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वेदा॒ यो वी॒नां प॒दम॒न्तरि॑क्षेण॒ पत॑ताम्। वेद॑ ना॒वः स॑मु॒द्रियः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vedā yo vīnām padam antarikṣeṇa patatām | veda nāvaḥ samudriyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वेद॑। यः। वी॒नाम्। प॒दम्। अ॒न्तरि॑क्षेण। पत॑ताम्। वेद॑। ना॒वः। स॒मु॒द्रियः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:25» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:17» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

उक्त विद्या को यथावत् कौन जानता है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (समुद्रियः) समुद्र अर्थात् अन्तरिक्ष वा जलमय प्रसिद्ध समुद्र में अपने पुरुषार्थ से युक्त विद्वान् मनुष्य (अन्तरिक्षेण) आकाश मार्ग से (पतताम्) जाने-आनेवाले (वीनाम्) विमान सब लोक वा पक्षियों के और समुद्र में जानेवाली (नावः) नौकाओं के (पदम्) रचन, चालन, ज्ञान और मार्ग को (वेद) जानता है, वह शिल्पविद्या की सिद्धि के करने को समर्थ हो सकता है, अन्य नहीं॥७॥
भावार्थभाषाः - जो ईश्वर ने वेदों में अन्तरिक्ष भू और समुद्र में जाने आनेवाले यानों की विद्या का उपदेश किया है, उन को सिद्ध करने को जो पूर्ण विद्या शिक्षा और हस्त क्रियाओं के कलाकौशल में कुशल मनुष्य होता है, वही बनाने में समर्थ हो सकता है॥७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अन्तरिक्ष व समुद्र में भी

पदार्थान्वयभाषाः - १. गतमन्त्र के अनुसार हम उस प्रभु की ओर चलते हैं (यः) - जो कि (अन्तरिक्षेण पतताम्) - आकाशमार्ग से जाते हुए (वीनाम्) - पक्षियों के (पदम्) - गन्तव्य मार्ग को (वेद) - जानता है और  २. (समुद्रियः) - समुद्र में गति करनेवाली (नावः) - नौकाओं को भी (वेद) - जानता है , स्थल की बातों का तो कहना ही क्या!  ३. वे वरुण 'स्थल , जल व नभ' सबमें व्याप्त है । वस्तुतः सर्वव्यापक होने के कारण उनसे कुछ भी छिपा नहीं है । स्थान के दृष्टिकोण से वे प्रभु अनवच्छिन्न हैं , दिशाएँ उन्हें अविच्छिन्न नहीं कर सकती । 
भावार्थभाषाः - भावार्थ - जल , स्थल व अन्तरिक्ष में सर्वत्र व्याप्त वे प्रभु सभी को जानते हैं । उस प्रभु से हम कुछ छिपा नहीं सकते । मन , वाणी और कर्म से पाप होने पर वह वरुण हमें जकड़ता ही है । आकाश में उड़कर या नाव में भागकर हम उस बन्धन से बच नहीं पाते । 
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

एतद्यथावत्को वेदेत्युपदिश्यते॥

अन्वय:

यः समुद्रियो मनुष्योऽन्तरिक्षेण पततां वीनां पदं वेद समुद्रे गच्छन्त्या नावश्च पदं वेद स शिल्पविद्यासिद्धिं कर्त्तुं शक्नोति नेतरः॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वेद) जानाति। द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (यः) विद्वान् मनुष्यः (वीनाम्) विमानानां सर्वलोकानां पक्षिणां वा (पदम्) पदनीयं गन्तव्यमार्गम् (अन्तरिक्षेण) आकाशमार्गेण। अत्र अपवर्गे तृतीया। (अष्टा०२.३.६) इति तृतीया विभक्तिः। (पतताम्) गच्छताम् (वेद) जानाति (नावः) नौकायाः (समुद्रियः) समुद्रेऽन्तरिक्षे जलमये वा भवः। अत्र समुद्राभ्राद् घः। (अष्टा०४.४.११८) अनेन समुद्रशब्दाद् घः प्रत्ययः॥७॥
भावार्थभाषाः - या ईश्वरेण वेदेष्वन्तरिक्षभूसमुद्रेषु गमनाय यानानां विद्या उपदिष्टाः सन्ति ताः साधितुं यः पूर्णविद्याशिक्षाहस्तक्रियाकौशलेषु विचक्षण इच्छति स एवैतत्कार्यकरणे समर्थो भवतीति॥७॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The specialist of the sea and the sky is the man who knows the science and paths of the birds and planes flying across the skies, and he knows the science and routes of the ships sailing across the seas.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

Who knows it fully is taught in the 7th Mantra.

अन्वय:

The person dwelling on sea shore, who knows the path of the birds and aero planes flying through the air, who also knows the course of ships, can accomplish artistic activities and none else.

पदार्थान्वयभाषाः - (वीनाम्) विमानानां सर्वलोकानां पक्षिणां वा । = Of the aero planes, all worlds and birds. (पदम् ) पदनीयं गन्तव्यमार्गम् । = Path. समुद्राभ्राद् घ० ( अष्टा० ४.४.११८) अनेन समुद्रशब्दाद् घः प्रत्ययः ॥ (पतताम् ) गच्छताम् = going or flying.
भावार्थभाषाः - The person who is thoroughly well-versed in sciences, arts and industries is able to understand fully and give practical shape to the science of the vehicles that can be useful equally in firmament, earth and ocean as taught a by God through the Vedas.
टिप्पणी: The word वयः is derived from वी-गति-व्याप्ति प्रजनकान्त्यसनखादनेषु सर्वधातुभ्योऽसुन् (उणा० ४.१८९) वेति गच्छतीति वयः = That which goes or moves, hence birds, moving birds and aero planes all can be equally called वयांसि पत्लृ-गतौं hence पतताम् of going or flying.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या ईश्वराने वेदामध्ये अंतरिक्ष, भूमी व समुद्रात जाणाऱ्या येणाऱ्या यानांच्या विद्येचा उपदेश केलेला आहे, ती सिद्ध करण्यासाठी पूर्ण विद्येचे शिक्षण घेतलेला व हस्तक्रियांच्या कलाकौशल्यात कुशल माणूसच ते बनविण्यास समर्थ असतो. ॥ ७ ॥