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नि त्वाम॑ग्ने॒ मनु॑र्दधे॒ ज्योति॒र्जना॑य॒ शश्व॑ते । दी॒देथ॒ कण्व॑ ऋ॒तजा॑त उक्षि॒तो यं न॑म॒स्यन्ति॑ कृ॒ष्टयः॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ni tvām agne manur dadhe jyotir janāya śaśvate | dīdetha kaṇva ṛtajāta ukṣito yaṁ namasyanti kṛṣṭayaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नि । त्वाम् । अ॒ग्ने॒ । मनुः॑ । द॒धे॒ । ज्योतिः॑ । जना॑य । शश्व॑ते । दी॒देथ॑ । कण्वे॑ । ऋ॒तजा॑तः । उ॒क्षि॒तः । यम् । न॒म॒स्यन्ति॑ । कृ॒ष्टयः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:36» मन्त्र:19 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:11» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:8» मन्त्र:19


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उन राजपुरुषों के सहायक जगदीश्वर कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) परमात्मन् ! (यम्) जिस परमात्मा (त्वाम्) आपको (शश्वते) अनादि स्वरूप (जनाय) जीवों की रक्षा के लिये (कृष्टयः) सब विद्वान् मनुष्य (नमस्यन्ति) पूजा और हे विद्वान् लोगो ! जिसको आप (दीदेथ) प्रकाशित करते हैं उस (ज्योतिः) ज्ञान के प्रकाश करनेवाले परब्रह्म को (ऋतजातः) सत्याचरण से प्रसिद्ध (उक्षितः) आनन्दित (मनुः) विज्ञानयुक्त मैं (कण्वे) बुद्धिमान मनुष्य में (निदथे) स्थापित करता हूँ उसकी सब मनुष्य लोग उपासना करें ॥१९॥
भावार्थभाषाः - सबके पूजने योग्य परमात्मा के कृपाकटाक्ष से प्रजा की रक्षा के लिये राज्य के अधिकारी सब मनुष्यों को योग्य है कि सत्यव्यवहार की प्रसिद्धि से धर्मात्माओं को आनन्द और दुष्टों को ताड़ना देवें ॥१९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

मनु व कृष्टि

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे (अग्ने) - अग्रणी प्रभो ! (त्वाम्) - अपको (मनुः) - विचारशील पुरुष (निदधे) - अपने हृदय में स्थापित करता है । प्रभु के स्वागत के लिए ज्ञानी बनना आवश्यक है । 'दृश्यते त्वग्र्यया बुद्ध्या' - उस प्रभु का दर्शन सूक्ष्मबुद्धि से होता है ।  २. ये प्रभु (शश्वते जनाय) - प्लुतगतिवाले पुरुष के लिए, क्रियाशील पुरुष के लिए (ज्योतिः) - प्रकाशस्वरूप होते हैं । आलसी पुरुष को ईश्वर का दर्शन नहीं होता ।  ३. हे प्रभो ! आप (उक्षितः) - आनन्द से सिक्त हो, अर्थात् आनन्दस्वरूप हो ।  ४. आप वे हैं (यम्) - जिनको (कृष्टयः) - श्रमशील मनुष्य (नमस्यन्ति) - अर्चित करते हैं । प्रभु की अर्चना श्रम के द्वारा होती है ।   
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु - प्राप्ति का सर्वप्रथम साधन है 'मनु' - ज्ञानी बनना । द्वितीय साधन है 'शश्वत्' प्लुतगतिवाला होना । तृतीय साधन है - मेधावी बनकर ऋत का पालन करना । चौथा साधन है ' श्रमशील' होना - कृषि करना । संक्षेप में प्रभु को 'मनु, शश्वत्, कण्व व कृष्टि' प्राप्त करते हैं ।   
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(नि) नितराम् (त्वाम्) सर्वसुखप्रदम्। अत्र स्वरव्यत्ययादुदात्तत्वम् सायणाचार्येणेदं भ्रमान्न बुद्धम् (अग्ने) तेजस्विन् (मनुः) विज्ञानन्यायेन सर्वस्याः प्रजायाः पालकः (दधे) स्वात्मनि धरे (ज्योतिः) स्वयं प्रकाशकत्वेन ज्ञानप्रकाशकम् (जनाय) जीवस्य रक्षणाय (शश्वते) स्वरूपेणानादिने (दीदेथ) प्रकाशयेथ शबभावः। (कण्वे) मेधाविनि जने (ऋतजातः) ऋतेन सत्याचरणेन जातः प्रसिद्धः (उक्षितः) आनन्दैः सिक्तः (यम्) परमात्मानम् (नमस्यन्ति) पूजयन्ति। नमसः पूजायाम्#। अ० ३।१।१९। (कृष्टयः) मनुष्याः। कृष्टय इतिमनुष्यनामसु पठितम्। निघं० २।३। ॥१९॥ #[नमोवरिवश्चित्रङः क्यच्। अ० ३।१।१९ इत्ययेन सूत्रेण नमसः पूजायामिति नियमात्पूजार्थे क्यच् प्रत्ययः। सं०]

अन्वय:

पुनरेषां सहायकारी जगदीश्वरः कीदृश इत्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने जगदीश्वर यं परमात्मानं त्वां शश्वते जनाय कृष्टयो नमस्यन्ति हे विद्वांसो यूयं दीदेथ तज्ज्योतिस्स्वरूपं ब्रह्म ऋतजात उक्षितो मनुरहं कण्वे निदधे तमेव सर्वे मनुष्या उपासीरन् ॥१९॥
भावार्थभाषाः - पूज्यस्य परमात्मनः कृपया प्रजारक्षणाय राज्याधिकारे नियोजितैः मनुष्यैः सर्वैः सत्यव्यवहारप्रसिद्ध्या धार्मिका आनन्दितव्या दुष्टाश्च ताड्या बुद्धिमत्सु मनुष्येषु विद्यानिधातव्याः ॥१९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, lord of universal light and power, I, Manu, man of thought and intelligence, enlightened in truth and divine Law, consecrated in the joy of piety, hold on to you in the heart. Shine, eternal light, in the heart of Kanva, man of knowledge, for the sake of humanity. The devotees bow to you in obedience and obeisance.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्वांनी पूजा करण्यायोग्य परमेश्वराच्या कृपाकटाक्षाने प्रजेच्या रक्षणासाठी राज्याचे अधिकारी असलेल्या सर्व माणसांनी सत्य व्यवहार करून धर्मात्म्यांना आनंद देऊन दुष्टांचे निर्दालन करावे. ॥ १९ ॥