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ह॒स्का॒राद्वि॒द्युत॒स्पर्यतो॑ जा॒ता अ॑वन्तु नः। म॒रुतो॑ मृळयन्तु नः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

haskārād vidyutas pary ato jātā avantu naḥ | maruto mṛḻayantu naḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ह॒स्का॒रात्। वि॒ऽद्युतः॑। परि॑। अतः॑। जा॒ताः। अ॒व॒न्तु॒। नः॒। म॒रुतः॑। मृ॒ळ॒य॒न्तु॒। नः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:23» मन्त्र:12 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:10» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे पवन किस प्रकार के हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हम लोग जिस कारण (हस्कारात्) अति प्रकाश से (जाताः) प्रकट हुई (विद्युतः) जो कि चपलता के साथ प्रकाशित होती हैं, वे बिजली (नः) हम लोगों के सुखों को (अवन्तु) प्राप्त करती हैं। जिससे उन को (परि) सब प्रकार से साधते और जिससे (मरुतः) पवन (नः) हम लोगों को (मृळयन्तु) सुखयुक्त करते हैं (अतः) इससे उनको भी शिल्प आदि कार्यों में (परि) अच्छे प्रकार से साधें॥१२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य लोग जब पहिले वायु फिर बिजुली के अनन्तर जल पृथिवी और ओषधी की विद्या को जानते हैं, तब अच्छे प्रकार सुखों को प्राप्त होते हैं॥१२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

देदीप्यमान प्रकाश

पदार्थान्वयभाषाः - १. गतमन्त्र में शुभमार्ग पर चलने का उल्लेख है । अतः उस शुभ मार्ग पर चलने से (हस्कारात्) - दीप्ति को करनेवाले (विद्युतः) - विशेषेण दीप्यमान ज्ञानज्योति के (परि) - लक्ष्य से (जाताः) - प्रादुर्भूत हुए - हुए ये मरुत् (नः) - हमें (अवन्तु) - रक्षित करें । जब हम शुभ मार्ग पर चलते हैं तो हमारी प्राणशक्ति का विकास होता है । प्राणसाधना से हममें शुभ मार्ग पर चलने की वृत्ति उत्पन्न होती है और शुभमार्ग पर चलने से प्राणशक्ति का पोषण होता है । ये प्राण विकसित शक्तिवाले होकर सोमरक्षण के द्वारा ज्ञानाग्नि को दीप्त करते हैं । ज्ञानाग्नि की दीप्ति के द्वारा ये प्राण हमारा रक्षण करते हैं ।  २. ये रक्षण करनेवाले (मरुतः) - प्राण (नः) - हमें (मृळयन्तु) - सुखी करें । प्राणों के स्वास्थ्य पर ही सारा सुख निर्भर करता है । प्राणशक्ति की क्षीणता में ऐहिक व आमुष्मिक सब सुख समाप्त हो जाते हैं । 
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्राणशक्ति के विकास से ज्ञानदीप्ति की वृद्धि होती है और हमारा जीवन सुखमय होता है । 
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः कीदृशा मरुत इत्युपदिश्यते।

अन्वय:

वयं यतो हस्काराज्जाता विद्युतो नोऽस्मान् सुखान्यवन्तु प्रापयन्त्यतस्ताः परितः सर्वतः संसाधयेम। यतो मरुतो नोऽस्मान् मृडयन्तु सुखयन्त्यतस्तानपि कार्येषु सम्प्रयोजयेम॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (हस्कारात्) हसनं हस्तत्करोति येन तस्मात् (विद्युतः) विविधतया द्योतयन्ते यास्ताः (परि) सर्वतोभावे (अतः) हेत्वर्थे (जाता) प्रकटत्वं प्राप्ताः (अवन्तु) प्रापयन्ति। अत्र ‘अव’ धातोर्गत्यर्थात् प्राप्त्यर्थो गृह्यते, लडर्थे लोडन्तर्गतो ण्यर्थश्च। (नः) अस्मान् (मरुतः) वायवः (मृळयन्तु) सुखयन्ति। अत्रापि लडर्थे लोट्। (नः) अस्मान्॥१२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यदा पूर्वं वायुविद्या ततो विद्युद्विद्या तदनन्तरं जलपृथिव्योषधिविद्याश्चैता विज्ञायन्ते, तदा सम्यक् सुखानि प्राप्यन्त इति॥१२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - May the lights bom of flashes of lightning spare and protect and help us advance. May the Maruts give us peace and comfort.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसे जेव्हा वायू, विद्युत, जल, पृथ्वी व औषधी इत्यादी विद्या जाणतात तेव्हा सम्यक सुख प्राप्त करतात. ॥ १२ ॥