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अतो॒ विश्वा॒न्यद्भु॑ता चिकि॒त्वाँ अ॒भि प॑श्यति। कृ॒तानि॒ या च॒ कर्त्वा॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ato viśvāny adbhutā cikitvām̐ abhi paśyati | kṛtāni yā ca kartvā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अतः॑। विश्वा॑नि। अद्भु॑ता। चि॒कि॒त्वान्। अ॒भि। प॒श्य॒ति॒। कृ॒तानि॑। या। च॒। कर्त्वा॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:25» मन्त्र:11 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:18» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अगले मन्त्र में उक्त अर्थ का ही प्रकाश किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - जिस कारण जो (चिकित्वान्) सबको चेतानेवाला धार्मिक सकल विद्याओं को जानने न्याय करनेवाला मनुष्य (या) जो (विश्वानि) सब (कृतानि) अपने किये हुए (च) और (कर्त्त्वा) जो आगे करने योग्य कर्मों और (अद्भुतानि) आश्चर्य्यरूप वस्तुओं को (अभिपश्यति) सब प्रकार से देखता है (अतः) इसी कारण वह न्यायाधीश होने को समर्थ होता है॥११॥
भावार्थभाषाः - जिस प्रकार ईश्वर सब जगह व्याप्त और सर्वशक्तिमान् होने से सृष्टि रचनादि रूपी कर्म और जीवों के तीनों कालों के कर्मों को जानकर इनको उन-उन कर्मों के अनुसार फल देने को योग्य है, इसी प्रकार जो विद्वान् मनुष्य पहिले हो गये उनके कर्मों और आगे अनुष्ठान करने योग्य कर्मों के करने में युक्त होता है, वही सबको देखता हुआ सब के उपकार करनेवाले उत्तम से उत्तम कर्मों को कर सब का न्याय करने को योग्य होता है॥११॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

विभूतियाँ

पदार्थान्वयभाषाः - १. गतमन्त्र में कहा था कि इस ब्रह्माण्ड को वह वरुण ही शासित कर रहे हैं । वे ही सम्राट् हैं । संसार के सब पदार्थों का निर्माण करनेवाले भी वे ही हैं । (चिकित्वान्) - ज्ञानी पुरुष (विश्वानि) - सब (कृतानि) - उत्पन्न हुए - हुए (या च कर्त्वा) - और जो आगे उत्पन्न होनेवाले हैं उन (अद्भुता) - अद्भुत पदार्थों को (अतः) - उस परमात्मा से ही होता हुआ (अभिपश्यति) - सर्वतः देखता है ।  २. सूर्य , चन्द्र , तारों में प्रभु के नेत्र का ही अंश चमक रहा है - 'तेजस्तेजस्विनामहम्' सब तेजस्वियों का तेज प्रभु ही हैं - 'यद्यद् विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमर्जितमेव वा । तत्तदेवावाच्छ त्वं मम तेजोंशसम्भवः ॥' [गीता १०४२] सब विभूति व श्रीवाले पदार्थ उस प्रभु के तेजोंश से ही तो हुए हैं ।  ३. प्रभु की इन विभूतियों में प्रभु की महिमा को देखता हुआ 'शुनः शेप' प्रभु के प्रति नतमस्तक होता है । 
भावार्थभाषाः - भावार्थ - सूर्य , चन्द्र , तारे आदि सब अद्भुत पदार्थ उस वरुण की ही विभूतियाँ हैं । 
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स एवार्थ उपदिश्यते॥

अन्वय:

यतो यश्चिकित्वान् वरुणो धार्मिकोऽखिलविद्यो न्यायकारी मनुष्यो वा यानि विश्वानि सर्वाणि कृतानि यानि च कर्त्त्वा कर्त्तव्यान्यद्भुतानि कर्माण्यभिपश्यत्यतः स न्यायाधीशो भवितुं योग्यो जायते॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अतः) पूर्वोक्तात्कारणात् (विश्वानि) सर्वाणि (अद्भुता) आश्चर्यरूपाणि। अत्र सर्वत्र शेश्छन्दसि इति लोपः। (चिकित्वान्) केतयति जानातीति चिकित्वान्। अत्र ‘कित ज्ञाने’ अस्माद् वेदोक्ताद् धातोः क्वसुः प्रत्ययः। चिकित्वान् चेतनावान्। (निरु०२.११) (अभि) सर्वतः (पश्यति) प्रेक्षते (कृतानि) अनुष्ठितानि (या) यानि (च) समुच्चये (कर्त्वा) कर्त्तव्यानि। अत्र कृत्यार्थे तवैकेन्केन्यत्वन इति त्वन् प्रत्ययः॥११॥
भावार्थभाषाः - यथेश्वरः सर्वत्राभिव्याप्तः सर्वशक्तिमान् सन् सृष्टिरचनादीन्याश्चर्य्यरूपाणि कृत्वा वस्तूनि विधाय जीवानां त्रिकालस्थानि कर्म्माणि च विदित्वैतेभ्यस्तत्तत्कर्माश्रितं फलं दातुमर्हति। एवं यो विद्वान् मनुष्यो भूतपूर्वाणां विदुषां कर्माणि विदित्वाऽनुष्ठातव्यानि कर्माण्येव कर्त्तमुद्युङ्क्ते स एव सर्वाभिद्रष्टा सन् सर्वोपकारकाण्यनुत्तमानि कर्माणि कृत्वा सर्वेषां न्यायं कर्त्तुं शक्नोतीति॥११॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - And hence wide awake and all aware, he watches and oversees all the wonderful things which have been done and which have yet to be done.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The same subject is continued.

अन्वय:

Because a righteous, highly learned and just man sees all actions that have been done by a man and which will be done, he becomes, fit to be a judge.

पदार्थान्वयभाषाः - (चिकित्वान् ) केतयति जानातीति चिकित्वान् । अत्र कित-ज्ञाने अस्माद् वेदोक्तात् धातोः कसुः प्रत्ययः । चिकित्वान (चेतनावान्) (निरुक्ते २.११) = Wise who gives knowledge to all. (कर्त्वा ) कर्त्तव्यानि । अत्र कृत्यार्थे तवैकेन्केन्यत्वनः इति त्वन् प्रत्ययः । = To be done in future.
भावार्थभाषाः - As God being Omnipresent and Omnipotent performs wonderful acts like the creation, sustenance and dissolution of the world knowing all the acts of men gives them the fruit of actions, in the same manner, he who having known the actions performed by his ancestors is always engaged in doing noble deeds to benefit all, being witness to and having done action, which bring about the welfare of all, can be just to all.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या प्रकारे ईश्वर सर्व स्थानी व्याप्त असून, सर्वशक्तिमान असल्यामुळे सृष्टिरचनारूपी कर्म व जीवांच्या तीन काळातील कर्मांना जाणतो व त्यांना त्या त्या कर्मानुसार फळ देतो, त्याप्रकारेच जो विद्वान माणूस भूतकाळातील विद्वानांच्या कर्मांना जाणून पुढे योग्य कर्मांचे अनुष्ठान करतो तोच सर्वदृश्य सर्वांचा उपकारक, उत्तम कर्म करणारा, सर्वांचा न्याय करण्यायोग्य असतो. ॥ ११ ॥