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ये वा॒जिनं॑ परि॒पश्य॑न्ति प॒क्वं य ई॑मा॒हुः सु॑र॒भिर्निर्ह॒रेति॑। ये चार्व॑तो मांसभि॒क्षामु॒पास॑त उ॒तो तेषा॑म॒भिगू॑र्तिर्न इन्वतु ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ye vājinam paripaśyanti pakvaṁ ya īm āhuḥ surabhir nir hareti | ye cārvato māṁsabhikṣām upāsata uto teṣām abhigūrtir na invatu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। वा॒जिन॑म्। प॒रि॒ऽपश्य॑न्ति। प॒क्वम्। ये। ई॒म्। आ॒हुः। सु॒र॒भिः। निः। ह॒र॒। इति॑। ये। च॒। अर्व॑तः। मां॒स॒ऽभि॒क्षाम्। उ॒प॒ऽआस॑ते उ॒तो इति॑। तेषा॑म्। अ॒भिऽगू॑र्तिः। नः॒। इ॒न्व॒तु॒ ॥ १.१६२.१२

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:162» मन्त्र:12 | अष्टक:2» अध्याय:3» वर्ग:9» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:22» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो लोग (वाजिनम्) जिसमें बहुत अन्नादि पदार्थ विद्यमान उस भोजन को (पक्वम्) पकाने से अच्छा बना हुआ (परिपश्यन्ति) सब ओर से देखते हैं वा (ये) जो (ईम्) जल को पका (आहुः) कहते हैं (ये, च) और जो (अर्वतः) प्राप्त हुए प्राणी के (मांसभिक्षाम्) मांस के न प्राप्त होने को (उतो) तर्क-वितर्क से (उपासते) सेवन करते हैं (तेषाम्) उनका (अभिगूर्त्तिः) उद्यम और (सुरभिः) सुगन्ध (नः) हम लोगों को (इन्वतु) व्याप्त वा प्राप्त हो। हे विद्वन् ! तू (इति) इस प्रकार अर्थात् मांसादि अभक्ष्य के त्याग से रोगों को (निर्हर) निरन्तर दूर कर ॥ १२ ॥
भावार्थभाषाः - जो लोग अन्न और जल को शुद्ध करना, पकाना, उसका भोजन करना जानते और मांस को छोड़ कर भोजन करते, वे उद्यमी होते हैं ॥ १२ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

आचार्य का कर्तव्य

पदार्थान्वयभाषाः - १. (ये) = जो आचार्यगतमन्त्र के अनुसार विद्यार्थी में वीर्यरक्षण की भावना पैदा करके विद्यार्थी को (वाजिनम्) = शक्तिशाली व दृढ़शरीरवाला तथा (पक्वम्) = परिपक्व ज्ञानवाला, परिपक्व बुद्धिवाला (परिपश्यन्ति) = देखते हैं और २. (ये) = जो आचार्य (ईम्) = निश्चय से (आहुः) = कहते हैं कि (सुरभिः) = [क] तू दीप्त ज्ञानाग्नि के कारण उत्तम बुद्धिमान् [wise, learned] हुआ है, [ख] स्वास्थ्य के कारण चमकते हुए सुन्दर शरीरवाला [shining, handsome] हुआ है तथा [ग] मन में उत्तम गुणोंवाला [good, virtuous] बना है- ऐसा तू निर्हर इति निश्चय से ज्ञान को दूर-दूर तक ले जानेवाला बन - हम तो बस यही चाहते हैं । ३. (ये च) = और जो आचार्य (अर्वतः) = कामक्रोधादि का संहार करनेवाले इस विद्यार्थी से (मांसभिक्षाम्) = उसके मांस [जीवन] की ही भिक्षा को उपासते= माँग लेते हैं, अर्थात् इसे यह कहते हैं कि अपने जीवन को लोकहित के लिए दे डाल, ४. (तेषाम्) = उन, लोकहित के लिए विद्यार्थियों को शक्तिशाली व ज्ञानी बनानेवाले आचार्यों का (अभिगूर्तिः) = उद्योग (उत उ) निश्चय ही (नः इन्वतु) हमें व्याप्त करे, अर्थात् हम भी इन्हीं आचार्यों में से एक बनें और विद्यार्थियों को ज्ञान देकर उनसे लोकहित में प्रवृत्त होने की गुरुदक्षिणा
भावार्थभाषाः - लें ।
अन्य संदर्भ: भावार्थ- आचार्य का कर्तव्य है कि (क) विद्यार्थी को दृढ़ शरीरवाला बनाएँ (वाजिनम्), (ख) उसे परिपक्व ज्ञानवाला करें (पक्वम्), (ग) उसे सुरभि बनाएँ - मस्तिष्क में दीप्त, शरीर में दृढ़ व हृदय में दिव्यगुणोंवाला, (घ) उसे ऐसा बनाकर ज्ञान फैलाने का निर्देश करे (निर्हर इति), (ङ) उससे लोकहित में जीवन खपा देने की दक्षिणा माँगे (मांसभिक्षामुपासते) ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

ये वाजिनं पक्वं परिपश्यन्ति य ईं पक्वमाहुः। ये चार्वतो मांसभिक्षामुतो उपासते तेषामभिगूर्त्तिः सुरभिश्च न इन्वतु। हे विद्वँस्त्वमिति रोगान्निर्हर ॥ १२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) (वाजिनम्) बहूनि वाजा अन्नादीनि यस्मिन् तमाहारम् (परिपश्यन्ति) सर्वतः प्रेक्षन्ते (पक्वम्) पाकेन सम्यक् संस्कृतम् (ये) (ईम्) जलम्। ईमिति उदकना०। निघं० १। १२। (आहुः) कथयन्ति (सुरभिः) सुगन्धः (निः) (हरः) (इति) (ये) (च) (अर्वतः) प्राप्तस्य (मांसभिक्षाम्) मांसस्य भिक्षामलाभम् (उपासते) (उतो) (तेषाम्) (अभिगूर्त्तिः) अभिगत उद्यमः (नः) अस्मान् (इन्वतु) व्याप्नोतु प्राप्नोतु ॥ १२ ॥
भावार्थभाषाः - ये अन्नं जलं च शोधितुं पक्तुं भोक्तुं जानन्ति मांसं वर्जयित्वा भुञ्जते त उद्यमिनो जायन्ते ॥ १२ ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Those who watch the nation’s food and prosperity grow to ripeness and perfection, and those who say: Ah yes! it is fragrant, harvest it, take it, export it too! and those who contribute their share to the nation’s prosperity and also wait for their share of the food and fragrance of yajna, and in addition, their coordination, cooperation and common voice of exhortation may, we pray, be for the good and growth of us all.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The warrior qualities are emphasized.

अन्वय:

They who crave for the meat of a horse, and declare the horse fit to be killed, should be exterminated. Who keep the fast horse well trained and disciplined, deserve to be praised by us for the strength of their character and perseverance.

भावार्थभाषाः - Those who may desire to eat the flesh of horses and other good animals, should be restrained by the king and other officers, so that men may accomplish their works well, without violence. (This mantra has been interpreted in the Rigvedadi Bhashya Bhumika also in a slightly different manner.)
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक अन्न व जल शुद्ध करणे, शिजविणे, त्याचे भोजन करणे जाणतात व मांस वर्ज्य करून भोजन करतात ते उद्योगी असतात. ॥ १२ ॥