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आ न॒ ऊर्जं॑ वहतमश्विना यु॒वं मधु॑मत्या न॒: कश॑या मिमिक्षतम्। प्रायु॒स्तारि॑ष्टं॒ नी रपां॑सि मृक्षतं॒ सेध॑तं॒ द्वेषो॒ भव॑तं सचा॒भुवा॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā na ūrjaṁ vahatam aśvinā yuvam madhumatyā naḥ kaśayā mimikṣatam | prāyus tāriṣṭaṁ nī rapāṁsi mṛkṣataṁ sedhataṁ dveṣo bhavataṁ sacābhuvā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। नः॒। ऊर्ज॑म्। व॒ह॒त॒म्। अ॒श्वि॒ना॒। यु॒वम्। मधु॑ऽमत्या। नः॒। कश॑या। मि॒मि॒क्ष॒त॒म्। प्र। आयुः॑। तारि॑ष्टम्। निः। रपां॑सि। मृ॒क्ष॒त॒म्। सेध॑तम्। द्वेषः॑। भव॑तम्। स॒चा॒ऽभुवा॑ ॥ १.१५७.४

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:157» मन्त्र:4 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:27» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:22» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक ! (युवम्) तुम दोनों (मधुमत्या) बहुत जल वाष्पों के वेगों से युक्त (कशया) गति वा शिक्षा से (नः) हम लोगों के लिये (ऊर्जम्) पराक्रम की (आ, वहतम्) प्राप्ति करो, (मिमिक्षतम्) पराक्रम की प्राप्ति कराने की इच्छा (नः) हमारी (आयुः) उमर को (प्र, तारिष्टम्) अच्छे प्रकार पार पहुँचाओ, (द्वेषः) वैरभावयुक्त (रपांसि) पापों को (निः, सेधतम्) दूर करो, हम लोगों को (मृक्षतम्) शुद्ध करो और हमारे (सचाभुवा) सहकारी (भवतम्) होओ ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - अध्यापक और उपदेशक लोग ऐसी शिक्षा करें कि जिससे हम लोग सबके मित्र होकर पक्षपात से उत्पन्न होनेवाले पापों को छोड़ अभीष्ट सिद्धि पानेवाले हों ॥ ४ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

शक्ति व माधुर्य

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे (अश्विना) = प्राणापानो ! (नः) = हमारे लिए (ऊर्जम्) = बल और प्राणशक्ति को (आवहतम्) = सर्वथा प्राप्त कराइए । उस बल के साथ (युवम्) = आप दोनों (नः) = हमें मधुमत्या (कशया) = अत्यन्त माधुर्यवाली वाणी से (मिमिक्षतम्) = सिक्त व प्रीणित करो। हममें शक्ति हो और हम सदा मधुरवाणी ही बोलें । २. (आयु:) = हमारे जीवन को आप (प्रतारिष्टम्) = खूब बढ़ा दीजिए और (रपांसि) = शरीरस्थ सब दोषों को (निर्मृक्षतम्) = नितरां नष्ट कर दीजिए। दोषों को दूर करके हमारे जीवन को नीरोग बनाइए। हमारे मन में से (द्वेष:) = द्वेषभाव को भी (सेधतम्) = नष्ट कर दीजिए और (सचाभुवा भवतम्) = हमारे जीवनों में मिलकर कार्य करनेवाले होओ। अपान दोषों को दूर करे और प्राण शक्ति का सञ्चार करे। इस प्रकार निर्मल व सबल बनकर हम अपनी जीवनयात्रा को उत्तमता से पूर्ण कर सकेंगे।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्राणापान हमें बल व माधुर्य दें। इनसे हमें दीर्घजीवन व नीरोगता प्राप्त हो। हम द्वेष से रहित हों ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे अश्विना युवं मधुमत्या कशया न ऊर्जमावहतं मिमिक्षतं न आयुः प्रतारिष्टं द्वेषो रपांसि निःसेधतमस्मान् मृक्षतं सचाभुवा भवतम् ॥ ४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (नः) अस्मभ्यम् (ऊर्जम्) पराक्रमम् (वहतम्) प्रापयतम् (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (युवम्) युवाम् (मधुमत्या) बहुजलवाष्पवेगयुक्तया (नः) अस्माकम् (कशया) गत्या शिक्षया वा (मिमिक्षतम्) प्रापयितुमिच्छतम् (प्र) (आयुः) जीवनम् (तारिष्टम्) पारयतम् (निः) नितराम् (रपांसि) पापानि (मृक्षतम्) शोधयतम् (सेधतम्) दूरीकृतम् (द्वेषः) द्वेषयुक्तानि (भवतम्) (सचाभुवा) सहकारिणौ ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - अध्यापकोपदेशकावीदृशीं शिक्षां कुर्यातां यतो वयं सर्वेषां सखायो भूत्वा पक्षपातजन्यानि पापानि विहाय सिद्धाभीष्टा भवेम ॥ ४ ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Ashvins, leaders of light, come, bring us food and energy, accelerate the nation’s march with the spur of ambition and action. Take the health and age of the people over and across the heights. Rub off and wash away the sins. Ward off hate and enmity. Be our friends and helpers in every field.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

Again in the praise of Ashvinau (2).

अन्वय:

O teachers and preachers ! bring us vigor, inspire us with your advice, prolong the span of our life, wipe away our sins, destroy all feelings of animosity and be always our companion.

भावार्थभाषाः - The teachers and preachers should impart such good education, that we may become friendly to all, and by giving up all prejudice-based sins may accomplish our desires.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - अध्यापक व उपदेशकांनी असे शिक्षण द्यावे, की ज्यामुळे आम्ही सर्वांचे मित्र बनून पक्षपातामुळे उत्पन्न होणाऱ्या पापाचा त्याग करावा व अभीष्ट सिद्धी प्राप्त करावी. ॥ ४ ॥