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अग्ने॒ पूर्वा॒ अनू॒षसो॑ विभावसो दी॒देथ॑ वि॒श्वद॑र्शतः । असि॒ ग्रामे॑ष्ववि॒ता पु॒रोहि॒तोऽसि॑ य॒ज्ञेषु॒ मानु॑षः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne pūrvā anūṣaso vibhāvaso dīdetha viśvadarśataḥ | asi grāmeṣv avitā purohito si yajñeṣu mānuṣaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑ । पूर्वाः॑ । अनु॑ । उ॒षसः॑ । वि॒भा॒व॒सो॒ इति॑ विभावसो । दी॒देथ॑ । वि॒श्वद॑र्शतः । असि॑ । ग्रामे॑षु । अ॒वि॒ता । पु॒रःहि॑तः । असि॑ । य॒ज्ञेषु॑ । मानु॑षः॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:44» मन्त्र:10 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:29» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:9» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा हो क्या करे, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (विभावसो) विशेष दीप्ति को बसानेवाले (अग्ने) विद्या को प्राप्त करनेहारे विद्वान् ! (विश्वदर्शतः) सभों को देखने योग्य आप (पूर्वाः) पहिले व्यतीत (अनु) फिर (उषसः) आने वाली और वर्त्तमान प्रभात और रात दिनों को (दीदेथ) जानकर एक क्षण भी व्यर्थ न खोवे आप ही (ग्रामेषु) मनुष्यों के निवास योग्य ग्रामों में (अविता) रक्षा करनेवाले (असि) हो और (यज्ञेषु) अश्वमेघ आदि शिल्प पर्य्यन्त क्रियाओं में (मानुषः) मनुष्य व्यक्ति (पुरोहितः) सब साधनों के द्वारा सब सुखों को सिद्ध करनेवाले (असि) हो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् सब दिन एक क्षण भी व्यर्थ न खोवे सर्वथा बहुत उत्तम-२ कार्य्यों के अनुष्ठान ही के लिये सब दिनों को जानकर प्रजा की रक्षा वा यज्ञ का अनुष्ठान करनेवाला निरन्तर हो ॥१०॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

विश्वदर्शतः पुरोहितः

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे (अग्ने) - अग्रणी प्रभो ! (विभावसो) - ज्ञानदीप्तिरूप धनवाले प्रभो ! आप (पूर्वाः उषसः अनुदीदेथ) - प्राचीन उषः कालों की भाँति इन उषः कालों में भी चमकते हो । वस्तुतः प्रभु स्वयं तो सदा देदीप्यमान हैं, परन्तु हमारे हृदयों में प्रभु का प्रकाश इन शान्त उषः कालों में ही सम्भव है । इनका नाम ही 'ब्राह्ममुहूर्त' हो गया है ।  २. हे प्रभो ! आप (विश्वदर्शतः असि) - सबसे दर्शनीय हैं । जो भी अपने हृदय को निर्मल बनाता है, वही प्रभु का दर्शन कर पाता है । प्रभुदर्शन के लिए दिशा, काल अथवा देश, जाति आदि का भेद कोई महत्त्व नहीं रखता ।  ३. (ग्रामेषु अविता) - नगरों में नगरों में रहनेवाले लोगों का रक्षण करनेवाले आप ही हैं ।  ४. (पुरोहितः असि) - सब लोगों के सामने [पुरः] आप आदर्श के रूप में विद्यमान हैं [हितः] । आपके गुणों का स्तवन करते हुए हम अपने जीवन के आदर्श को देख पाते हैं ।  ५. उन गुणों को धारण करते हुए जब हम (यज्ञेषु) - उत्तम कर्मों में व्याप्त होते हैं तब आप (मानुषः) - यज्ञों के होने पर मनुष्य का कल्याण व हित करते हैं । यज्ञों के द्वारा प्रभु मानवहित का साधन करते हैं । ये यज्ञ 'इष्ट कामधुक्' हैं ।   
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु सदा दीप्त हैं । ब्राह्ममुहूर्त में प्रभु का दर्शन होता है । प्रभु ही हमारे रक्षक हैं । यज्ञों के द्वारा मानवमात्र का कल्याण करनेवाले हैं ।   
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(अग्ने) विद्याप्रकाशक विद्वन् (पूर्वाः) अतीताः (अनु) पश्चात् (उषसः) या वर्त्तमाना आगामिन्यश्च (विभावसो) विशिष्टां भां दीप्तिं वासयति तत्सम्बुद्धौ (दीदेथ) विजानीहि (विश्वदर्शतः) विश्वैः सर्वैः संप्रेक्षितुं योग्यः (असि) (ग्रामेषु) मनुष्यादिनिवासेषु (अविता) रक्षणादिकर्त्ता (पुरोहितः) सर्वसाधनसुखसम्पादयिता (असि) (यज्ञेषु) अश्वमेधादिशिल्पांतेषु (मानुषः) मनुष्याकृतिः ॥१०॥

अन्वय:

पुनः स कीदृशः किं कुर्य्यादित्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विभावसोऽग्ने विद्वन् ! विश्वदर्शतो यस्त्वं पूर्वा अनु पश्चादागामिनीर्वर्त्तमाना वोषसो दीदेथ ग्रामेष्ववितासि यज्ञेषु मानुषः पुरोहितोऽसि तस्मादस्माभिः पूज्यो भवसि ॥१०॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् सर्वेषु दिनेष्वेकं क्षणमपि व्यर्थन्न नयेत् सर्वोत्तमकार्य्याऽनुष्ठानयुक्तानि सर्वाणि दिनानि जानीयादेवमेतानि ज्ञात्वा प्रजारक्षको यज्ञानुष्ठाता सततं भवेत् ॥१०॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, blazing lord of light and knowledge, you are the leading light of the world. You shine before, with, and after the dawns. You are the protector of life in human habitations. You are the image and life of the people and the leader and high-priest in their yajnas from the family yajna upto the world programmes of creation, so human, sacred and divine.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The same subject is continued.

अन्वय:

O resplendent illuminator of knowledge, worthy of being seen by all, you know and shine forth in all the dawns coming after one another. You are the protector of people in villages. You are a priest in Yajnas, being well-wisher of all people and a true man.

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) विद्याप्रकाशक विद्वन् = A learned man-illuminator of knowledge. (दीदेथ) विजानीहि = Know well.
भावार्थभाषाः - A learned person should not waste even a single moment. He should know all days to be full of the noblest deeds. Knowing the days as such, he should be the protector of the people and performer of the Yajnas (non-violent noble sacrifices).
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वानांनी नेहमी एक क्षणही वाया घालवू नये. सदैव उत्तम कार्याचे अनुष्ठान करून सतत प्रजेचे रक्षण व यज्ञाचे अनुष्ठान करावे. ॥ १० ॥