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चो॒द॒यि॒त्री सू॒नृता॑नां॒ चेत॑न्ती सुमती॒नाम्। य॒ज्ञं द॑धे॒ सर॑स्वती॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

codayitrī sūnṛtānāṁ cetantī sumatīnām | yajñaṁ dadhe sarasvatī ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

चो॒द॒यि॒त्री। सू॒नृता॑नाम्। चेत॑न्ती। सु॒ऽम॒ती॒नाम्। य॒ज्ञम्। द॒धे॒। सर॑स्वती॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:3» मन्त्र:11 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:6» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:1» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

ईश्वर ने वह वाणी किस प्रकार की है, इस बात का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - (सूनृतानाम्) जो मिथ्या वचन के नाश करने, सत्य वचन और सत्य कर्म को सदा सेवन करने (सुमतीनाम्) अत्यन्त उत्तम बुद्धि और विद्यावाले विद्वानों की (चेतन्ती) समझने तथा (चोदयित्री) शुभगुणों को ग्रहण करानेहारी (सरस्वती) वाणी है, वही (यज्ञम्) सब मनुष्यों के शुभ गुणों के प्रकाश करानेवाले यज्ञ आदि कर्म (दधे) धारण करनेवाली होती है॥११॥
भावार्थभाषाः - जो आप्त अर्थात् पूर्ण विद्यायुक्त और छल आदि दोषरहित विद्वान् मनुष्यों की सत्य उपदेश करानेवाली यथार्थ वाणी है, वही सब मनुष्यों के सत्य ज्ञान होने के लिये योग्य होती है, अविद्वानों की नहीं॥११॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सूनृत - सुमति - यज्ञ

पदार्थान्वयभाषाः - १. गतमन्त्र में वर्णित सरस्वती की आराधना (सूनुतानाम्)  [सु ऊन् ऋत] - उत्तम  , दुःख का परिहाण करनेवाली  , सत्यवाणियों की (चोदयित्री) - प्रेरिका है  , अर्थात् स्वाध्याय करनेवाला व्यक्ति ऐसी ही वाणी बोलता है जो कि शोभन होती है  , दूसरों के दुः खों को दूर करनेवाली होती है तथा यथार्थ होती है ।  २. यह (सरस्वती) - ज्ञान का निरूपण करनेवाली वेदवाणी (सुमतीनाम्) - उत्तम मतियों  , विचारों को (चेतन्ती) - चेतानेवाली होती है । स्वाध्यायशील व्यक्ति के मस्तिष्क में कभी कुमति व कुविचार नहीं उपजते; उसे ऐसे विचार सूझते ही नहीं ।  ३. (सरस्वती) - यह ज्ञानाधिदेवता अपने उपासक के अन्दर (यज्ञं दधे) - यज्ञ को धारण करती है । स्वाध्यायशील व्यक्ति कभी अयज्ञिय कर्मों को नहीं करता । 
भावार्थभाषाः - भावार्थ - सरस्वती का आराधक मुख से सूनृत वाणी ही बोलता है  , मस्तिष्क में कुविचारों को नहीं आने देता  , हाथों को यज्ञात्मक उत्तम कर्मों में लगाये रखता है । एवं  , यह सरस्वती आराधक की 'वाणी  , मस्तिष्क व हाथ' सभी को पवित्र बनाती है । इससे आराधक के विचार  , उच्चार व आचार सभी पवित्र बनते हैं ।   
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सा कीदृशीत्युपदिश्यते।

अन्वय:

या सूनृतानां सुमतीनां विदुषां चेतन्ती चोदयित्री सरस्वत्यस्ति, सैव वेदविद्या संस्कृता वाक् यज्ञं दधे दधाति॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (चोदयित्री) शुभगुणग्रहणप्रेरिका (सूनृतानाम्) सुतरामूनयत्यनृतं यत्कर्म तत् सून् तदृतं यथार्थं सत्यं येषां ते सूनृतास्तेषाम्। अत्र ‘ऊन परिहाणे’ अस्मात् क्विप् चेति क्विप्। (चेतन्ती) सम्पादयन्ती सती (सुमतीनाम्) शोभना मतिर्बुद्धिर्येषां ते सुमतयस्तेषां विदुषाम् (यज्ञम्) पूर्वोक्तम्। (दधे) दधाति। छन्दसि लुङ्लङ्लिटः। (अष्टा०३.४.६) अनेन वर्त्तमाने लिट्। (सरस्वती) वाणी॥११॥
भावार्थभाषाः - या किलाप्तानां सत्यलक्षणा पूर्णविद्यायुक्ता छलादिदोषरहिता यथार्थवाणी वर्त्तते, सा मनुष्याणां सत्यज्ञानाय भवितुमर्हति नेतरेषामिति॥११॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Sarasvati, mother stream of eternal knowledge and divine speech, inspires the seekers of universal truth and cosmic law and enlightens the admirers of noble wisdom and understanding. The divine flow of light and knowledge carries on the universal yajna of nature and humanity.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

अन्वय:

Sarasvati-speech which is inspirer of acquiring noble virtues and is the instructress of the right minded, refined by the knowledge of the Vedas upholds the Yajna.

भावार्थभाषाः - It is only the science and true speech of the learned persons who are pure in thought, word and deed, which is full of all knowledge and devoid of all deceit that can give true knowledge to the people and not that of others.
टिप्पणी: According to Rishi Dayananda, the word Sarasvati also means a learned lady vide विद्य सुशिक्षितावागिवपत्नी (यजु० १०,३४ भाष्ये ) विदुषीस्त्री ( यजु० १९.१८.३४ भाष्ये ) वाणीव ज्ञानवती स्त्री ( यजु० १९.८८ मा० ) सुशिक्षिता विदुषी स्त्री (यजु० २०.७३ भाष्ये) विद्यावती (यजु० २०.८० भाष्ये) In this Mantra चोदयन्ती सूनृतानाम् सूनृता is also applicable to her, meaning that a learned lady always uses and instructs others to use true and sweet words, tenders good advice to all and performs the Yajnas well, having the spirit of service and sacrifice. Thus it teaches the duties of a learned lady besides the above interpretation regarding noble speech. The word सूनृता used in this Mantra means true and sweet speech. True and pleasant, kind and sincere, gentle, true and agreeable speech, these are the meanings given in Apte's and other Sanskrit Dictionaries.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी आप्त अर्थात पूर्ण विद्यायुक्त व छल कपट इत्यादी दोषांनी रहित, माणसांना सत्य उपदेश करविणारी यथार्थ वाणी आहे, तीच सर्व माणसांना सत्य ज्ञान प्राप्त होण्यायोग्य असते, अविद्वानांची नाही. ॥ ११ ॥