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अ॒भि य॒ज्ञं गृ॑णीहि नो॒ ग्नावो॒ नेष्टः॒ पिब॑ ऋ॒तुना॑। त्वं हि र॑त्न॒धा असि॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhi yajñaṁ gṛṇīhi no gnāvo neṣṭaḥ piba ṛtunā | tvaṁ hi ratnadhā asi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒भि। य॒ज्ञम्। गृ॒णी॒हि॒। नः॒। ग्नावः॑। नेष्ट॒रिति॑। पिब॑। ऋ॒तुना॑। त्वम्। हि। र॒त्न॒ऽधा। असि॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:15» मन्त्र:3 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:28» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ऋतुओं के साथ विद्युत् अग्नि क्या करता है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - यह (नेष्टः) शुद्धि और पुष्टि आदि हेतुओं से सब पदार्थों का प्रकाश करनेवाली बिजुली (ऋतुना) ऋतुओं के साथ रसों को (पिब) पीती है तथा (हि) जिस कारण (रत्नधाः) उत्तम पदार्थों की धारण करनेवाली (असि) है, (त्वम्) सो यह (ग्नावः) सब पदार्थों की प्राप्ति करानेहारी (नः) हमारे इस (यज्ञम्) यज्ञ को (अभिगृणीहि) सब प्रकार से ग्रहण करती है, इसलिये तुम लोग इससे सब कार्य्यों को सिद्ध करो॥३॥
भावार्थभाषाः - यह जो बिजुली अग्नि की सूक्ष्म अवस्था है, सो सब स्थूल पदार्थों के अवयवों में व्याप्त होकर उनको धारण और छेदन करती है, इसी से यह प्रत्यक्ष अग्नि उत्पन्न होके उसी में विलीन हो जाता है॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

नेष्टा का सोमपान

पदार्थान्वयभाषाः - १. 'ग्ना' शब्द छन्दों का वाचक है - 'छन्दाँसि वै ग्नाः छन्दोभिर्हि स्वर्ग लोकं गच्छन्ति' [शत० ५/५/४/७] । इन छन्दोंवाला ग्नावा है । उसे सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि (ग्नावः) -  हे ज्ञान की वाणियोंवाले विद्वन् ! (नः) - हमें (यज्ञम् अभि) - यज्ञ का लक्ष्य करके (गृणीहि) - उपदेश दीजिए । हमारा जीवन यज्ञमय होगा तो हम विलास के मार्ग में न जाकर इस सोम के रक्षण के लिए अधिक समर्थ होंगे ।  २. हे (नेष्टः) [नेनेक्ति] - जीवन को शुद्ध करनेवाले विद्वन्! (ऋतुना) - समय रहते (पिब) - तू सोम का पान करनेवाला बन ।  ३. हे नेष्टः ! (त्वम्) - तू (हि) - निश्चय से (रत्नधा असि) - रमणीय पदार्थों का धारण करनेवाला है । सोम के रक्षण से शरीर अत्यन्त रमणीय बन जाता है । नीरोगता , निर्मलता और बुद्धि की तीव्रता , ये सब - के - सब सोमरक्षण से ही साध्य होते हैं । इस सोमरक्षण के लिए यह अपने जीवन को यज्ञ की ओर ले - चलता है , वेदवाणियों का अध्ययन करता है , जीवन को शुद्ध बनाता है । 
भावार्थभाषाः - भावार्थ - हम यज्ञशील बनें , जीवन के शोधन के लिए समय रहते सोमपान करनेवाले बनें और इस प्रकार जीवन को रमणीय बनाएँ । 
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथर्तुना सह विद्युत् किं करोतीत्युपदिश्यते।

अन्वय:

हे विद्वन् ! यत इयं नेष्टर्नेष्ट्रीविद्युदृतुना सह रसान् पिब पिबति रत्नधा अस्यस्ति सा ग्नावो ग्नावती न इमं यज्ञमभिगृणीहि गृणाति। तस्मात्त्वमेतया कार्य्याणि साधय॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अभि) आभिमुख्ये (यज्ञम्) सङ्गम्यमानं पूर्वोक्तम् (गृणीहि) गृणाति स्तुतिहेतुर्भवति। अत्र व्यत्ययो लडर्थे लोट् च। (नः) अस्माकम् (ग्नावः) सर्वपदार्थप्राप्तिर्यस्य व्यवहारे। ग्ना इति उत्तरपदनामसु पठितम्। (निघं०३.२९) (नेष्टः) विद्युत् पदार्थशोधकत्वात्पोषकत्वाच्च नेनेक्ति सर्वान् पदार्थानिति। नप्तृनेष्टृ० (उणा०२.९६) अनेन निपातनम् (पिब) पिबति। अत्र व्यत्ययो लडर्थे लोट् च। (ऋतुना) ऋतुभिः सह (त्वम्) सोऽयम् (हि) यतः (रत्नधाः) रत्नानि रमणार्थानि पृथिव्यादीनि वस्तूनि दधातीति सः (असि) अत्र व्यत्ययः॥३॥
भावार्थभाषाः - इयं विद्युदग्नेः सूक्ष्मावस्था वर्त्तते, सा सर्वान् मूर्त्तद्रव्यसमूहावयवानभिव्याप्य धरति छिनत्ति वाऽतएव चाक्षुषोऽग्निः प्रादुर्भवत्यत्रैवान्तर्दधाति चेति॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Electricity, purifier of everything, generous giver of things, receive and appraise the fragrance of our yajna, drink the sweets of it according to the seasons and give us the jewels, treasure of jewels as you are.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्युत ही अग्नीची सूक्ष्म अवस्था आहे. त्यामुळे सर्व स्थूल पदार्थांच्या अवयवांमध्ये व्याप्त होऊन त्यांना धारण करते व छिन्न भिन्न करते. त्यासाठी हा प्रत्यक्ष अग्नी उत्पन्न होऊन त्यातच विलीन होतो. ॥ ३ ॥