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विश्वे॑ दे॒वासो॑ अ॒प्तुरः॑ सु॒तमाग॑न्त॒ तूर्ण॑यः। उ॒स्रा इ॑व॒ स्वस॑राणि॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viśve devāso apturaḥ sutam ā ganta tūrṇayaḥ | usrā iva svasarāṇi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विश्वे॑। दे॒वासः॑। अ॒प्ऽतुरः॑। सु॒तम्। आ। ग॒न्त॒। तूर्ण॑यः। उ॒स्राःऽइ॑व। स्वस॑राणि॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:3» मन्त्र:8 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:6» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

ईश्वर ने फिर भी उन्हीं विद्वानों का प्रकाश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अप्तुरः) मनुष्यों को शरीर और विद्या आदि का बल देने, और (तूर्णयः) उस विद्या आदि के प्रकाश करने में शीघ्रता करनेवाले (विश्वेदेवासः) सब विद्वान् लोगो ! जैसे (स्वसराणि) दिनों को प्रकाश करने के लिये (उस्रा इव) सूर्य्य की किरण आती-जाती हैं, वैसे ही तुम भी मनुष्यों के समीप (सुतम्) कर्म, उपासना और ज्ञान को प्रकाश करने के लिये (आगन्त) नित्य आया-जाया करो॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है।
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अनालस्य व कर्मशीलता

पदार्थान्वयभाषाः - १. गतमन्त्र में वर्णित (विश्वेदेवासः) - सब दिव्यगुण (सुतम्) - सोमनिष्पादनरूप यज्ञ में (आगन्त) - आते हैं  , अर्थात् शरीर में सोमकणों की रक्षा करने पर हममें दिव्यगुणों का विकास होता है ।  २. ये विश्वेदेव (अप्तुरः) [अप्सु तुतुरति  , तुर त्वरणे] कर्मों को शीघ्रता से करनेवाले होते हैं  , अर्थात् क्रियाशील होते हैं । (तूर्णयः) - त्वरावाले  , आलस्य से शून्य ये देव होते हैं । वस्तुतः दिव्यगुणों का सम्भव क्रियामयता व आलस्यशून्यता में ही है । अकर्मण्यता व आलस्य सब दुर्गुणों के लिए गद्देदार आसन का काम करते हैं । यह आलस्य ही विलास के लिए उर्वराभूमि प्रमाणित होता है । ३. क्रियामयता  , आलस्यशून्यता व इनके द्वारा सोम का संरक्षण होने पर सब दिव्यगुण इस प्रकार निश्चय से हमें प्राप्त होते हैं (इव) - जैसे कि (उस्त्रा) - किरणें (स्वसराणि) - दिनों को प्राप्त होती हैं । 'दिन निकले और सूर्य - किरणें भूमि पर न पड़ें' यह सम्भव नहीं  , इसी प्रकार हम 'अप्तुर  , तूर्णि व सुतसम्पादक' बनें और हमें दिव्यगुण प्राप्त न हो  , यह असम्भव है । 
भावार्थभाषाः - भावार्थ - दिव्यगुणों की प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि हम [क] क्रियाशील बनें  , [ख] आलस्यशून्य हों  , [ग] वीर्यरक्षणरूप 'सुत' यज्ञ को करनेवाले हों ।   
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तानेवोपदिशति।

अन्वय:

हे अप्तुरस्तूर्णयो विश्वेदेवासः यूयं स्वसराणि प्रकाशयितुं उस्राः किरणा इव सुतं कर्मोपासनाज्ञानरूपं व्यवहारं प्रकाशयितुमागन्त नित्यमागच्छत समन्तात्प्राप्नुत॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वे) समस्ताः (देवासः) विद्यावन्तः (अप्तुरः) मनुष्याणामपः प्राणान् तुतुरति विद्यादिबलानि प्राप्नुवन्ति प्रापयन्ति च ते। अयं शीघ्रार्थस्य तुरेः क्विबन्तः प्रयोगः। (सुतम्) अन्तःकरणाभिगतं विज्ञानं कर्तुम् (आगन्त) आगच्छत। अयं गमेर्लोटो मध्यमबहुवचने प्रयोगः। बहुलं छन्दसि। (अष्टा०२.४.७३) इत्यनेन शपो लुकि कृते तप्तनप्तनथनाश्च। (अष्टा०७.१.४५) इति तबादेशे पित्वादनुनासिकलोपाभावः। (तूर्णयः) सर्वत्र विद्यां प्रकाशयितुं त्वरमाणाः। ञित्वरा सम्भ्रमे इत्यस्मात् वहिश्रिश्रुयुद्रुग्लाहात्वरिभ्यो नित्। (उणा०४.५३) अत्र नेरनुवर्त्तनात्तूर्णिरिति सिद्धम्। (उस्रा इव) सूर्य्यकिरणा इव। उस्रा इति रश्मिनामसु पठितम्। (निरु०१.५) (स्वसराणि) अहानि। स्वसराणीत्यहर्नामसु पठितम्। (निरु०१.९)॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ईश्वरेणैतन्मन्त्रेणेयमाज्ञा दत्ता-हे सर्वे विद्वांसो नैव युष्माभिः कदाचिदपि विद्यादिशुभगुणप्रकाशकरणे विलम्बालस्ये कर्त्तव्ये। यथा दिवसे सर्वे मूर्तिमन्तः पदार्थाः प्रकाशिता भवन्ति तथैव युष्माभिरपि सर्वे विद्याविषयाः सदैव प्रकाशिता कार्य्या इति॥८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Visionaries of the world, generous givers, wise scholars of life and literature, fast as winds and eager as dawn for the day and mother-cow for the calf in the stall, come to your own and bring us the essences of knowledge and wisdom.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The same subject is continued.

अन्वय:

O Swift-moving and acting rapidly to diffuse light (of knowledge) in all directions, o enlightened persons, come to give us knowledge as the solar rays come diligently to the days or as milch kine hasten to their stalls. Come to enlighten us regarding various sciences. उस्रा इति रश्मिनामसु (निघ० १.५) = The rays of the sun स्वसराणि-अहानि स्वसराणीत्यहर्नामसु । ( निघ० १.९) = The days.

भावार्थभाषाः - God commands through this Mantra. O learned persons ! you should never show any kind of sloth or laziness in diffusing the light of good knowledge, action and meditation. As all embodied articles are manifest in day time, so you should enlighten all, regarding essential subjects. स्वसराणीति गृहनाम (निघ० ३.४ ) उस्रा इति गोनामसु (निघ० २.११)
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ईश्वराने जी आज्ञा केलेली आहे ती सर्व विद्वानांनी निश्चयाने जाणून घ्यावी की विद्या इत्यादी शुभगुणांना प्रकाशित करण्यास कुणीही थोडासाही विलंब किंवा आळस करू नये. जसे सूर्य दिवसा सर्व पदार्थांना प्रकाशित करतो तसेच विद्वान लोकांनीही विद्या सदैव प्रकाशित केली पाहिजे. ॥ ८ ॥