वांछित मन्त्र चुनें

यस्य॒ विश्वा॑नि॒ हस्त॑यो॒: पञ्च॑ क्षिती॒नां वसु॑। स्पा॒शय॑स्व॒ यो अ॑स्म॒ध्रुग्दि॒व्येवा॒शनि॑र्जहि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yasya viśvāni hastayoḥ pañca kṣitīnāṁ vasu | spāśayasva yo asmadhrug divyevāśanir jahi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यस्य॑। विश्वा॑नि। हस्त॑योः। पञ्च॑। क्षि॒ती॒नाम्। वसु॑। स्पा॒शय॑स्व। यः। अ॒स्म॒ऽध्रुक्। दि॒व्याऽइ॑व। अ॒शनिः॑। ज॒हि॒ ॥ १.१७६.३

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:176» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:4» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:23» मन्त्र:3


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् ! (यस्य) जिनके आप (हस्तयोः) हाथों में (पञ्च) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद इन जातियों के (क्षितीनाम्) मनुष्यों के (विश्वानि) समस्त (वसु) विद्याधन हैं सो आप (यः) जो (अस्मध्रुक्) हम लोगों को द्रोह करता है उसको (स्पाशयस्व) पीड़ा देओ और (अशनिः) बिजुली (दिव्येव) जो आकाश में उत्पन्न हुई और भूमि में गिरी हुई संहार करती है उसके समान (जहि) नष्ट करे ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जिसके अधिकार में समग्र विद्या हैं, जो उत्पन्न हुए शत्रुओं को मारता है वह दिव्य ऐश्वर्य प्राप्ति करानेवाला होता है ॥ ३ ॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

पाँचों भूमिकाओं के वसु

पदार्थान्वयभाषाः - १. (यस्य) = जिस प्रभु के (हस्तयोः) = हाथों में (पञ्च क्षितीनाम्) = 'अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय' इन पाँचों भूमिकाओं के (विश्वानि वसु) = सब धन हैं। अन्नमय का 'तेज', प्राणमय का 'वीर्य', मनोमय का 'बल व ओज', विज्ञानमय का 'मन्यु' तथा आनन्दमय का ‘सहस्'– ये सब धन उस प्रभु में निरतिशय रूप में विद्यमान हैं। वे प्रभु तेजादि के पुञ्ज हैं । २. हे प्रभो ! इन तेजादि के पुञ्ज आप उस व्यक्ति को (स्पाशयस्व) = बाधित कीजिए (यः) = जो (अस्मथ्रुक्) = हमसे द्रोह करनेवाला है। उसे आप इस प्रकार (जहि) = नष्ट कीजिए (इव) = जैसे कि (दिव्या अशनिः) = द्युलोक में होनेवाली विद्युत् किसी भी पदार्थ पर पड़कर उसे नष्ट कर देती है। वस्तुतः सब वसुओं को प्राप्त करके हम सब नाशक तत्त्वों को दूर करने में समर्थ बनें ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु पाँचों क्षितियों के वसुओं को धारण करनेवाले हैं। इनके द्वारा वे हमारे द्रोहियों को बाधित करते हैं ।
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे विद्वन् यस्य हस्तयोः पञ्च क्षितीनां विश्वानि वसु सन्ति स त्वं योऽस्मध्रुक्तं स्पाशयस्वाशनिर्दिव्येव जहि ॥ ३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) (विश्वानि) सर्वाणि (हस्तयोः) (पञ्च) ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यशूद्रनिषादानाम् (क्षितीनाम्) मनुष्याणाम् (वसु) विद्याधनानि (स्पाशयस्व) (यः) (अस्मध्रुक्) अस्मान् द्रोग्धि (दिव्येव) यथा दिव्या (अशनिः) विद्युत् (जहि) ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यस्याऽधिकारे समग्रा विद्याः सन्ति यो जातशत्रून् हन्ति स दिव्यैश्वर्यस्य प्रापको भवति ॥ ३ ॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, lord of power and honour, in your hands is the wealth of the entire world, wealth of all the five classes of people, four of the regular classes, Brahmanas, Kshatriyas, Vaishyas and the ancillary class and one class of miscellaneous people and professions anywhere. Lord of the world, whosoever is jealous of us and evil- disposed toward us, take hold of him and, like the flashing and blazing lightning, strike him down.
0 बार पढ़ा गया

आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

Learning is the key to victory and prosperity.

अन्वय:

O learned Indra ! you are President of the Assembly and you hold the treasures of the five categories of men—Brahmanas, Kshriyas, Vaishyas, Shoodras and Nishadas. Destroy him who oppresses us, and slay him like the heavenly lighting.

भावार्थभाषाः - That person can lead to the acquisition of the divine wealth who possess all the spiritual and material sciences and are capable to annihilate the enemies (internal as well as external).
0 बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्याच्याकडे संपूर्ण विद्या आहेत व जो शत्रूंचा नाश करतो तो दिव्य ऐश्वर्य प्राप्त करविणारा असतो. ॥ ३ ॥