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क॒र॒म्भ ओ॑षधे भव॒ पीवो॑ वृ॒क्क उ॑दार॒थिः। वाता॑पे॒ पीव॒ इद्भ॑व ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

karambha oṣadhe bhava pīvo vṛkka udārathiḥ | vātāpe pīva id bhava ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क॒र॒म्भः। ओ॒ष॒धे॒। भ॒व॒। पीवः॑। वृ॒क्कः। उ॒दा॒र॒थिः। वाता॑पे। पीवः॑। इत्। भ॒व॒ ॥ १.१८७.१०

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:187» मन्त्र:10 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:7» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:24» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ओषधे) ओषधिव्यापी परमेश्वर ! आप (करम्भः) करनेवाले (उदारथिः) जाठराग्नि के प्रदीपक (वृक्कः) रोगादिकों के वर्जन कराने और (पीवः) उत्तम वृद्धि करानेवाले (भव) हूजिये। तथा हे (वातापे) पवन के समान सर्वव्यापक परमात्मन् आप (पीवः) उत्तम वृद्धि देनेवाले (इत्) ही (भव) हूजिये ॥ १० ॥
भावार्थभाषाः - जैसे संयमी पुरुष शुभाचार से शरीर और आत्मा को बलयुक्त करता है, वैसे संयम से सब पदार्थों को सब वर्त्तो ॥ १० ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

पीव, वृक्क व उदारथिः

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे (करम्भ) = दधिमिश्रित यवसक्तु-जौ के सत्तू [flour-mixed with curds] ओषधे तू दोषों का दहन करनेवाला है। तू (पीवः भव) = हमें आप्यायित करनेवाला हो । तेरे प्रयोग से शरीर के सब अङ्ग-प्रत्यङ्ग पुष्ट हों । (वृक्कः) = तू व्याधि को दूर करनेवाला हो, (उदारथि:) = [ऊर्ध्वं गमः, इन्द्रियाणामुद्दीपकः - सा०] स्वास्थ्य को उन्नत करनेवाला, इन्द्रियों की शक्ति को दीप्ति करनेवाला हो। २. इस प्रकार हे वातापे वायु से आप्यायित होनेवाले शरीर ! तू (इत्) = निश्चय से (पीवः) = आप्यायित अङ्गोंवाला हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ – दधिमिश्रित जौ के सत्तू का प्रयोग हमें आप्यायित, नीरोग व दीप्त-शक्तिवाला बनाता है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे ओषधे त्वं करम्भ उदारथिर्वृक्कः पीवो भव। हे वातापे त्वं पीव इद्भव ॥ १० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (करम्भः) कर्त्ता (ओषधे) ओषधिव्यापिन् (भव) (पीवः) प्रवृद्धिकरः (वृक्कः) रोगादिवर्जयिता (उदारथिः) उद्दीपकः (वातापे) वातइव व्यापिन् (पीवः) प्रवृद्धिकरः (इत्) (भव) ॥ १० ॥
भावार्थभाषाः - यथा संयमी शुभाचारेण शरीरमात्मानञ्च बलयुक्तं करोति तथा संयमेन सर्वपदार्थान् सर्वे वर्त्तयन्तु ॥ १० ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Lord creator of herbs, nourishment and energy, let the herbs be delicious food, destroyer of ailment and disease, a sharpener of appetite and digestion and a tonic for mind and senses. Lord universal of health and life breath, let it be for our growth and advancement in health and intelligence for a long long age of joy and bliss.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

One should be sober in taking medicines.

अन्वय:

O God! you know well about the medicinal plants. O creator of the world and Omnipresent like the air ! ward off all the diseases, invigorate and augmente our strength.

पदार्थान्वयभाषाः - NA
भावार्थभाषाः - A sober man of spotless character, makes his body and soul powerful. So all should utilize all substances with self-restraint and thus augment their physical and spiritual power.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसा संयमी पुरुष शुभ आचरणाने शरीर व आत्म्याला बलयुक्त करतो तसे संयमाने सर्व पदार्थ वापरावेत. ॥ १० ॥