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वेद॒ वात॑स्य वर्त॒निमु॒रोर्ऋ॒ष्वस्य॑ बृह॒तः। वेदा॒ ये अ॒ध्यास॑ते॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

veda vātasya vartanim uror ṛṣvasya bṛhataḥ | vedā ye adhyāsate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वेद॑। वात॑स्य। व॒र्त॒निम्। उ॒रोः। ऋ॒ष्वस्य॑। बृ॒ह॒तः। वेद॑। ये। अ॒धि॒ऽआस॑ते॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:25» मन्त्र:9 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:17» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह क्या-क्या जानता है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो मनुष्य (ऋष्वस्य) सब जगह जाने-आने (उरोः) अत्यन्त गुणवान् (बृहतः) बड़े अत्यन्त बलयुक्त (वातस्य) वायु के (वर्त्तनिम्) मार्ग को (वेद) जानता है (ये) और जो पदार्थ इस में (अध्यासते) इस वायु के आधार से स्थित हैं, उनके भी (वर्त्तनिम्) मार्ग को (वेद) जाने, वह भूगोल वा खगोल के गुणों का जाननेवाला होता है॥९॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अग्नि आदि पदार्थों में परिमाण वा गुणों से बड़ा सब मूर्त्तिवाले पदार्थों का धारण करनेवाला वायु है, उसका कारण अर्थात् उत्पत्ति और जाने-आने के मार्ग और जो उसमें स्थूल वा सूक्ष्म पदार्थ ठहरे हैं, उनको भी यथार्थता से जान इनसे अनेक कार्य सिद्ध कर करा के सब प्रयोजनों को सिद्ध कर लेता है, वह विद्वानों में गणनीय विद्वान् होता है॥९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अलंघनीय

पदार्थान्वयभाषाः - १. वह वरुण (उरोः) - अत्यन्त विस्तीर्ण (ऋष्वस्य) - महान् (बृहतः) - सब वृद्धियों के कारणभूत व गुणों के दृष्टिकोण से उत्कृष्ट (वातस्य) - वायु के (वर्तनिम्) - मार्ग को भी (वेद) - जानता है । वायु अपनी तीव्र - से - तीव्र गति से चलता हुआ उस प्रभु से दूर नहीं भाग सकता ।  २. (ये) - जो (अधि आसते) - वेगादि गुणों के कारण वायु से भी अधिष्ठित हैं , अर्थात् वायु को भी अतिक्रान्त कर गये हैं , उन्हें भी वे प्रभु (वेद) - जानते हैं । 
भावार्थभाषाः - भावार्थ - तीव्र-से-तीव्र गति से - वायुवेग से अथवा वायु से भी अधिक वेग से जाते हुए पदार्थ प्रभु को लाँघ नहीं सकते । 
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स किं किं जानातीत्युपदिश्यते

अन्वय:

यो मनुष्य ऋष्वस्योरोर्बृहतो वातस्य वर्त्तनिं वेद जानीयात्, येऽत्र पदार्था अध्यासते तेषां च वर्त्तनिं वेद, स खलु भूखगोलगुणविज्जायते॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वेद) जानाति (वातस्य) वायोः (वर्त्तनिम्) वर्त्तन्ते यस्मिंस्तं मार्गम् (उरोः) बहुगुणयुक्तस्य (ऋष्वस्य) सर्वत्रागमनशीलस्य। अत्र ‘ऋषी गतौ’ अस्माद् बाहुलकादौणादिको वन् प्रत्ययः (बृहतः) महतो महाबलविशिष्टस्य (वेद) जानाति (ये) पदार्थाः (अध्यासते) तिष्ठन्ति ते॥९॥
भावार्थभाषाः - यो मनुष्योऽग्न्यादीनां पदार्थानां मध्ये परिमाणतो गुणतश्च महान् सर्वाधारो वायुर्वर्त्तते तस्य कारणमुत्पत्तिं गमनागमनयोर्मार्गं ये तत्र स्थूलसूक्ष्माः पदार्थाः वर्त्तन्ते, तानपि यथार्थतया विदित्वैतेभ्य उपकारं गृहीत्वा ग्राहयित्वा कृतकृत्यो भवेत्, स इह गण्यो विद्वान् भवतीति वेद्यम्॥९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - One who knows the course of the winds, vast, abundant and stormy, and knows those that are sustained by it, and also knows those that control it, is a specialist of the earth and the skies.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

What else does he know is taught in the ninth Mantra.

अन्वय:

The person who knows the path of the wind, vast very useful and endowed with many attributes going and coming everywhere, excellent and mighty and who knows all the articles that are there, becomes certainly the knower of the. Properties of Geography.

पदार्थान्वयभाषाः - (वर्तनिम्) वर्तन्ते यस्मिन् तं मार्गम् = Way or path.(उरो:) बहुगुणयुक्तस्य (ऋष्वस्य) सर्वत्र गमनशीलस्य अत्र ऋषी-गतौ इत्यस्माद् बाहुलकात् औणादिको वन् प्रत्ययः । = Going and coming or moving everywhere. (बृहत:) महतः, महाबलविशिष्टस्य । = Great, excellent and mighty.
भावार्थभाषाः - The person who knows that the wind is greater in measurement and properties than fire and other objects and is the support of all, knows its origin, the path of its going and coming and all the gross and subtle substances that are on the earth or in the air and after knowing them thoroughly, benefits from them and induces others to do the same, makes his life successful and becomes a distinguished scientist. This fact should be known to all.
टिप्पणी: उरुरिति बहुनाम ( निघ० ३.१ ) ऋऋष्व इति महन्नाम ( निघ० ३.३ ) Rishi Dayananda has given another derivative meaning of the word ऋष्व for, there is another adjective of वातस्य meaning great and mighty i. c. बृहत:
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो माणूस, अग्नी इत्यादी पदार्थांमध्ये परिमाण व गुणांनी मोठा, सर्व मूर्तिमान पदार्थांना धारण करणारा वायू असून त्याचे कारण अर्थात उत्पत्ती व जाण्या-येण्याचा मार्ग व त्यात स्थूल किंवा सूक्ष्म पदार्थ स्थित आहेत त्यांना यथार्थतेने जाणून त्यांच्याकडून अनेक कार्य सिद्ध करून सर्व प्रयोजन सिद्ध करतो, तो विद्वानांमध्ये गणमान्य असतो. ॥ ९ ॥