रुधि) शृणु। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (गिरः) वाणीः (याभिः) वेदवाग्भिः (कण्वस्य) मेधाविनः (सूनवः) पुत्रा विद्यार्थिनः (हवन्ते) गृह्णन्ति (अवसे) रक्षणाद्याय (त्वा) त्वाम् ॥५॥ #[अ० ८।३।१०७]

अन्वय:

पुनः स केन ज्ञातुं शक्नुयादित्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सन्त्य घृताहवन विद्वन् ! यथा कण्वस्य सूनवोऽवसे याभिर्वेदवाणीभिर्यं त्वा हवन्ते स त्वमुताभिस्तेषामिमा गिरः सुश्रुधि सुष्ठु शृणु ॥५॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या इह संसारे विदुष्या मातुर्विदुषः पितुरनूचानस्याचार्य्यस्य च सकाशाच्छिक्षाविद्ये गृहीत्वा परमार्थव्यवहारौ साधित्वा विज्ञानशिल्पयोः सिद्धिं कर्त्तुं प्रवर्त्तन्ते ते सर्वाणि सुखानि प्राप्नुवन्ति नेतरे ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, lord of light and knowledge, generous, receiving libations of ghee and waters, listen well to these voices of prayer with which the disciples of the distinguished genius of science invoke and serve you for the sake of protection.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या जगात जी माणसे विद्वान माता, पिता व सर्व उत्तरे देण्यास सक्षम असणारे आचार्य इत्यादींकडून शिक्षण, विद्या ग्रहण करून परमार्थ व व्यवहार सिद्ध करून विज्ञान व शिल्प करण्यास प्रवृत्त होतात ते सर्व सुख प्राप्त करतात, आळशी कधी होत नाहीत. ॥ ५ ॥