म॒हो अर्णः॒ सर॑स्वती॒ प्र चे॑तयति के॒तुना॑। धियो॒ विश्वा॒ वि रा॑जति॥
maho arṇaḥ sarasvatī pra cetayati ketunā | dhiyo viśvā vi rājati ||
म॒हः। अर्णः॑। सर॑स्वती। प्र। चे॒त॒य॒ति॒। के॒तुना॑। धियः॑। विश्वाः॑। वि। रा॒ज॒ति॒॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
ईश्वर ने फिर भी वह वाणी कैसी है, इस बात का प्रकाश अगले मन्त्र में किया है-
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
ज्ञान का महान् समुद्र
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः सा कीदृशीत्युपदिश्यते॥
या सरस्वती केतुना महदर्णः खलु जलार्णवमिव शब्दसमुद्रं प्रकृष्टतया सम्यग् ज्ञापयति सा प्राणिनां विश्वा धियो विराजति विविधतयोत्तमा बुद्धीः प्रकाशयति॥१२॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
The Vedic Speech which along with noble actions and intellect enlightens that great ocean of the words like the great ocean of water, gives intellectual brightness.
