इन्द्र॑वायू इ॒मे सु॒ता उप॒ प्रयो॑भि॒रा ग॑तम्। इन्द॑वो वामु॒शन्ति॒ हि॥
indravāyū ime sutā upa prayobhir ā gatam | indavo vām uśanti hi ||
इन्द्र॑वायू॒ इति॑। इ॒मे। सु॒ताः। उप॑। प्रयः॑ऽभिः॒। आ। ग॒त॒म्। इन्द॑वः। वाम्। उ॒शन्ति॑। हि॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब जो स्तोत्रों से प्रकाशित पदार्थ हैं, उनकी वृद्धि और रक्षा के निमित्त का अगले मन्त्र में उपदेश किया है-
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
ज्ञानेश्वर्य व गतिशीलता
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथोक्थप्रकाशितपदार्थानां वृद्धिरक्षणनिमित्तमुपदिश्यते।
इमे सुता इन्दवो हि यतो वान्तौ सहचारिणाविन्द्रवायू प्रकाशन्ते तौ चोपागतमुपागच्छतस्ततः प्रयोभिरन्नादिभिः पदार्थैः सह सर्वे प्राणिनः सुखान्युशन्ति कामयन्ते॥४॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
Now it is taught how this knowledge of God and air is to be increased and preserved.
Because Yajnas producing water with various activities and all attainable enjoyments shine on account of the sun and the air and when they come, all beings desire happiness with the food materials and other articles.
