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सु॒शंसो॑ बोधि गृण॒ते य॑विष्ठ्य॒ मधु॑जिह्वः॒ स्वा॑हुतः । प्रस्क॑ण्वस्य प्रति॒रन्नायु॑र्जी॒वसे॑ नम॒स्या दैव्यं॒ जन॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

suśaṁso bodhi gṛṇate yaviṣṭhya madhujihvaḥ svāhutaḥ | praskaṇvasya pratirann āyur jīvase namasyā daivyaṁ janam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒शंसः॑ । बो॒धि॒ । गृ॒ण॒ते । य॒वि॒ष्ठ्य॒ । मधु॑जिह्वः । सुआ॑हुतः । प्रस्क॑ण्वस्य । प्र॒ति॒रन् । आयुः॑ । जी॒वसे॑ । न॒म॒स्य । दैव्य॑म् । जन॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:44» मन्त्र:6 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:29» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:9» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, किसके लिये क्या करता है, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (यविष्ठ्य) अत्यन्त बलवान् (नमस्य) पूजने योग्य विद्वान् (मधुजिह्वः) मधुर ज्ञानरूप जिह्वा युक्त (सुशंसः) उत्तम स्तुति से प्रशंसित (स्वाहुतः) सुख से आह्वान बोलने योग्य (प्रस्कण्वस्य) उत्तम मेधावी विद्वान् के (जीवसे) जीवन के लिये (आयुः) जीवन को (प्रतिरन्) दुःखों से पार करते जो आप (गृणते) सत्य की स्तुति करते हुए मनुष्य के लिये शास्त्रों का (बोधि) बोध कीजिये और जिससे (दैव्यम्) विद्वानों में उत्पन्न हुए (जनम्) मनुष्य की रक्षा करते हो इससे सत्कार के योग्य हो ॥६॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्यों को उचित है कि जो सबसे उत्कृष्ट विद्वान् है उसीका सत्कार करें ऐसे ही इसका अच्छे प्रकार आश्रय लेकर सब उमर और विद्या को प्राप्त करें ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सुशंस, मधुजिह्व, स्वाहुत

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे प्रभो ! आप (गृणते) - स्तुति करनेवाले के लिए (सशंसः) - उत्तम शंसन व उपदेश करनेवाले (बोधि) - जाने जाते हो । स्तोता के लिए आप उत्तम ज्ञान देते हैं । २. (यविष्ठ्य) - गुणों को प्राप्त कराने तथा अवगुणों को दूर करने में सर्वोत्तम प्रभो ! आप अपने स्तोता के लिए (मधुजिह्वः) - माधुर्यमय जिह्वावाले, अर्थात् अत्यन्त मधुर शब्दोंवाले तथा (स्वाहुतः) - [सु आहुतः] उत्तमोत्तम हव्य पदार्थों को देनेवाले हो । ३. आप (प्रस्कण्वस्य) - इस मेधावी पुरुष की (आयुः) - आयु को (प्रतिरन्) - बढ़ाते हुए (जीवसे) - उत्तम जीवन के लिए (दैव्यं जनम्) - दैव्य लोगों को, अर्थात् प्रभुप्रवण पुरुषों को (नमस्या) - [परिचरणकर्मा नमस्यति] पूजित कराइए । आपकी कृपा से यह अध्यात्मवृत्तिवाले लोगों के सम्पर्क में आये और उनकी सेवा - शुश्रूषा [परिचरण] करता हुआ उनके उपदेशों से जीवन - निर्माण की प्रेरणा लेता हुआ जीवन को उन्नत बनाए । उत्तम जीवन यही है कि मनुष्य [क] प्रभु के उत्तम उपदेशों को सुने, [ख] माधुर्यमयी जिह्वावाला हो, [ग] उत्तम सात्त्विक पदार्थों का ही सेवन करे, [घ] दैव्य लोगों के सम्पर्क में आकर जीवन को उत्तम बनाते हुए दीर्घ जीवनवाला हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - उत्तम जीवन का परिचय प्रस्तुत मन्त्र में 'सुशंसः, मधुजिह्वः, स्वाहुतः ' - इन शब्दों में दिया गया है । इस जीवन के निर्माण को लिए यत्नशील होना चाहिए तथा दीर्घजीवन प्राप्त करना चाहिए ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(सुशंसः) शोभना शंसाः स्तुतयो यस्य विदुषः सः (बोधि) बुध्येत। अत्र लिङर्थे लुङडभावश्च। (गृणते) स्तुतिं कुर्वते (यविष्ठ्य) अतिशयेन युवा यविष्ठो यविष्ठ एव यविष्ठ्यस्तत्सम्बुद्धौ (मधुजिह्वः) मधुरगुणयुक्ता जिह्वा यस्य। अत्र फलिपाटिनमि०। उ० १।१८। अनेन मनधातो रुः प्रत्ययो नस्य धकारादेशश्च। (स्वाहुतः) यः सुखेनाहूयते (प्रस्कण्वस्य) प्रकृष्टश्चासौ कण्वो मेधावी च तस्य (प्रतिरन्) दुःखत्तरन्। अत्र बहुलं छन्दसि इति शपो लुक्। (आयुः) जीवनम् (जीवसे) जीवितुम् (नमस्य) पूजितुं योग्य। अत्र नमस् धातोर्ण्यत्। अन्येषामपि० इति दीर्घश्च (दैव्यम्) देवेषु विद्वत्सु भवम् (जनम्) मनुष्यम् ॥६॥

अन्वय:

पुनः स कीदृशः कस्मै किं करोतीत्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे यविष्ठ्य ! नमस्य विद्वन् मधुजिह्वः सुशंसः स्वाहुतः प्रस्कण्वस्य जीवस आयुः प्रतिरन्त्सँस्त्वं गृणते शास्त्राणि बोध्यनेन दैव्यं जनं रक्षसि तस्मात् सत्कर्त्तव्योऽसि ॥६॥
भावार्थभाषाः - सर्वैर्मनुष्यैः सर्वोत्कृष्टत्वान्नमस्करणीयो विद्वाँश्च सत्कर्त्तव्यः। एवमेतं समाश्रित्य सर्वे आयुर्विद्ये प्राप्तव्ये इति ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, lord of light and universal knowledge, youngest ever young, universally celebrated you are, honey tongued, invoked and deeply honoured, protecting the life of the wise for the joy of living, worthy of obedience and obeisance, save the man of divinity and bless the celebrant with enlightenment.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो सर्वात उत्कृष्ट विद्वान आहे. त्याचाच सर्व माणसांनी सत्कार करावा व त्याच्या आश्रयाने आयुष्यभर विद्या प्राप्त करावी. ॥ ६ ॥