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मा नो॑ व॒धाय॑ ह॒त्नवे॑ जिहीळा॒नस्य॑ रीरधः। मा हृ॑णा॒नस्य॑ म॒न्यवे॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mā no vadhāya hatnave jihīḻānasya rīradhaḥ | mā hṛṇānasya manyave ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा। नः॑। व॒धाय॑। ह॒त्नवे॑। जि॒ही॒ळा॒नस्य॑। री॒र॒धः॒। मा। हृ॒णा॒नस्य॑ म॒न्यवे॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:25» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:16» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी अगले मन्त्र में उक्त अर्थ ही का प्रकाश किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वरुण जगदीश्वर ! आप जो (जिहीळानस्य) अज्ञान से हमारा अनादर करे, उसके (हत्नवे) मारने के लिये (नः) हम लोगों को कभी (मा रीरधः) प्रेरित और इसी प्रकार (हृणानस्य) जो कि हमारे सामने लज्जित हो रहा है, उस पर (मन्यवे) क्रोध करने को हम लोगों को (मा रीरधः) कभी मत प्रवृत्त कीजिये॥२॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर उपदेश करता है कि हे मनुष्यो ! जो अल्पबुद्धि अज्ञानीजन अपनी अज्ञानता से तुम्हारा अपराध करें, तुम उसको दण्ड ही देने को मत प्रवृत्त और वैसे ही जो अपराध करके लज्जित हो अर्थात् तुम से क्षमा करवावे तो उस पर क्रोध मत छोड़ो, किन्तु उसका अपराध सहो और उसको यथावत् दण्ड भी दो॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

न घृणा न क्रोध

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे वरुण! (नः) हमें (जिहीळानस्य) - घृणा करनेवाले के (वधाय) - वध के लिए अथवा (हत्नवे) - मारपीट के लिए (मा रीरधः) - मत सिद्ध कीजिए और (हृणानस्य) - क्रोध करनेवाले के (मन्यवे) - क्रोध के लिए भी (नः) - हमें (मा रीरधः) - मत सिद्ध कीजिए , अर्थात् घृणा करनेवाले लोग औरों के वध व घातपात में लगे रहते हैं । हम उनकी भाँति घृणा से परिपूर्ण हृदयवाले होकर औरों का वध व घातपात न करते रहें और न ही क्रोधी बनकर सदा औरों पर क्रोध बरसाते रहें । 
भावार्थभाषाः - भावार्थ - हम घृणा व क्रोध से ऊपर उठें । 
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स एवार्थ उपदिश्यते॥

अन्वय:

हे वरुण जगदीश्वर ! त्वं जिहीडानस्य हत्नवे वधाय चास्मान्कदाचिन्मा रीरधो मा संराधयैवं हृणानस्यास्माकं समीपे लज्जितस्योपरि मन्यवे मा रीरधः॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मा) निषेधार्थे (नः) अस्मान् (वधाय) (हत्नवे) हननकरणाय। अत्र कृहनिभ्यां क्त्नुः। (उणा०३.२९) अनेन हनधातोः क्त्नुः प्रत्ययः। (जिहीळानस्य) अज्ञानादस्माकमनादरं कृतवतो जनस्य। अत्र पृषोदरादीनि यथोपदिष्टम्। इत्यकारस्येकारः। (रीरधः) संराधयः। अत्र ‘रध’ हिंसासंराध्योरस्माण्णिजन्ताल्लोडर्थे लुङ्। (मा) निषेधे (हृणानस्य) लज्जितस्योपरि (मन्यवे) क्रोधाय। अत्र यजिमनि० इति युच् प्रत्ययः॥२॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर उपदिशति हे मनुष्या ! यूयं बलबुद्धिभिरज्ञानादपराधे कृते हननाय मा प्रवर्त्तध्वं कश्चिदपराधं कृत्वा लज्जां कुर्यात्तस्योपरि क्रोधं मा निपातयतेति॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Lord of compassion, let us not feel excited to take up a deadly weapon against the person who offends us and excites our passion for revenge, and save us from the wrath against the person who feels ashamed of his action against us.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The same subject is continued.

अन्वय:

O most Acceptable God, do not allow us to kill the person who insults us through ignorance and never impel us to show wrath to a person who is ashamed of the mistake committed by him in our presence.

पदार्थान्वयभाषाः - (हत्नवे) हननकरणाय अत्र कृहनिभ्यां तनुः ॥ ( उणादि ३.२९ ) अनेन हन् धातोः क्त्नुः प्रत्ययः । = for killing ( जिहीळानस्य ) अज्ञानादस्माकमनादरं कृतवतः जनस्य अत्र पृषोदरादीनि यथोपदिष्टम् इति अकारस्येकारः। = Of the person insulting us through ignorance. (रीरध:) संराधय । अत्र रघ-हिंसासराध्योः इत्यस्मात् णिजन्तात् लोडर्थे लङ् (हृणानस्य ) लज्जितस्य उपरि । = Of the person feeling ashamed.
भावार्थभाषाः - God commands. Omen, do not indulge in putting an end to the life of a person for committing a fault through ignorance and do not be angry with a man who after committing a mistake, is, ashamed of it.
टिप्पणी: हृणानस्य is from ही-लज्जायाम् To be as ashamed of जिहीडानस्य-हेडृ-अनादरे = To disregard or insult.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ईश्वर उपदेश करतो की हे माणसांनो! जे अल्पबुद्धीचे अज्ञानी जन त्यांच्या अज्ञानतेमुळे तुमचा अपराध करतील त्यांना तुम्ही दंड देण्यास प्रवृत्त होऊ नका. जे अपराध करून लज्जित होतील अर्थात तुमच्याकडून क्षमा करून घेतील, त्यांच्यावर क्रोधित होऊ नका. त्यांचा अपराध सहन करून यथायोग्य दंडही द्या. ॥ २ ॥