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इ॒हेन्द्रा॒णीमुप॑ ह्वये वरुणा॒नीं स्व॒स्तये॑। अ॒ग्नायीं॒ सोम॑पीतये॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ihendrāṇīm upa hvaye varuṇānīṁ svastaye | agnāyīṁ somapītaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒ह। इ॒न्द्रा॒णीम्। उप॑। ह्व॒ये॒। व॒रु॒णा॒नीम्। स्व॒स्तये॑। अ॒ग्नायी॑म्। सोम॑ऽपीतये॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:22» मन्त्र:12 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:6» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसी देवपत्नी हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य लोगो ! जैसे हम लोग (इह) इस व्यवहार में (स्वस्तये) अविनाशी प्रशंसनीय सुख वा (सोमपीतये) ऐश्वर्य्यों का जिसमें भोग होता है, उस कर्म के लिये जैसा (इन्द्राणीम्) सूर्य्य (वरुणानीम्) वायु वा जल और (अग्नायीम्) अग्नि की शक्ति हैं, वैसी स्त्रियों को पुरुष और पुरुषों को स्त्री लोग (उपह्वये) उपयोग के लिये स्वीकार करें, वैसे तुम भी ग्रहण करो॥१२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमा और उपमालङ्कार हैं। मनुष्यों को उचित है कि ईश्वर के बनाये हुए पदार्थों के आश्रय से अविनाशी निरन्तर सुख की प्राप्ति के लिये उद्योग करके परस्पर प्रसन्नतायुक्त स्त्री और पुरुष का विवाह करें, क्योंकि तुल्य स्त्री पुरुष और पुरुषार्थ के विना किसी मनुष्य को कुछ भी ठीक-ठीक सुख का सम्भव नहीं हो सकता॥१२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

इन्द्राणी - वरुणानी - अग्नायी

पदार्थान्वयभाषाः - १. (इह) - इस जीवन - यज्ञ में (स्वस्तये) - उत्तम स्थिति व कल्याण के लिए तथा (सोमपीतये) - सोम के पान , अर्थात् शक्ति की रक्षा के लिए (इन्द्राणीम्) - इन्द्राणी को , (वरुणानीम्) - वरुणपत्नी वरुणानी को तथा (अग्नायीम्) - अग्निपत्नी को (उपह्वये) - पुकारता हूँ ।  २. ' इन्द्राणी' इन्द्र की पत्नी है । इन्द्र सब असुरों का संहार करनेवाला है । इस असुर - संहारिणी शक्ति को ही यहाँ ' इन्द्राणी' कहा गया है । असुरों का अग्रणी ' वृत्र' है । यह ज्ञान पर आवरण डालनेवाला काम ही है । ' आवृतं ज्ञानमेतेन' । इस काम को प्रचण्ड ज्ञानाग्नि ही दग्ध करती है एवं ज्ञानाग्नि की कोशभूत यह बुद्धि ही इन्द्राणी है ।  ३. मन में किसी प्रकार के द्वेषादि मलिन भावों को न आने देनेवाली वरुणानी है । यह अपने को व्रतों के बन्धन में बाँधकर द्वेषादि से अपने को शून्य बनाती है । [४] ' अग्नायी' अग्निपत्नी है । यही जठराग्नि है । यह दीप्त रहकर शरीरों के स्वास्थ्य का कारण होती है । इस प्रकार इन देवपत्नियों से हमारी स्थिति उत्तम तो होती ही है , साथ ही इनकी कृपा से शरीर में सोम का रक्षण भी होता है ।     
भावार्थभाषाः - भावार्थ - इन्द्राणी , वरुणानी व अग्नायी को हम स्वस्ति व सोमपीति के लिए पुकारते हैं । 
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ताः कीदृश्यो देवपत्न्य इत्युपदिश्यते।

अन्वय:

मनुष्या यथाहमिह स्वस्तये सोमपीतय इन्द्राणीं वरुणानीमग्नायीमिव स्त्रियमुपह्वये तथा भवद्भिरपि सर्वैरनुष्ठेयम्॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इह) एतस्मिन् व्यवहारे। (इन्द्राणीम्) इन्द्रस्य सूर्य्यस्य वायोर्वा शक्तिं सामर्थ्यमिव वर्त्तमानम् (उप) उपयोगे (ह्वये) स्वीकुर्वे (वरुणानीम्) यथा वरुणस्य जलस्येयं शान्तिमाधुर्य्यादिगुणयुक्ता शक्तिस्तथाभूतम् (स्वस्तये) अविनष्टा याभिपूजिताय सुखाय। स्वस्तीत्यविनाशिनामास्तिरभिपूजितः। (निरु०३.२१) (अग्नायीम्) यथाग्नेरियं ज्वालास्ति तादृशीम्। वृषाकप्यग्नि० (अष्टा०४.१.३७) अनेन ङीप्प्रत्यय ऐकारादेशश्च। (सोमपीतये) सोमानामैश्वर्य्याणां पीतिर्भोगो यस्मिन् तस्मै। सह सुपा इति समासः। अग्नाय्यग्नेः पत्नी तस्या एषा भवति। इहेन्द्राणीमुपह्वये० सा निगदव्याख्याता। (निरु०८.३४)॥१२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैरीश्वररचितानां पदार्थानां सकाशादविनश्वरसुख- प्राप्तयेऽत्युत्तमाः स्त्रियः प्राप्तव्याः। नित्यमुद्योगेनान्योऽन्यं प्रीता विवाहं कुर्य्युः। नैव सदृशस्त्रीः पुरुषार्थं चान्तरा कस्यचित् किंचिदपि यथावत् सुखं सम्भवति॥१२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - I invoke Indrani, light of the sun, Varunani, coolness of water and soothing softness of air, and Agnayi, heat of fire and warmth to bless our homes and women with peace and progress, protection and prosperity for the sake of happiness and well-being.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार व उपमालंकार आहेत. ईश्वराने निर्माण केलेल्या पदार्थांच्या आश्रयाचे अविनाशी व निरंतर सुखाच्या प्राप्तीसाठी उद्योग करून परस्पर प्रसन्नतेने स्त्री-पुरुषांनी विवाह करावा. कारण तुल्य स्त्री-पुरुष व पुरुषार्थ याशिवाय कोणत्याही माणसाला कोणतेही सुख मिळणे शक्य नाही. ॥ १२ ॥