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आ वां॑ भूषन्क्षि॒तयो॒ जन्म॒ रोद॑स्योः प्र॒वाच्यं॑ वृषणा॒ दक्ष॑से म॒हे। यदी॑मृ॒ताय॒ भर॑थो॒ यदर्व॑ते॒ प्र होत्र॑या॒ शिम्या॑ वीथो अध्व॒रम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā vām bhūṣan kṣitayo janma rodasyoḥ pravācyaṁ vṛṣaṇā dakṣase mahe | yad īm ṛtāya bharatho yad arvate pra hotrayā śimyā vītho adhvaram ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। वा॒म्। भू॒ष॒न्। क्षि॒तयः॑। जन्म॑। रोद॑स्योः। प्र॒ऽवाच्य॑म्। वृ॒ष॒णा॒। दक्ष॑से। म॒हे। यत्। ई॒म्। ऋ॒ताय॑। भर॑थः। यत्। अर्व॑ते। प्र। होत्र॑या। शिम्या॑। वी॒थः॒। अ॒ध्व॒रम् ॥ १.१५१.३

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:151» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:20» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृषणा) विद्या की वर्षा करानेवाले (यत्) जो (रोदस्योः) अन्तरिक्ष और पृथिवी के बीच वर्त्तमान (क्षितयः) मनुष्य (महे) अत्यन्त (दक्षसे) आत्मबल के लिये (वाम्) तुम दोनों का (प्रवाच्यम्) अच्छे प्रकार कहने योग्य (जन्म) विद्या के जन्म को (भूषन्) सुशोभित करें उनके सङ्ग से (यत्) जिस कारण (अर्वते) प्रशंसित विज्ञानवाले (ऋताय) सत्यविज्ञान युक्त सज्जन के लिये (होत्रया) ग्रहण करने योग्य (शिम्या) अच्छे कर्मों से युक्त क्रिया से (अध्वरम्) अहिंसा धर्मयुक्त व्यवहार को तुम (आ, भरथः) अच्छे प्रकार धारण करते हो और (ईम्) सब ओर से उसको (प्र, वीथः) व्याप्त होते हो इससे आप प्रशंसा करने योग्य हो ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् बाल्यावस्था से लेकर पुत्र और कन्याओं को विद्या जन्म की अति उन्नति दिलाते हैं, वे सत्यविद्याओं के प्रचार से सबको विभूषित करते हैं ॥ ३ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

ऋत व अध्वर

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे प्राणापानो ! (क्षितयः) = मनुष्य (वाम्) = आप दोनों को (आभूषन्) = अपने जीवन में सुशोभित करते हैं आपके द्वारा अपने जीवन को अलंकृत करते हैं, परिणामतः हे (वृषणा) = सुखों का वर्षण करनेवाले प्राणापानो ! उन मनुष्यों के जीवन में (रोदस्योः) = द्यावापृथिवी का- मस्तिष्क व शरीर का जन्म प्रादुर्भाव व विकास (प्रवाच्यम्) = अत्यन्त प्रशंसनीय होता है। द्यावापृथिवी का यह विकास (दक्षसे) = उनकी उन्नति व वृद्धि के लिए होता है और (महे) = उनकी महिमा का कारण बनता है। २. द्यावापृथिवी का यह विकास उस समय उनकी महिमा का कारण बनता है (यत्) = जब (ईम्) = निश्चय से आप अपने इस उपासक को (ऋताय) = ऋत के लिए (भरथः) = पोषित करते हो । आपकी साधना से इसके जीवन में ऋत का वर्धन होता है । यह सत्य तथा नियमितता को अपनानेवाला बनता है। (यत्) = जब अर्वते वासनाओं का संहार करनेवाले इसके लिए (होत्रया) = वेदवाणी के साथ तथा (शिम्या) = शान्तभाव से की जानेवाली क्रियाओं के साथ (अध्वरम्) = अहिंसात्मक यज्ञों को (प्रवीथः) = प्रकर्षेण प्राप्त कराते हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ – प्राणसाधक के जीवन में 'ऋत व अध्वर' प्राप्त होते हैं। उस समय इसके शरीर व मस्तिष्क का प्रशंसनीय विकास होता है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे वृषणा यद्ये रोदस्योर्मध्ये वर्त्तमानाः क्षितयो महे दक्षसे वां युवयोः प्रवाच्यं जन्म भूषन् तत्सङ्गेन यद्यतोऽर्वत ऋताय होत्रया शिम्याऽध्वरं युवामाभरथः। ई प्रवीथः। तस्माद्भवन्तौ प्रशंसनीयौ स्तः ॥ ३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (वाम्) युवयोः (भूषन्) अलंकुर्युः (क्षितयः) मनुष्याः (जन्म) विद्याप्रादुर्भावम् (रोदस्योः) द्यावाभूम्योर्मध्ये (प्रवाच्यम्) प्रवक्तुमर्हम् (वृषणा) विद्यावर्षयितारौ (दक्षसे) आत्मबलाय (महे) महते (यत्) ये (ईम्) सर्वतः (ऋताय) सत्यविज्ञानाय (भरथः) धरथः (यत्) यतः (अर्वते) प्रशस्तविज्ञानवते (प्र) (होत्रया) आदातुमर्हया (शिम्या) सुकर्मयुक्तया (वीथः) व्याप्नुथः (अध्वरम्) अहिंसाधर्मयुक्तं व्यवहारम् ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसो बाल्यावस्थामारभ्य पुत्राणां कन्यानां च विद्याजन्म प्रवर्द्धयन्ति ते सत्यविद्यानां प्रचारेण सर्वान् विभूषयन्ति ॥ ३ ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Generous Mitra and Varuna, sun and cosmic waters, fire and sun, people living on earth admire your celebrated rise from heaven through the skies for the sake of spiritual greatness of honour and smartness of perfect performance, since on their invocation with holy action you reach their yajna of love and holiness of non violence and bear all round fruits of yajna for the man of science and speed and for the man of truth and cosmic Law.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

Ordained to adore the preacher and teacher.

अन्वय:

O disseminators of knowledge (teachers and preachers)! you are praiseworthy as persons living in celestial space glorify and adorn your admirable birth (from the womb of knowledge or wisdom. It is aimed at acquiring more vigor. The truthful and enlightened persons, performing the acceptable noble acts uphold if from all sides.

भावार्थभाषाः - Those wise persons who promote the birth and growth of knowledge of the sons and daughters from childhood onward, they adorn and beautify all by the propagation of true knowledge.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान बाल्यावस्थेपासून पुत्र व कन्यांना विद्या देऊन उन्नत करतात ते सत्याचा प्रचार करून सर्वांमध्ये भूषणावह ठरतात. ॥ ३ ॥