वांछित मन्त्र चुनें

स जाय॑मानः पर॒मे व्यो॑मन्या॒विर॒ग्निर॑भवन्मात॒रिश्व॑ने। अ॒स्य क्रत्वा॑ समिधा॒नस्य॑ म॒ज्मना॒ प्र द्यावा॑ शो॒चिः पृ॑थि॒वी अ॑रोचयत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa jāyamānaḥ parame vyomany āvir agnir abhavan mātariśvane | asya kratvā samidhānasya majmanā pra dyāvā śociḥ pṛthivī arocayat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। जाय॑मानः। प॒र॒मे। विऽओ॑मनि। आ॒विः। अ॒ग्निः। अ॒भ॒व॒त्। मा॒त॒रिश्व॑ने। अ॒स्य। क्रत्वा॑। स॒म्ऽइ॒धा॒नस्य॑। म॒ज्मना॑। प्र। द्यावा॑। शो॒चिः। पृ॒थि॒वी इति॑। अ॒रो॒च॒य॒त् ॥ १.१४३.२

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:143» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:12» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:2


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वरविषय अगले मन्त्र में कहते हैं ।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (मातरिश्वने) अन्तरिक्षस्थ वायु के लिये (अग्निः) अग्नि के समान (परमे) उत्तम (व्योमनि) आकाश के तुल्य सबमें व्याप्त सबकी रक्षा करने आदि गुणों से युक्त ब्रह्म में (जायमानः) उत्पन्न हुआ हम लोगों के लिये (आविः) प्रकट (अभवत्) होवे, उस (अस्य) प्रत्यक्ष (समिधानस्य) उत्तमता से प्रकाशमान जन का (शोचिः) पवित्रभाव (क्रत्वा) प्रज्ञा और कर्म वा (मज्मना) बल के साथ (द्यावा, पृथिवी) अन्तरिक्ष और पृथिवी को (प्रारोचयत्) प्रकाशित करावे, (सः) वह पढ़ा हुआ जन सबका कल्याणकारी होता है ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् लोग विद्यार्थियों को प्रयत्न के साथ विद्या, अच्छी शिक्षा और धर्म नीतियुक्त करें तो वे सर्वदैव कल्याण का सेवन करनेवाले होवें ॥ २ ॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

पवित्रता व प्रकाश

पदार्थान्वयभाषाः - १. गतमन्त्र के अनुसार धीति व मति के यज्ञादि कर्मों व स्तवन के करने पर (सः) = वह (अग्निः) = अग्रणी प्रभु (जायमानः) = प्रादुर्भूत होते हुए (मातरिश्वने) = प्राणसाधना करनेवाले पुरुष के लिए अथवा [मातरिश्वा फलस्य निर्मातरि यज्ञे श्वसिति यजमानः सा०] यज्ञशील पुरुष के लिए (परमे व्योमनि) = हृदयरूप परमाकाश में (आविः अभवत्) = प्रकट होते हैं। यह मातरिश्वा अपने हृदय में प्रभु का साक्षात् करता है। २. (समिधानस्य) = दीप्त होते हुए अस्य इस प्रभु के (क्रत्वा) = [Enlightenment] प्रकाश से तथा मज्मना [बलनाम- नि०] शक्ति से उत्पन्न हुई-हुई (शोचि:) = पवित्रता व प्रकाश द्यावापृथिवी मस्तिष्क व शरीर को प्र अरोचयत् खूब ही दीप्त कर देते हैं। मस्तिष्क ज्ञान के प्रकाश से चमक उठता है और शरीर पवित्र होकर स्वस्थ हो जाता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु का आविर्भाव हमारे मस्तिष्क व शरीर को दीप्त करनेवाला होता है।
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरविषयमाह ।

अन्वय:

यो मातरिश्वनेऽग्निरिव परमे व्योमनि जायमानो न आविरभवत्। तस्यास्य समिधानस्य जनस्य शोचिः क्रत्वा मज्मना च द्यावा पृथिवी प्रारोचयत्, स सर्वेषां कल्याणकारी जायते ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) अधीयानः (जायमानः) उत्पद्यमानः (परमे) प्रकृष्टे (व्योमनि) व्योमवद्व्यापके सर्वरक्षादिगुणान्विते ब्रह्मणि (आविः) प्राकट्ये (अग्निः) पावक इव (अभवत्) भवेत् (मातरिश्वने) अन्तरिक्षस्थाय वायवे (अस्य) (क्रत्वा) प्रज्ञया कर्मणा वा (समिधानस्य) सम्यक् प्रदीप्तस्य (मज्मना) बलेन (प्र) (द्यावा) (शोचिः) पवित्रः (पृथिवी) (अरोचयत्) प्रकाशयेत् ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - यदि विद्वांसो विद्यार्थिनः प्रयत्नेन सुविद्यासुशिक्षाधर्मयुक्तान् कुर्युस्तर्हि सर्वदा कल्याणभाजो भवेयुः ॥ २ ॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - That refulgent Agni born of the highest cosmic space manifested itself in energy currents in the middle region of space in the skies. It is by the action and force of this blazing power that the heaven is lit bright and the earth shines on in beauty.
0 बार पढ़ा गया

आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The virtues of a noble person defined.

अन्वय:

A learned man always feels presence of the Omnipresent God. He is the Protector of all, manifests His glory like fire blowing in face of air with radiance. Such an enlightened person kindled by incessant efforts and knowledge illuminates the heaven and the earth. Such a man becomes the benefactor of all.

भावार्थभाषाः - If good teachers impart good education, wisdom (righteousness), they always feel satisfied and happy.
0 बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान विद्यार्थ्यांना प्रयत्नाने विद्या, चांगले शिक्षण देऊन धर्मनीतीयुक्त करतात ते सदैव कल्याण करतात. ॥ २ ॥