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स नो॑ म॒हाँ अ॑निमा॒नो धू॒मके॑तुः पुरुश्च॒न्द्रः। धि॒ये वाजा॑य हिन्वतु॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa no mahām̐ animāno dhūmaketuḥ puruścandraḥ | dhiye vājāya hinvatu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। नः॑। म॒हान्। अ॒नि॒ऽमा॒नः। धू॒मऽके॑तुः। पु॒रु॒ऽच॒न्द्रः। धि॒ये। वाजा॑य। हि॒न्व॒तु॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:27» मन्त्र:11 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:24» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अगले मन्त्र में भौतिक अग्नि के गुण प्रकाशित किये हैं॥

पदार्थान्वयभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि जो (धूमकेतुः) जिसका धूम ध्वजा के समान (पुरुश्चन्द्रः) बहुतों को आनन्द देने (अनिमानः) जिसका निमान अर्थात् परिमाण नहीं है (महान्) अत्यन्त गुणयुक्त भौतिक अग्नि है (सः) वह (धिये) उत्तम कर्म वा (वाजाय) विज्ञानरूप वेग के लिये (नः) हम लोगों को (हिन्वतु) तृप्त करता है॥११॥
भावार्थभाषाः - जो सब प्रकार श्रेष्ठ किसी के छिन्न-भिन्न करने में नहीं आता, सब का आधार, सब आनन्द का देने वा विज्ञानसमूह परमेश्वर है और जिसने महागुणयुक्त भौतिक अग्नि रची है, वही उत्तम कर्म वा शुद्ध विज्ञान में हम लोगों को सदा प्रेरणा करे॥११॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

धी+वाज

पदार्थान्वयभाषाः - १. (सः) - वे प्रभु (नः) - हमारे लिए (महान्) - [मह पूजायाम्] पूजा के योग्य हैं , (अनिमानः) - वे स्थान , समय व किसी भी अन्य दृष्टिकोण से सीमित नहीं हैं । 'दिक् कालाधनवच्छिन्न' वे प्रभु हैं । असीम होने के कारण ही वे हमारे ज्ञान व विषय नहीं बनते । प्रभु को हम पूरा - पूरा माप नहीं सकते ।  २. (धूमकेतुः) - [धूमः केतुः यस्य] उस प्रभु का दिया हुआ ज्ञान वासनाओं को कम्पित करके दूर - दूर भगानेवाला है [धू कम्पने] , ज्ञान में वासनाओं का विध्वंस हो जाता है । इस वासना - विध्वंस के द्वारा ही (पुरुश्चन्द्रः) - वे प्रभु पुरु - चन्द्र पालन व पूरण करनेवाले तथा आह्लादित करनेवाले हैं । वासनाओं की उपस्थिति में पूर्णता का होना असम्भव है; और अपूर्णता में आनन्द सम्भव नहीं । ये प्रभु हमें (धिये) - बुद्धि के लिए तथा (वाजाय) - शक्ति के लिए (हिन्वन्तु) - प्रेरित करें । प्रभु - कृपा से हमारा ज्ञान व हमारी शक्ति बढ़े । मस्तिष्क ज्ञान से परिपूर्ण हो तो शरीर शक्ति से भरा हो । शरीर से हम मल्ल हों तो मस्तिष्क से ऋषि [Body of an athlete and the soul of a sage] ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु हमें बुद्धि व शक्ति दें ताकि हम जीवन को पूर्णता की ओर ले - चलें । 
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्भौतिकगुणा उपदिश्यन्ते॥

अन्वय:

मनुष्यैर्यतोऽयं धूमकेतुः पुरुश्चन्द्रोऽनिमानो महानग्निरस्ति, स धिये वाजाय नोऽस्मान् हिन्वतु प्रीणयेत्, तस्मादेतस्य साधनं कार्यम्॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) भौतिकोऽग्निः (नः) अस्मान् (महान्) महागुणविशिष्टः (अनिमानः) अविद्यमानं निमानं परिमाणं यस्य सः (धूमकेतुः) धूमः केतुर्ध्वजावद्यस्य सः (पुरुश्चन्द्रः) पुरूणां बहूनां चन्द्र आह्लादकः। अत्र ह्रस्वाच्चन्द्रोत्तरपदे मन्त्रे० (अष्टा०६.१.१५१) अनेन सुडागमः। (धिये) कर्मणे (वाजाय) वेगाय (हिन्वतु) प्रीणयतु। अत्र लडर्थे लोडन्तर्गतो ण्यर्थः॥११॥
भावार्थभाषाः - यः सर्वथोत्कृष्टः केनापि परिच्छेत्तुमनर्हः सर्वाधारः सर्वानन्दप्रदः विज्ञानधनो जगदीश्वरोऽस्ति, येन महागुणयुक्तोऽयमग्निर्निर्मितः स एव शुभे कर्मणि शुद्धे विज्ञाने अस्मान् प्रेरयत्विति॥११॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - May the yajnic science of fire, great, immeasura ble, universal delight with banners of smoke and flame, call up and inspire us for the achievement of intellige- ntial technology and creative power and progress.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The attributes of the Agni are taught in the 11th Mantra.

अन्वय:

This vast, illimitable, smoke-bannered Agni (fire) which gives delight to many, leads us to great works and speed. Therefore it should be properly utilized.

पदार्थान्वयभाषाः - ( अनिमानः ) अविद्यमानं निमानं परिमाणं यस्य । = Illimitable or Immeasurable. ( पुरुश्चन्द्रः ) पुरूणां बहूनां चन्द्रः आह्लादक: अत्र हूस्वाच्चन्द्रोत्तरपदे' मन्त्रे ( अष्टा० ६.१.१५१ ) अनेन सुडागमः ॥ = Giver of delight to many. (घिये) कर्मणे = for action. ( वाजाय) वेगाय विज्ञानाय वा । = For speed (in case of fire), for wisdom in case of God.
भावार्थभाषाः - God who is the Best, Infinite Support of all, Bestower of Bliss to His devotees, Lord of the wealth of wisdom is the Creator of the useful fire possessing many properties. May He prompt us to acquire pure wisdom and perform noble deeds.
टिप्पणी: पुरु इति बहुनाम ( निघ० ३.१ ) चदि-आहा्लदे (भ्वा.) Hence Rishi Dayananda's interpretation as पुरूणां बहूनां चन्द्रःआह्लादकः। Sayanacharya has translated पुरुश्चन्द्र : as बहुदीप्ति: which is not faithful, as it is not borne out by the root meaning of चदि Wilson has simply followed Sayana translating the word as Resplendent and Griffith has rendered it in English as "Excellently bright."
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो सर्व प्रकारे श्रेष्ठ, ज्याला कुणीही नष्ट करू शकत नाही; सर्वांचा आधार, सर्वांना आनंद देणारा, विज्ञान समूह परमेश्वर आहे, ज्याने महान गुणांनी युक्त भौतिक अग्नी निर्माण केलेला आहे, त्याने उत्तम कर्म व शुद्ध विज्ञानासाठी आम्हाला सदैव प्रेरणा द्यावी. ॥ ११ ॥