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म॒न्द्रो होता॑ गृ॒हप॑ति॒रग्ने॑ दू॒तो वि॒शाम॑सि । त्वे विश्वा॒ संग॑तानि व्र॒ता ध्रु॒वा यानि॑ दे॒वा अकृ॑ण्वत ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mandro hotā gṛhapatir agne dūto viśām asi | tve viśvā saṁgatāni vratā dhruvā yāni devā akṛṇvata ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒न्द्रः । होता॑ । गृ॒हप॑तिः । अग्ने॑ । दू॒तः । वि॒शाम् । अ॒सि॒ । त्वे इति॑ । विश्वा॑ । सम्ग॑तानि । व्र॒ता । ध्रु॒वा । यानि॑ । दे॒वाः । अकृ॑ण्वत॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:36» मन्त्र:5 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:8» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:8» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) शरीर और आत्मा के बल से सुशोभित जिससे आप (मन्द्रः) पदार्थों की प्राप्ति करने से सुख का हेतु (होता) सुखों के देने (गृहपतिः) गृहकार्यों का पालन (दूतः) दुष्ट शत्रुओं को तप्त और छेदन करनेवाले (विशाम्) प्रजाओं के (पतिः) रक्षक (असि) हैं इससे सब प्रजा (यानि) जिन (विश्वा) सब (ध्रुवा) निश्चल (संगतानि) सम्यक् युक्त समयानुकूल प्राप्त हुए (व्रता) धर्मयुक्त कर्मों को (देवाः) धार्मिक विद्वान् लोग (अकृण्वत) करते हैं उनका सेवन (त्वे) आपके रक्षक होने से सदा कर सकती हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो प्रशस्त राजा, दूत और सभासद् होते हैं वे ही राज्य को पालन कर सकते हैं इनसे विपरीत मनुष्य नहीं कर सकते ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

मन्द्रो होता

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे (अग्ने) - सब प्रजाओं की उन्नति के साधक प्रभो ! आप (मन्द्रः) - अपने भक्तों को आनन्दित करनेवाले हैं, (होता) - सब आवश्यक पदार्थों को देनेवाले हैं । (गृहपतिः) - इस शरीररूप गृह की रोगादि के आक्रमण से रक्षा करनेवाले हैं, तथा (विशाम्) - संसार में प्रविष्ट सब प्रजाओं को (दूतः) - कष्टों की तपस्या में तपाकर उनके जीवनों को उज्ज्वल बनानेवाले हैं ।  २. यद्यपि सामान्य दृष्टि से देखने पर प्रतीत तो यह होता है कि सूर्य हमें प्रकाश व प्राणशक्ति देता है, पर्जन्य वृष्टि के द्वारा अन्नादि प्राप्त कराता है, वायु जीवन शक्ति दे रही है, परन्तु वस्तुतः गम्भीर विचार करने पर यह स्पष्ट होता है कि (यानि) - जिन (ध्रुवा व्रता) - ध्रुवव्रतों को [अग्नि जलती ही है, सूर्य तपता ही है, बादल बरसता ही है, वायु बहती ही है] (देवाः) - ये वायु आदि देव (अकृण्वत) - पालन कर रहे हैं, वे (विश्वा) - सब व्रत (त्वे) - हे प्रभो ! आपमें ही संगतानि - संगत होते हैं, अर्थात् इन देवों को वह देवत्व आपने ही प्राप्त कराया है । 'तस्य भासा सर्वमिदं विभाति' उस प्रभु की दीप्ति से यह सब दीप्त हो रहा है । 'तेन देवा देवतामग्र आयन्' उस प्रभु ने ही इन देवों को देवत्व प्राप्त कराया है । ' भयादस्याग्निस्तपति भयात्तपति सूर्यः ' इसी के भय से अग्नि तप रही है और इसी के भय से सूर्य चमक रहा है, एवं इन देवताओं के द्वारा परम्परया वे प्रभु ही हमें पाल रहे हैं, वास्तविक होता - दाता प्रभु ही हैं ।   
भावार्थभाषाः - भावार्थ - वे प्रभु ही आनन्दित करनेवाले, सब - कुछ देनेवाले गृहपति हैं । देवों के द्वारा वे ही हमारा पालन कर रहे हैं ।   
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(मन्द्रः) पदार्थप्रापकत्वेन हर्षहेतुः (होता) सुखानां दाता (गृहपतिः) गृहकार्याणां पालयिता (अग्ने) शरीरबलेन देदीप्यमान (दूतः) यो दुनोत्यपतप्य भिनत्ति दुष्टान् शत्रन् सः (विशाम्) प्रजानाम् (असि) (त्वे) त्वयि राज्यपालके सति (विश्वा) विश्वानि सर्वाणि (संगतानि) धर्म्यव्यवहारसंयुक्तानि (व्रता) व्रतानि सत्याचरणानि कर्माणि। व्रतमितिकर्मनामसु पठितम्। निघं० २।१। (ध्रुवा) निश्चलानि। अत्र त्रिषु शेश्छन्दसि बहुलम्# इतिशेर्लोपः। (यानि) (देवाः) विद्वांसः (अकृण्वत) कृण्वन्ति कुर्वन्ति। अत्र लडर्थे लङ् व्यत्ययेनात्मनेपदञ्च ॥५॥ #[अ० ३।१।७०।]

अन्वय:

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने यतस्त्वं मन्द्रो होता गृहपतिर्दूतो विशांपतिरसि तस्मात्सर्वा प्रजा यानि विश्वा ध्रुवा संगतानि व्रता धर्म्याणि कर्माणि देवा अकृण्वत तानि त्वे सततं सेवन्ते ॥५॥
भावार्थभाषाः - सुराजदूतसभासद एव राज्यं रक्षितुमर्हन्ति न विपरीताः॥५॥ इत्यष्टमो वर्गः ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, deep and grave and joyous, giver of peace and prosperity, protector and promoter of home and family, you are the fighter and ambassador of the people. In you abide all those steady laws and discipline which go with the observance of Dharma and good conduct and which the noblest in nature and humanity observe and have observed.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

How is he ( messenger) is taught further.

अन्वय:

O President shining with your physical power like the fire, because you are giver of delight, the giver of pleasures and discharger of your domestic duties, subduer of enemies, therefore whatever inviolable noble deeds ordinary people do and enlightened persons perform, all are aggregated and harmonized in you who protect the State.

भावार्थभाषाः - It is only the members of the Assemblies along with good ambassadors and messengers who can preserve the State and none else.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे सर्वोत्तम राजा, दूत व सभासद असतात तेच राज्याचे पालन करू शकतात. त्यांच्या विपरीत असलेली माणसे करू शकत नाहीत. ॥ ५ ॥