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सखा॑य॒ आ निषी॑दत सवि॒ता स्तोम्यो॒ नु नः॑। दाता॒ राधां॑सि शुम्भति॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sakhāya ā ni ṣīdata savitā stomyo nu naḥ | dātā rādhāṁsi śumbhati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सखा॑यः। आ। नि। सी॒द॒त॒। स॒वि॒ता। स्तोम्यः॑। नु। नः॒। दाता॑। राधां॑सि। शु॒म्भ॒ति॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:22» मन्त्र:8 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:5» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसे मनुष्य इस उपकार को ग्रहण कर सकें, सो अगले मन्त्र में उपदेश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग सदा (सखायः) आपस में मित्र सुख वा उपकार करनेवाले होकर (आनिषीदत) सब प्रकार स्थित रहो और जो (स्तोम्यः) प्रशंसनीय (नः) हमारे लिये (राधांसि) अनेक प्रकार के उत्तम धनों को (दाता) देनेवाला (सविता) सकल ऐश्वर्य्ययुक्त जगदीश्वर (शुम्भति) सबको सुशोभित करता है, उसकी (नु) शीघ्रता के साथ नित्य प्रशंसा करो। तथा हे मनुष्यो ! जो (स्तोम्यः) प्रशंसनीय (नः) हमारे लिये (राधांसि) उक्त धनों को (शुम्भति) सुशोभित कराता वा उनके (दाता) देने का हेतु (सविता) ऐश्वर्य्य देने का निमित्त सूर्य्य है, उसकी (नु) नित्य शीघ्रता के साथ प्रशंसा करो॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। मनुष्यों को परस्पर मित्रभाव के विना कभी सुख नहीं हो सकता। इससे सब मनुष्यों को योग्य है कि एक-दूसरे के साथ होकर जगदीश्वर वा अग्निमय सूर्य्यादि का उपदेश कर वा सुनकर उनसे सुखों के लिये सदा उपकार ग्रहण करें॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

जीवन की शोभा

पदार्थान्वयभाषाः - १. (सखायः) - मित्रो ! (आनिषीदत) - सब ओर से आकर नम्रता से बैठो । (सविता) - सारे ब्रह्माण्ड का उत्पादक , सर्वप्रेरक प्रभु (नु) - अब (नः) - हम सबका (स्तोम्यः) - स्तुति करने योग्य है । उस प्रभु का स्तवन ही हमारे लिए इस संसार में वह आश्रय है जो हमें विषयों में फंसने से बचाता है ।  २. वह स्तुत्य प्रभु (राधांसि दाता) - सब धनों के देनेवाले हैं । प्रभु ही उन धनों को प्राप्त कराते हैं जो हमें इस जीवन में सब आवश्यक पदार्थों को प्राप्त कराके जीवन - यात्रा में सफलता प्राप्त कराने में सहायक होते हैं ।  ३. वे प्रभु इस प्रकार इन धनों के द्वारा सफल बनाकर (शुम्भति) - हमारे जीवनों को शोभायुक्त करते हैं । जीवन की शोभा सफलता में ही है । सफलता के लिए सब आवश्यक उपकरणों को जुटाने के लिए धन की आवश्यकता है । इस धन के देनेवाले वे प्रभु ही हैं । 
भावार्थभाषाः - भावार्थ - हम प्रभु का स्तवन करें , क्योंकि प्रभु ही आवश्यक धन देकर हमें सफलता प्राप्त कराते हैं और हमारे जीवनों को शोभायुक्त करते हैं । 
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कथमयुमपकारो ग्रहीतुं शक्य इत्युपदिश्यते।

अन्वय:

हे मनुष्या यूयं सदा सखायः सन्त आनिषीदत यः स्तोम्यो नोऽस्मभ्यं राधांसि दाता सविता जगदीश्वरः सूर्य्यो वा शुम्भति तं नु नित्यं प्रशंसत॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सखायः) परस्परं सुहृदः परोपकारका भूत्वा (आ) अभितः (नि) निश्चयार्थे (सीदत) वर्त्तध्वम् (सविता) सकलैश्वर्य्ययुक्तः। ऐश्वर्य्यहेतुर्वा (स्तोम्यः) प्रशंसनीयः (नु) क्षिप्रम्। न्विति क्षिप्रनामसु पठितम्। (निघं०२.१५) (नः) अस्मभ्यम् (दाता) दानशीलो दानहेतुर्वा (राधांसि) नानाविधान्युत्तमानि धनानि (शुम्भति) शोभयति॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषालङ्कारः। नैव मनुष्याणां मित्रभावेन विना परस्परं सुखं सम्भवति। अतः सर्वैः परस्परं मिलित्वा जगदीश्वरस्याग्निमयस्य सूर्य्यादेर्वा गुणानुपदिश्य श्रुत्वा च तेभ्यः सुखाय सदोपकारो ग्राह्य इति॥८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Friends, come and sit together, Savita alone is our lord for worship and adoration. Universal giver, He beautifies and beatifies His gifts of wealth and light.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. माणसांनी परस्पर मैत्रीने वागल्याशिवाय कधी सुख लागत नाही. त्यामुळे सर्व माणसांनी परस्पर मिळून परमेश्वर व अग्निमय सूर्य इत्यादीचा उपदेश करून, ऐकून सुखासाठी त्यांचा सदैव उपयोग करून घ्यावा. ॥ ८ ॥