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त्वामिद्धि स॑हसस्पुत्र॒ मर्त्य॑ उपब्रू॒ते धने॑ हि॒ते । सु॒वीर्यं॑ मरुत॒ आ स्वश्व्यं॒ दधी॑त॒ यो व॑ आच॒के ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvām id dhi sahasas putra martya upabrūte dhane hite | suvīryam maruta ā svaśvyaṁ dadhīta yo va ācake ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वाम् । इत् । हि । स॒ह॒सः॒ । पु॒त्र॒ । मर्त्यः॑ । उ॒प॒ब्रू॒ते । धने॑ । हि॒ते । सु॒वीर्य॑म् । म॒रु॒तः॒ । आ । सु॒अश्व्य॑म् । दधी॑त । यः । वः॒ । आ॒च॒क्रे॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:40» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:20» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:8» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर ये लोग आपस में कैसे वर्त्ते, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहसस्पुत्र) ब्रह्मचर्य और विद्यादि गुणों से शरीर आत्मा के पूर्ण बल युक्त के पुत्र ! (यः) जो (मर्त्यः) विद्वान् मनुष्य (त्वाम्) तुझको सब विद्या (उपब्रूते) पढ़ाता हो और हे (मरुतः) बुद्धिमान् लोगो ! आप जो (वः) आप लोगों को (हिते) कल्याण कारक (धने) सत्यविद्यादि धन में (आचके) तृप्त करे (इत्) उसीके लिये (स्वश्व्यम्) उत्तम विद्या विषयों में उत्पन्न (सुवीर्यम्) अत्युत्तम् पराक्रम को तुम लोग (दधीत) धारण करो ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य लोग पढ़ने-पढ़ाने आदि धर्मयुक्त कर्मों ही से एक दूसरे का उपकार करके सुखी हों ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

शक्ति व पवित्रता से युक्त ज्ञान

पदार्थान्वयभाषाः - १. 'सहस्' वह शक्ति है जो कि ज्ञानी पुरुष को ही प्राप्त होती है । यह आनन्दमय कोश की सर्वोत्कृष्ट शक्ति है । आचार्य में इसका होना अत्यन्त आवश्यक है । आचार्य को क्रोध तो करना ही नहीं, अतः कहते हैं कि हे (सहसः पुत्र) - सहस् शक्ति के पुतले, अर्थात् खूब सहस् शक्तिवाले आचार्य ! यह (मर्त्यः) - मनुष्य, अर्थात् शिष्यभाव से आपके समीप आया हुआ व्यक्ति (त्वाम् इत् हि) - आपको ही निश्चय से (हिते धने) - हितकर ज्ञान - धन की प्राप्ति के निमित्त (उपब्रूते) - प्रार्थना करता है, नम्रता से समीप आकर निवेदन करता है । हे (मरुतः) - मितरावी, खूब क्रियाशील, ज्ञान रश्मियों के पुञ्जभूत उपाध्यायो ! (यः) - जो भी शिष्य (वः) - आपकी (आचक्रे) - कामना करता [नि० २/६] है, अर्थात् ज्ञानप्राप्ति के विचार से आपके समीप आने की इच्छा करता है, वह आपकी कृपा से उस ज्ञानधन को (आ - दधीत) - सर्वथा धारण करे, जो ज्ञानधन (सुवीर्यम्) - उत्तम वीर्यवाला है, अर्थात् उसे शक्ति - सम्पन्न बनानेवाला है तथा (स्वश्व्यम्) - उत्तम इन्द्रियरूप अश्वोंवाला बनाने में समर्थ है, अर्थात् आचार्यों व उपाध्यायों के समीप विद्यार्थी उस ज्ञानधन को प्राप्त करनेवाला हो जो उत्तम शक्ति व उत्तम इन्द्रियरूप अश्वों से युक्त है ।   
भावार्थभाषाः - भावार्थ - आचार्य को सहस् शक्ति का पुञ्ज होना चाहिए । उपाध्याय उसे वह ज्ञान दें जो शक्ति व इन्द्रियों की पवित्रता से युक्त हो, अर्थात् विद्यार्थी को वे ज्ञानी, सशक्त व पवित्रेन्द्रिय बनाएँ ।   
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(त्वाम्) (इत्) एव (हि) खलु (सहसः) शरीरात्मबलयुक्तस्य विदुषः (पुत्र) (मर्त्यः) मनुष्यः (उपब्रूते) सर्वां विद्यामुपदिशेत् (धने) विद्यादिगुणसमूहे (हिते) सुखसम्पादके (सुवीर्यम्) शोभनं वीर्यं पराक्रमो यस्मिँस्तत् (मरुतः) धीमन्तो जनाः (आ) समन्तात् (स्वश्व्यम्) शोभनेष्वश्वेषु विद्याव्याप्तविषयेषु साधुम्# (दधीत) धरत (यः) विद्वान् (वः) युष्मान् (आचके) सर्वतस्सुखैस्तर्प्पयेत् ॥२॥ #[‘तत्र साधुः’ अ० ४।४।९८, इत्यनेन यत्प्रत्ययः। सं०]

अन्वय:

पुनरेतैः परस्परं कथं वर्त्तितव्यमित्याह।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सहसस्पुत्र ! यो मर्त्यो विद्वांस्त्वामुपब्रूते हे मरुतो ! यूयं यो वो हिते धन आचके तस्मादेव* स्वश्व्यं वीर्यं यूयं दधत ॥२॥ *[तस्मादेव। सं०]
भावार्थभाषाः - मनुष्या अध्ययनाऽध्यापनादिव्यवहारेणैव परस्परमुपकृत्य सुखिनः सन्तु ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Child of valour and victory, courage incarnate, tolerance and endurance, in the interest of wealth and well-being, people invoke and call upon you. Maruts, heroes of knowledge and divinity, whoever may sincerely invoke and call upon you to your satisfaction, for him you bear the gift of heroic manliness and effective battle power and achievement.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

How should they (learned persons) deal with one another is taught in the 2nd Mantra.

अन्वय:

O son of a person possessing physical and spiritual power, a learned person gives you knowledge. O intelligent persons, for him who satisfies you from all sides with happiness, so that you may acquire wealth of wisdom etc. that gives you true delight, you should use your strength that is full of knowledge of all subjects.

पदार्थान्वयभाषाः - ( सहस:) शरीरात्मबलयुक्तस्य विदुषः = Of the person possessing physical and spiritual power. (मरुतः) धीमन्तो जनाः =Intelligent or wise men. ( स्वश्वयम् ) शोभनेषु अश्वेषु विद्याव्याप्तविषयेषु साधुम् । = Good in all subjects pervaded by knowledge. (आचके) सर्वतः सुखै: तर्पयेत् ।। = Satisfy with happiness from all sides. (चक-तृप्तौ Tr.)
भावार्थभाषाः - Men should enjoy happiness by benefiting one another in the dealings of learning and teaching.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी अध्ययन-अध्यापन इत्यादी धर्मयुक्त कामांनी एकमेकावर उपकार करून सुखी व्हावे. ॥ २ ॥