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यद्ध॒ यान्ति॑ म॒रुतः॒ सं ह॑ ब्रुव॒तेऽध्व॒न्ना । शृ॒णोति॒ कश्चि॑देषाम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yad dha yānti marutaḥ saṁ ha bruvate dhvann ā | śṛṇoti kaś cid eṣām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत् । ह॒ । यान्ति॑ । म॒रुतः॑ । सम् । ह॒ । ब्रु॒व॒ते॒ । अध्व॑न् । आ । शृ॒णोति॑ । कः । चि॒त् । ए॒षा॒म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:37» मन्त्र:13 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:14» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:8» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे वायुओं से क्या-२ उपकार लेवें, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (यत्) ये (मरुतः) पवन (यान्ति) जाते आते हैं वैसे (अध्वन्) विद्यामार्ग में कारीगर विद्वान् लोग (ह) स्पष्ट (समाब्रुवते) मिल के अच्छे प्रकार परस्पर उपदेश करते हैं और (एषाम्) इन वायुओं की विद्या को (कश्चित्) कोई विद्वान् पुरुष (शृणोति) सुनता और जानता है, सब साधारण पुरुष नहीं ॥१३॥
भावार्थभाषाः - इस वायु विद्या को कोई विद्वान् ही ठीक-२ जान सकता है जड़बुद्धि नहीं जान सकता ॥१३॥ मोक्षमूलर की उक्ति है कि जब निश्चय करके पवन परस्पर साथ-२ जाते वा अपने मार्गों के ऊपर बोलते हैं तब कोई मनुष्य क्या श्रवण करता है अर्थात् नहीं, यह अशुद्ध हैं क्योंकि पवनों का जड़त्व होने से वार्त्ता करना असम्भव है और कहनेवाले चेतन जीवों के बोलने में हेतु तो होते हैं* ॥१३॥ संस्कृत उक्ति के अनुसार (वचन सुनने के)। सं० *अर्थात् (ये पवन)। सं०
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अन्तः प्रेरणा का सुनना

पदार्थान्वयभाषाः - १. (यत्) - जब (ह) - निश्चय से (मरुतः) - प्राण (यान्ति) - 'इडा, पिंगला व सुषुम्णा' आदि नाड़ियों में गति करते हैं, उस समय (ह) - निश्चय से ये प्राण (अध्वन् आ) - मार्ग में सर्वत्र (संब्रवते) - सम्यक् उपदेश देते हैं, अर्थात् इन प्राणों की साधना होने पर हृदय की निर्मलता होती है और अन्तः स्थित प्रभु की वाणी सुनाई पड़ती है,  २. परन्तु (एषाम्) - इनकी उस वाणी को (कश्चित्) - कोई विरला व्यक्ति ही (शृणोति) - सुनता है । वस्तुतः इस प्राणसाधना के योगमार्ग पर चलने की प्रवृत्ति विरले ही व्यक्तियों को होती है । हजारों में कोई एकाध ही इस मार्ग पर चलने में प्रवृत्त होता है और इस प्रकार कोई विरला व्यक्ति ही इस अन्तः प्रेरणा के शब्द को सुनता है ।   
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्राणों की गति सुषुम्णा आदि नाड़ियों में होने पर अन्तः प्रेरणा सुनाई पड़ती है, परन्तु इसे कोई - कोई ही सुनता है ।   
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(यत्) ये (ह) स्फुटम् (यान्ति) गच्छन्ति (मरुतः) वायवः (सम्) संगमे (ह) प्रसिद्धम् (ब्रुवते) परस्परमुपदिशन्ति (अध्वन्) अध्वनि विद्यामार्गे। अत्र सुपांसुलुक् इति ङेर्लुक् (आ) समन्तात् (शृणोति) शब्दविद्यां गृह्णाति (कः) विद्वान् (चित्) अपि (एषाम्) मरुताम् ॥१३॥

अन्वय:

पुनस्ते वायुभ्यः किं किमुपकुर्युरित्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - यथा यद्येत इमे मरुत इतस्ततो ह यान्त्यायान्ति तथाऽध्वन्विद्यामार्गे शिल्पिनो विद्वांसो ह समाब्रुवते एषां मरुतां विद्यां कश्चिदेव शृणोति विजानाति च न तु सर्वे ॥१३॥
भावार्थभाषाः - अस्य वायोर्विद्यां कश्चिद्विद्याक्रियाकुशल एव ज्ञातुं शक्नोति नेतरो जड़धीः ॥१३॥ मोक्षमूलरोक्तिः। यदा खलु मरुतः सह गच्छन्ति स्वमार्गाणामुपरि परस्परं वदन्ति। कश्चिन्मनुष्यः शृणोति किमित्यशुद्धास्ति। कुतः। मरुतां जडत्वेन परस्परं वार्त्ताकरणाऽसंभवात्। वक्तॄणां चेतनानां जीवानां वचनश्रवणहेतुत्वाश्च ॥१३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The Maruts, wind powers of nature, like the dynamic heroes of humanity, go together, and as they go by the paths of their movement, they speak together and proclaim their presence and their work. But only some exceptionally perceptive people listen to their voice.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

What use should they make of the winds is taught in the 13th Mantra.

अन्वय:

As these winds pass along here and there, artists and scientists give instructions on the path of (or for acquiring knowledge) knowledge and converse with one another about them. The knowledge of this science of sound is gained by a few and not by all.

पदार्थान्वयभाषाः - Prof. Maxmuller's translation of the Mantras as "As the Maruts pass along, they talk together on the way; does any one hear them ? is not correct, because conversation among inanimate Maruts (Storms) is impossible. It is only conscious souls that can talk and hear and not inanimate like the winds and storms.
भावार्थभाषाः - The science of air can be known by one who is well-versed in knowledge and practical work and not an idiot.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या वायूविद्येला एखादा विद्वानच ठीक-ठीक जाणू शकतो. जड बुद्धी जाणू शकत नाही. ॥ १३ ॥
टिप्पणी: मोक्षमूलरची उक्ती आहे की, जेव्हा निश्चय करून वायू परस्पर बरोबरच जातात किंवा आपल्या मार्गात आवाज करतात. तेव्हा एखादा माणूस काय ऐकतो, अर्थात नाही, हे अशुद्ध आहे. कारण वायू जड असल्यामुळे बोलणे अशक्य आहे व सांगणाऱ्या चेतन जीवाच्या बोलण्यात हेतू असतात. ॥ १३ ॥