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अ॒प्स्व१न्तर॒मृत॑म॒प्सु भे॑ष॒जम॒पामु॒त प्रश॑स्तये। देवा॒ भव॑त वा॒जिनः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

apsv antar amṛtam apsu bheṣajam apām uta praśastaye | devā bhavata vājinaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒प्ऽसु। अ॒न्तः। अ॒मृत॑म्। अ॒प्ऽसु। भे॒ष॒जम्। अ॒पाम्। उ॒त। प्रऽश॑स्तये। देवाः॑। भव॑त। वा॒जिनः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:23» मन्त्र:19 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:11» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:19


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देवाः) विद्वानो ! तुम (प्रशस्तये) अपनी उत्तमता के लिये (अप्सु) जलों के (अन्तः) भीतर जो (अमृतम्) मार डालनेवाले रोग का निवारण करनेवाला अमृतरूप रस (उत) तथा (अप्सु) जलों में (भेषजम्) औषध हैं, उनको जानकर (अपाम्) उन जलों की क्रियाकुशलता से (वाजिनः) उत्तम श्रेष्ठ ज्ञानवाले (भवत) हो जाओ॥१९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो तुम अमृतरूपी रस वा ओषधिवाले जलों से शिल्प और वैद्यकशास्त्र की विद्या से उनके गुणों को जानकर कार्य्य की सिद्धि वा सब रोगों की निवृत्ति नित्य करो॥१९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

जलों में अमृतत्व

पदार्थान्वयभाषाः - १. (अप्सु अन्तः) - जलों में (अमृतम्) - अमृतत्व है , (अप्सु) - जलों में (भेषजम्) - औषध है अर्थात् जलों के ठीक प्रयोग से मनुष्य दीर्घजीवी - सौ वर्ष तक जीनेवाला बनता है और इन जलों के द्वारा सब रोगों का निवारण हो सकता है । इनका तो नाम ही वारि [रोगानिवारयति] है - ये रोगों को दूर करते हैं । वेद में इनका नाम 'भेषज' भी है - ये औषध हैं ।  २. (उत) - और (अपाम्) - इन जलों के (प्रशस्तये) - [प्रशस्तिभिः - अथर्व०] प्रशंसनीय गुण - धर्मों से (देवाः) - देव (वाजिनः) - शक्तिशाली (भवत) - होते हैं । देव इन जलों का ठीक रूप से प्रयोग करते हैं । उनके लिए मेघजल ही मद्य होता है । संस्कृत में इसे 'अमर वारुणी' नाम ही दे दिया गया है । ये देव जलों का ठीक प्रयोग करते हुए शक्ति का सम्पादन करते हैं । आसुरी वृत्तिवाले लोग जल के प्रयोग से दूर होकर उनके लाभों से वंचित रह जाते हैं । 
भावार्थभाषाः - भावार्थ - जल अमृत हैं , भेषज है । ये हमें शक्तिशाली बनाते हैं । 
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ताः कीदृश्य इत्युपदिश्यते।

अन्वय:

हे देवा विद्वांसो यूयं प्रशस्तयेऽप्स्वन्तरमृतमुताऽप्सु भेषजम् विदित्वाऽपां प्रयोगेण वाजिनो भवत॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अप्सु) जलेषु (अन्तः) मध्ये (अमृतम्) मृत्युकारकरोगनिवारकं रसम् (अप्सु) जलेषु (भेषजम्) औषधम् (अपाम्) जलानाम् (उत) अप्यर्थे (प्रशस्तये) उत्कर्षाय (देवाः) विद्वांसः (भवत) स्तः (वाजिनः) प्रशस्तो बाधो येषामस्ति ते। अत्र प्रशंसार्थ इनिः। गत्यर्थाद्विज्ञानं गृह्यते॥१९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यूयममृतरसाभ्य ओषधिगर्भाभ्योऽद्भ्यः शिल्पवैद्यकविद्याभ्यां गुणान् विदित्वा शिल्पकार्य्यसिद्धिं रोगनिवारणं च नित्यं कुरुतेति॥१९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - There is nectar in the waters. There is health and medicinal efficacy in the waters. General scholars of eminence, rise and act fast for special studies and appraisal of waters.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

What is the nature of those waters is taught in the next mantra.

अन्वय:

O learned persons, for your all-round development you should know that there is Amrita (Ambrosia or the power of destroying diseases that cause death) in the waters. There is healing balm or there are medicinal herbs in the waters. Know this and by their proper use become enlightened and wise.

पदार्थान्वयभाषाः - (अमृतम्) मृत्युकारकरोगनिवारकम् = The power of destroying diseases that cause death. (भेषजम् ) औषधम् Healing balm or medicine. (देवा:) विद्वांसः = Learned persons. (वाजिनः) प्रशस्तो बोधो येषामस्ति ते । अत्र प्रशंसार्थ इति: । गत्यर्थाद् विज्ञानं गृह्यते || = Full of knowledge, enlightened or wise.
भावार्थभाषाः - O men, having known the attributes of the waters which contain disease-destroying powers and which contain in themselves the medicinal herbs, use them for the removal of diseases the medicinal herbs, use them for the removal of diseases and the accomplishment of arts, crafts and industries.
टिप्पणी: It is remarkable that even Sayanacharya-an orthodox commentator has taken देवा: as हे देवा:-ऋत्विजादयो ब्राह्मणाः । एते वै देवाः प्रत्यक्षं यद् ब्राह्मणाः । (तैतिरीय संहितायाम् १.७ ३.१ ) इति श्रुत्यन्तरात् ॥ Which Wilson has rightly translated as "divine priests." For this meaning of ऋत्विजादयो ब्राह्मणा: Sayanacharya has given quotation from the Taittireeya Samhita 1.7.3.1 where it is clearly stated that the Brahmanas are visible devas. But Griffith has translated देवा: where as else where as "Ye Gods." He seems to be obsessed with the idea of Polytheism in the Vedas.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! तुम्ही अमृतरूपी रस व औषधीयुक्त जलाने शिल्प व वैद्यकशास्त्राच्या विद्येने त्यांचे गुण जाणून कार्याची सिद्धी करा व सर्व रोगांची निवृत्ती करा. ॥ १९ ॥