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देवता: अग्निः ऋषि: कण्वो घौरः छन्द: बृहती स्वर: मध्यमः

तं घे॑मि॒त्था न॑म॒स्विन॒ उप॑ स्व॒राज॑मासते । होत्रा॑भिर॒ग्निं मनु॑षः॒ समि॑न्धते तिति॒र्वांसो॒ अति॒ स्रिधः॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taṁ ghem itthā namasvina upa svarājam āsate | hotrābhir agnim manuṣaḥ sam indhate titirvāṁso ati sridhaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम् । घ॒ । ई॒म् । इ॒त्था । न॒म॒स्विनः॑ । उप॑ । स्व॒राज॑म् । आ॒स॒ते॒ । होत्रा॑भिः । अ॒ग्निम् । मनु॑षः । सम् । इ॒न्ध॒ते॒ । ति॒ति॒र्वांसः॑ । अति॑ । स्रिधः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:36» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:9» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:8» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी अर्थ का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (नमस्विनः) उत्तम सत्कार करनेवाले (मनुषः) मनुष्य (होत्राभिः) हवनयुक्त सत्य क्रियाओं से (स्वराजम्) अपने राजा (अग्निम्) ज्ञानवान् सभाध्यक्ष को (घ) ही (उपासते) उपासना और (तम्) उसीका (समिन्धते) प्रकाश करते हैं वे मनुष्य (स्रिधः) हिंसा नाश करनेवाले शत्रुओं को (अति तितिर्वांसः) अच्छे प्रकार जीतकर पार हो सकते हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - कोई भी मनुष्य सभाध्यक्ष की उपासना करनेवाले भृत्य और सभासदों के विना अपने राज्य की सिद्धि को प्राप्त होकर शत्रुओं से विजय को प्राप्त नहीं हो सकता ॥७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभु - प्राप्ति के साधन व फल तं

पदार्थान्वयभाषाः - १. (तम्) - उस (स्वराजम्) - स्वयं देदीप्यमान प्रभु को (घ) - निश्चय से (ईम्) - सचमुच (इत्था) - इस प्रकार से, अर्थात् गतमन्त्र के अनुसार हवि की आहुति देने से, त्यागपूर्वक उपभोग करने से (नमस्विनः) - उत्तम अन्नोंवाले होते हुए [नमः अन्न - नि०] अथवा नमस्कारयुक्त होते हुए (उपासते) - उपासित करते हैं, एवं प्रभु की उपासना के लिए आवश्यक है कि हम [क] हवि का स्वीकार करें, यज्ञशेष का सेवन करनेवाले बनें । [ख] उत्तम सात्विक अन्न का प्रयोग करें । [ग] नमस्कारयुक्त हों, नम्रतावाले हों ।  २. उस (अग्नि) - अग्रणी प्रभु को (होत्राभिः) - दानपूर्वक अदन की क्रियाओं से, त्याग से (मनुषः) - विचारशील पुरुष (समिन्धते) - अपने हृदयों में दीप्त करते हैं और इस प्रभु - दीप्ति का परिणाम यह होता है कि ये (स्त्रिधः) - हिंसक शत्रुओं को विनाशकारी काम, क्रोध, लोभादि वासनाओं को (तितिर्वांसः) - तैर जाते हैं । प्रभु की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि हम [क] त्यागशील बनें, यज्ञशेष का सेवन करें । [ख] विचारशील स्वाध्याय के द्वारा ज्ञान को बढ़ानेवाले हों । प्रभुप्राप्ति का लाभ यह होगा कि हम कामादि शत्रुओं को पराजित कर सकेंगे ।   
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभुप्राप्ति के प्रमुख साधन नम्रता, त्याग व विचार [ज्ञान] हैं । प्रभुप्राप्ति का लाभ 'काम, क्रोध, लोभादि' का संहार है ।   
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(तम्) प्रधानं सभाध्यक्षं राजानम् (घ) एव (ईम्) प्रदातारम्। ईमिति पदनामसु पठितम्। निघं० ४।२। अनेन प्राप्त्यर्थो गृह्यते (इत्था) अनेन प्रकारेण (नमस्विनः) नमः प्रशस्तो वज्रः शस्त्रसमूहो विद्यते येषां ते। अत्र प्रशंसार्थे विनिः। (उप) सामीप्ये (स्वराजम्) स्वेषां राजा स्वराजस्तम् (आसते) उपविशन्ति (होत्राभिः) हवनसत्यक्रियाभिः (अग्निम्) ज्ञानस्वरूपम् (मनुषः) मनुष्याः। अत्र मनधातोर्बाहुलकादौणादिक उसिः प्रत्ययः। (सम्) सम्यगर्थे (इन्धते) प्रकाशयन्ते (तितिर्वांसः) सम्यक् तरन्तः। अत्र तॄधातोर्लिटः* स्थाने वर्त्तमाने क्वसुः। (अति) अतिशयार्थे (स्रिधः) हिंसकान क्षयकर्त्तृञ्च्छत्रून् ॥७॥*[लोटः। सं०]

अन्वय:

पुनः स एवार्थ उपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - ये नमस्विनो मनुषो होत्राभिस्तं स्वराजमग्निं सभाध्यक्षं घोपासते समिन्धते च तेऽतिस्रिधस्तितिर्वांसो भवेयुः ॥७॥
भावार्थभाषाः - न खलु सभाध्यक्षोपासकैः सभासद्भिर्भृत्यैर्विना कश्चिदपि स्वराजसिद्धिं प्राप्य शत्रून् विजेतुं शक्नोति ॥७॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Surely men of faith and reverence wielding power and weapons sit and abide by the brilliant sovereign ruler. They kindle the fire and do homage to Agni with sacrificial offers and, wishing to get over the violent and destructive forces, win the battles of life.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The same subject is continued.

अन्वय:

Those persons who possess weapons to destroy their enemies and who with Haven (daily Yajna) and other noble acts approach and enkindle (support ) the King or President of the Assembly who is bright with his radiance, are victorious over their foes.

पदार्थान्वयभाषाः - (ईम् ) प्रदातारम् । ईम् इति पदनामसु पठितम् । ( निघ० ४.२) अनेन प्राप्त्यर्थो गृह्यते = Liberal donor. (नमस्विनः ) नमः प्रशस्तो वज्रः शस्त्रसमूहो विद्यते येषां ते । अत्र प्रशंसार्थे विनिः । = Possessing good weapons. ( स्त्रिधः) हिंसकान् क्षयकर्तन् शत्रून् = Violent enemies.
भावार्थभाषाः - None can overcome his enemies without the members of the Assembly and servants of the State, who are devoted to the liberal President of the Assembly or the council of ministers) having attained Swarajya.
टिप्पणी: ईम्-पद-गतौ, गतेस्त्रयोऽर्थाः ज्ञानं गमनं प्राप्तिश्च अत्र प्राप्त्यर्थेमादाय प्रदातारम् इत्यर्थः कृतः = Literarily he who causes to attain, donor. नमस्विनः नम इति वज्रनाम ( निघ० २.२० )
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - कोणतीही माणसे सभाध्यक्षाची भक्ती करणारी, सेवक व सभासद यांच्याशिवाय आपले राज्य प्राप्त करून शत्रूंवर विजय मिळवू शकत नाहीत. ॥ ७ ॥